Category: रामलाल कपूर ट्रस्ट रेवली
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बौधायन श्रौत सूत्रम् Baudhayana Srauta Sutram
Rs.150.00Sold By : The Rishi Mission Trustउपोद्घातः
१. कल्पप्रादुर्भावः १. १ यज्ञः
प्राचीन भारतीय समाजो यज्ञप्रधान प्रासीत् । सम्प्रत्युपलम्यमानं सम्पूर्णमेव प्राचीनं भारतीयवाङ्मयं याज्ञिकप्रसङ्गैरोतश्च प्रोतश्च वरीवृश्यते । यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म (शत० बा० १।७ ११५) इत्यास्थिषत मनीषिणः । यज्ञो धर्मश्च पर्यायवाचिनौ समजायेताम्, तत्र च श्रुतिरपि प्रमाणत्वेनोपन्यस्यते स्म । यज्ञो न केवलं वैयक्तिककामानामेव पूरकः, श्रपि तु मानवसमाजाभ्युदयाय कल्पत इत्यासीदास्था जनानाम् । सर्वमेध-पुरुषमेधसदृशा यागा यज्ञभावनायाश्चरमोत्कर्षं द्योतयन्ति । वार्षशतिकानां वार्षसह स्त्रिकारणां च सत्राणामुल्लेख: प्राचीनवाङ्मय उपलभ्यते ।’ यज्ञसम्पावनं गथ्यौषध्या विद्रव्याधीनम्, गव्योषध्याविद्रव्यारिण च कृषिगोपालन कर्माधीनम् तदायत्तं पुनः प्रधानं सामाजिक संघटनम् । प्रनया निमित्तनैमित्तिकशृङ्खलया समग्र एव मानवसमाजो यज्ञेन सम्बद्ध प्रासीत् । एवं सामाजिकान् प्राथिकान् धार्मिकान् सर्वान् ऐहिकामुहिमकपदार्थान् यज्ञ: स्वपरिधो समववेष्टत् । यज्ञविहीनभारतीयसंस्कृतेः कल्पनापि न सम्भवति । प्राचीन भारतीय समाजस्य धर्म-दर्शन-मनः संवेदनादीनां परिज्ञानाय साङ्गोपाङ्गानां यज्ञानां सम्यगवबोध आवश्यक इति निष्कर्ष: । ”
अथ को नाम यज्ञः ? द्रव्यं देवता त्याग इत्याहुराचार्या: 13 परमदेवस्य प्रकृतिस्था विभिन्ना विभूतयः ( शक्तयः) देवतापवेनाभिषीयन्ते । तत्र चेतनवद् व्यवहारो दृश्यते । मानवेन सहैतासां शक्तीनां सम्बन्धोऽग्निद्वारक इति देवतातत्त्वज्ञा प्राहु: । मानव परमदेवं प्रति कृतज्ञताप्रकाशनार्थं स्वकीयं सर्वस्वं देवताभ्यः समर्पयितुं तमेव द्वारीकरोति । यतो देवैः सह मानवस्य सम्बन्धोऽग्निद्वारैव सम्भवति, स्वकीयसर्वस्वस्य (प्राणानां ) च समर्पणस्य नास्ति सम्भव: ; प्रतस्तनिष्कयद्रव्यं (दधिपय प्रादि) अग्नय उपहरति मनुजः । तत्सन्नियोगेन चोद्दिष्टदेवतानामस्मरणपुर. सरं स्वत्वाधिकारं त्यजति सः । अस्याः प्रक्रिया या निर्वाहाय स परमदेवस्य वारणीम् (वेवम्) एवाश्रयति, यतो हि मानववाचि तत्सामर्थ्य क्ष, येन कर्म सम्पद्येत ।
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नाडी तत्व दर्शनम nadi tatva darshanm
Rs.350.00Sold By : The Rishi Mission Trustग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय
भारतीय आयुर्विज्ञान के अङ्गों में नाडी द्वारा रोगपरीक्षण प्रत्यन्त प्राचीन और चमत्कार पूर्ण तथ्य है। आयुर्वेद की चिकित्सा का यह मूल प्राधार है। प्राधुनिक विज्ञान जहां इस रहस्यमय विज्ञान से चकित एवं चमत्कृत होता है; वहां हमारे आधुनिक वैद्यबन्धु भी इस गम्भीर रहस्य से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। इस विषय की जो दो-चार छोटी-मोटी पुस्तकें मिलती हैं, वे उपपत्ति, तर्क, प्रमाण और युक्ति हीन सी प्रतीत होती हैं। आजकल यह अत्यन्त गम्भीर अत एव रहस्यपूर्ण विज्ञान केवल परम्परा के आधार पर ही जीवित रह गया है।
में आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धान्त पर व्यवस्थित नाडी- विज्ञान के गूढतम रहस्य का अनुसन्धान इस विज्ञान युग में अत्यावश्यक ही नहीं; अनिवार्य भी हो गया है। अन्यथा कुछ दिनों में यह रहस्य अनन्त के गर्भ में विलीन हो जायेगा । हर्ष का विषय है कि इस जटिल, दुरूह तथा अतिगम्भीर विषय को लेकर प्रखर प्रतिभासम्पन्न गवेषक विद्वान् वैद्य ने पांच वर्षों के निरन्तर अनुसन्धान एवं कठोर तपस्या द्वारा इस रहस्य के उद्घाटन में अधिकाधिक सफलता प्राप्त की है ।
गवेषक-विद्वान् लेखक ने इस अनुसन्धान को चरम सीमा तक पहुंचा दिया है जो दूतधरा विज्ञान के नाम से उल्लिखित है। इस विज्ञान द्वारा दूरदेश स्थित रोगी के रोग का निदान उसके दूत की नाडी द्वारा करने की सफल प्रक्रिया प्रदर्शित की है । लेखकने इसके शताधिक प्रयोग किये हैं और अनेक छात्रों को तैयार किया है । अनेक प्रसिद्ध वैद्यों, उच्च अधिकारियों एवं नागरिकोंने दूतधरा द्वारा चिकित्सा कराकर सफलता प्राप्त की है और प्रमाणपत्र दिये हैं ।
इसके अतिरिक्त पुस्तकमें सबसे प्रथम त्रिदोष सिद्धान्तका सप्रमाण विवेचन किया गया है जो भारतीय आयुर्वेद-सिद्धान्त का मूल आधार है । उसके अतिरिक्त पञ्चभूतों दोषों और मलों का विवेचन करते हुये चरक एवं सुश्रुत की अनेक पंक्तियों की रहस्यपूर्ण वैज्ञानिक व्याख्या भी विद्वान् वैद्यों एवं वैद्य-विद्यास्नातकोंके मननकी महान् वस्तु है । पुस्तक की एक एक बात सप्रमाण है, जो अनुसन्धानका मूल आधार है । वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, चरक, सुश्रुत तथा काश्यप संहिता आदि ग्रन्थों के अतिरिक्त किसी भी अनार्ष ग्रन्थ का प्रमाण के रूपमें नामोल्लेख इसमें नहीं है। आयुर्वेद की अनेक रहस्यमय गुत्थियों को सरलता से सप्रमाण सुलझाया गया है । 3
नाडी- विषयक अनुसन्धान करने के अनन्तर विद्वान् लेखक ने रावणकृत ‘नाडी- विवृति’ की युक्तियुक्त व्याख्या करते हुए कणाद नाडी, बसवराजीय-नाडी तथा नाडी- सम्बन्धी सभी उपलब्ध श्लोकों की यथावसर युक्ति पूर्ण व्याख्या कर दी है। सारांश यह कि लेखक ने नाडी- ज्ञान सम्बन्धी सर्वविध अन्धकारको दूर करने एवं आधुनिक विज्ञान का तर्कपूर्ण समाधान करने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है ।
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