Category: इतिहास
Showing 1–36 of 51 results
-
इतिहास की साक्षी Itihas ki Sakshi
Rs.50.00Sold By : The Rishi Mission Trustभौतिक विरोध मनुष्य को बल बढ़ाने की प्रेरणा देता है। बौद्धिक विरोध सत्य प्रकाशन का अवसर देता है। वे लोग असल के पोषक होते हैं, जो उसका विरोध करने से डरते हैं। जिसने संसार में सत्य की स्थापना का प्रयास किया है, उसे संघर्ष कर. पड़ा है। ऋषि दयानन्द के जीवन में बाल्यकाल से मृत्यु पर्यन्त संघर्ष दिखाई देता है। इसी संघर्ष के कारण वे सत्य को स्थापित करने में समर्थ हो सके। परोपकारिणी सभा, ऋषि के द्वारा स्थापित और उनकी उत्तराधिकारिणी संस्था है। सभा के कार्यों में मुख्य कार्य ऋषि के मन्तव्य पर उठे प्रश्नों का उत्तर देना और ऋषि के उद्देश्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है। सभा पूरे सामर्थ्य से इस कार्य में लगी है। वेद, आर्यसमाज, दयानन्द और भारतीय अस्मिता पर कोई भी आक्रमण करता है, उसको अनुचित रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करता है तो सभा सप्रमाण यथासमय उसका उत्तर देती है । सभा को विद्वानों का सहयोग प्राप्त है, वे पूर्ण विद्वत्ता से और योग्यता से आक्षेपों का निराकरण करते हैं और बलपूर्वक सत्य की स्थापना करते हैं ।
प्रो० राजेन्द्र जिज्ञासु जी की पुस्तक इस कार्य का अद्यतन रूप है । पं० रामचन्द्र जी, जो एक स्वाध्यायशील और कर्मठ विद्वान् हैं, उनकी दृष्टि में भारतीय साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक ‘पं० श्रद्धाराम फिलौरी’ आई। उन्होंने उसे पढ़ा और सभा तथा पं० जिज्ञासु जी को अवगत कराया, साथ ही एक प्रति करके पं० राजेन्द्र जिज्ञासु जी को प्रेषित कर दी । पण्डित जी ने सभा से विचार-विमर्श करके इसका उत्तर देना निश्चित किया । उत्तर लिखने के लिए दृष्टि और स्मृति के धनी पं० राजेन्द्र जिज्ञासु जी के अतिरिक्त आज आर्यजगत् में दूसरा कौन हो सकता है ? आज समाज में वे वयोवृद्ध विद्वान् हैं, उनकी दृष्टि से लगभग एक शताब्दी का इतिहास घटित हुआ है। दूसरी विशेषता है- पण्डित जी की स्मृति प्रारम्भ से बहुत अच्छी है, जिसके कारण पढ़ी और सुनी गई बातें उन्हें बहुत अधिक उपस्थित हैं, जो सन्दर्भ का काम करती हैं। तीसरी बात – उनका कार्य करने का उत्साह है, जो इस आयु में इतने परिश्रम पूर्ण कार्य करने में संकोच नहीं करते । शरीर भले ही शिथिल हो, चाहे दृष्टि मन्द हो, परन्तु उत्साह में कोई कमी नहीं । एक नवयुवक जैसा उत्साह उनमें हम सदा पाते हैं। उनकी ऋषि दयानन्द, लेखराम, श्रद्धानन्द आदि विद्वानों के प्रति निष्ठा अतिशयता को प्राप्त है। उनकी लेखनी से यह पुस्तक लिखी गई है ।
साहित्य अकादमी के लेखक ने जिन असत्य काल्पनिक बातों को पं० श्रद्धाराम के व्यक्तित्व को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के लिए पुस्तक में लिखा है, जिज्ञासु जी ने प्रमाणों के साथ उनकी असत्यता को सिद्ध कर दिया है और राजेन्द्र टोकी द्वारा लिखित इस पुस्तक की प्रामाणिकता को सन्दिग्ध बना दिया। यहाँ हम साहित्य अकादमी से भी कहना चाहेंगे कि किसी की निन्दा से किसी की स्तुति कराने का प्रयास लेखक के साथ प्रकाशक की विश्वसनीयता को भी सन्दिग्ध बना देता है ।
जहाँ इस पुस्तक से इतिहास के वास्तविक स्वरूप की रक्षा हो सकेगी, वहीं अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक के प्रकाशक और लेखक को अपनी भूल सुधारने का अवसर भी मिलेगा ।
सभा को अपने कर्त्तव्य-पालन का अवसर निज विद्वानों ने और प्रकाशन में सहयोग करने वालों ने दिया, सभा सभी का धन्यवादी ज्ञापित करती है ।
धर्मवीर
Add to cart