Category: कथा, कहानियां, गाथाएं
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51 अनमोल कहानियां Anmol kahaniyan
Rs.25.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रेमचन्द युग-प्रवर्तक लेखक थे। सन् 1901 से 1936 तक का समय हिन्दी-उर्दू कथा – साहित्य का युग कहलाता है और कहलाता रहेगा। उस समय राजनीति में और समाज-सुधार के आन्दोलन में मनुष्य से विचारशील और कर्मशील बनने और रूढ़िगत परम्पराओं और अन्धविश्वासों को त्यागकर आगे बढ़ने की माँग की जा रही थी। प्रेमचन्द ने इस माँग को पूरा किया। हमें प्रेमचन्द में शहरी, कस्बाई और ठेठ देहाती जीवन के सजीव चित्र मिलते हैं। इस सबसे प्रेमचन्द की शैली के विभिन्न रूप-रंगों और भाषा-ज्ञान पर प्रकाश पड़ता है और इस महान् लेखक के सामर्थ्य पर आश्चर्य भी होता है। इस संकलन में उनकी पूस की रात, पंच परमेश्वर, मंत्र, कफन, शतरंज के खिलाड़ी, सद्गति, ठाकुर का कुआँ सरीखी कालजयी 51 अनमोल कहानियाँ संग्रहित हैं।
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पंचतंत्रम Panchatantram
Rs.95.00Sold By : The Rishi Mission Trustअपरीक्षितकारकम् नामक यह रचना विश्वख्यात पंचतंत्र का अंतिम वा पांचवा तंत्र हैं। भारत के सभी कोनों में लोग पंचतंत्र को जानते है और इसकी लगभग 75 कहानियों में से किसी न किसी कहानी की पूर्णतः अथवा अंशत: गूँज अपने देश की सभी भाषाओं के साहित्य में विद्यमान है। प्रभाव और प्रसिद्धि के मामले में दुनिया भर की नीति कथाओं एवं पशु-पक्षी कथाओं (जिसे अंग्रेज फेबल कहते है) पंचतंत्र का स्थान अद्वितीय और चुनौती रहित है। यह भारतीयों का गौरव ही है।
पंचतंत्र की कहानियों को विभिन्न रूपों में सम्पादित किया गया है। विद्वानों ने इसके दक्षिणात्य, पहलवी, नेपाली, आदि कई पाठों की चर्चा की है। ‘बृहत्कथा’ और ‘हितोपदेश’ नाम से प्रसिद्ध रचनाओं में भी पंचतंत्र की स्पष्ट छाप है।
इन तमाम पाठ भेदों एवं पाठान्तरों के बीच 1199 ई0 में प्रणीत जैन मुनि पूर्णभद्र की रचना सबसे सकल एवं प्रामाणिक मानी जाती है। पंचतंत्र जैसा नाम से ही स्पष्ट है, पाँच भागों वा तंत्रों में बँटा है:
1. मित्रभेद अर्थात दोस्तों में वैर कराने वाले (सियार) की कथा
2. मित्रसम्प्राप्ति अर्थात विभिन्न प्राणियों की एकजुटता की कहानी
3. कौए और उल्लू की कथा ( जिसमें उल्लू का अंत हो जाता है) 4. लब्धप्रणाश अर्थात् पायी हुई वस्तु को खोने की कहानी
5. अपरीक्षितकारकम् अर्थात बिना सोचे-बूझे काम को करने से होने वाली हानियों की कहानियाँ ।
इन तंत्रों में अपरीक्षितकारकम् को सबसे अधिक प्रतिष्ठा मिली है। भली भांति विचार करने की अपेक्षा हड़बड़ी में काम करने से हमें तीन प्रकार की हानि होती है:
सम्बंधित काम गड़बड़ा जाता है;
उसी काम को दुबारा ठीक से करने की आवश्यकता आन पड़ती है; काम की गड़बड़ी को सुधारने के लिए अलग मेहनत करना पड़ता है।
और मानव स्वभाव की इसी कमजोरी को दूर करने के लिए आज से लगभग दो हजार वर्ष पहले मध्य भारत के मनीषी विष्णु शर्मा जी ने 75 कहानियों की एक श्रृंखला कुछ मूढ़ एवं अबोध राजकुमारों को विवेकी बनाने हेतु तैयार की थी ।
पञ्चतन्त्रम्इन कहानियों का उन अबोध राजकुमारों पर ऐसा अटूट असर पड़ा कि वे प्रबुद्ध हो गये।
21 वीं सदी में भी बहुतेरे मूढ़ ‘राजकुमार’ बचे हुए हैं; और उपर्युक्त असावधानी के शिकार हम सभी यदा-कदा हो ही जाते हैं। और इनसे बचने के लिए कुल 75 कथाओं के पंचतंत्र का आखिरी हिस्सा 14 कथाओं से युक्त अपरीक्षितकारकम् एक रामबाण ओषधि ही है। अतएव सभी के लिए प्रस्तुत रचना परम पठनीय है।
छात्रों की विशेष सुविधा हेतु शब्दार्थ और व्याख्या को व्यापक बनाने एवं प्रचुर पर्याय-शब्दों से परिपूर्ण करने की अनूठी चेष्टा प्रस्तुत संस्करण की विशेषता मानी जा सकती है।
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