Category: वानप्रस्थ साधक आश्रम रोजड़
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Vivek vairagya shlok Sangrah Vol 1-2
Rs.40.00Sold By : The Rishi Mission Trustवैदिक धर्म महान् है, वैदिक संस्कृति महान् है, वैदिक सभ्यता महान् है, वैदिक रीति-नीति और इतिहास महान् है । प्राचीन ऋषियों, मनीषियों, कवियों ने इन वैदिक सिद्धान्तों को संस्कृत भाषा के श्लोकों में बहुत ही आकर्षक, सरस तथा यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है । इन श्लोकों की एक – एक पंक्ति से निकलने वाला संदेश मनुष्य के कानों को बींधकर, मन को भेदकर हृदय पर बने हुए जन्म-जन्मान्तर के अज्ञान के संस्कारों को उखाड़कर जीवन में नई प्रेरणा, नये उत्साह तथा नई उमंग को उत्पन्न करता है । पतित, घृणित, निराश, निम्नस्तर का जीवन भी परिवर्तित होकर महान्, आदर्श, श्रद्धेय तथा अनुकरणीय बन जाता है ।
संस्कृत भाषा सर्वाधिक प्राचीन व वैज्ञानिक भाषा है और सभी भाषाओं की जननी है। इतना ही नहीं यह अति सरल तथा सुव्यवस्थित है । सामान्य मनुष्य इसको थोड़े ही समय में लिखना, पढ़ना, बोलना सीख लेता है । उससे भी बढ़कर विशेषता यह है कि प्राचीन सत्य सनातन वैदिक धर्म के मूल ग्रन्थ वेद, दर्शन, ‘उपनिषद्, गीता, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृतियाँ आदि संस्कृत भाषा में ही लिखे हुवे हैं । इन ग्रन्थों में लिखे मन्त्रों, श्लोकों, सूत्रों के भाव अत्यधिक महान् है । इनके अर्थों को जानकर मन में आनन्द, उत्साह, उमंग, आशा उत्पन्न होती है तथा हताश – निराश, अकर्मण्य निम्नस्तर का मनुष्य तत्काल नई प्रेरणा, ऊर्जा प्राप्त करके जीवन को महान् ऊँचाईयों तक ले जा सकता है ।
आश्रम में चलने वाले आर्ष गुरुकुल के आचार्य स्वामी मुक्तानन्द जी ने इस पुस्तिका के सम्पादन में पुरुषार्थ किया, सुझाव दिया तथा संशोधन किया है। मैं उनके प्रति कृतज्ञ । ऋषि-मुनियों की ये कृतियाँ जीवन में हमें कर्तव्य- अकर्तव्य का सरस- सुन्दर – स्पष्ट बोध कराती हैं । – आओ ! हम भी पवित्र आत्माओं की प्रेरक वाणी को पढ़कर
अपने जीवन को महान् तथा आदर्श बनावें ।
प्रकाशकीय
आचार्य ज्ञानेश्वरजी आर्य ने ‘विवेक वैराग्य श्लोक संग्रह’ के दो भागों का प्रकाशन कराया था । बहुत समय से दोनों का सम्मिलित एक रूप प्रकाशन करने का निवेदन आ रहा था । इस भावना को ध्यान में रख कर यह प्रकाशन किया जा रहा है । इसे शुद्ध रूप में प्रकाशित करने में ब्रह्मचारी शिवनाथ आर्य ने बहुत पुरुषार्थ किया । स्वामी मुक्तानन्द जी का मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ। मैं दोनों का धन्यवाद व आभार व्यक्त करता हूँ । दोनों के प्रति शुभकामनाएँ । आशा हैं यह प्रकाशन उपयोगी सिद्ध होगा ।
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योग मीमांसा Yog Mimansa
Rs.40.00Sold By : The Rishi Mission Trustयोग मानव जीवन के कल्याण का आधार है । योग के बिना अन्य सभी साधन पूर्णानन्द की प्राप्ति करवाने में समर्थ नहीं हैं। प्रत्येक प्राणी समस्त दुःखों से छूटकर पूर्ण, स्थायी, दुःखरहित आनन्द को प्राप्त करना चाहता है । इस उद्देश्य की पूर्ति योग से ही सम्भव है । इसलिए योग के वास्तविक स्वरूप को जानना व जनाना और यथाशक्ति उस पर चलना-चलाना मुख्योद्देश्य है। योग के स्वरूप को न जानने और उस पर न चलने के कारण मनुष्य जाति प्रायः दुःख- संतप्त है । इस वर्तमानकाल में योग के नाम पर बहुत कुछ प्रयास किये जा रहे हैं । परन्तु योग के स्थान में अयोग सिखाया जा रहा है । यदि इस झूठे योग को न रोका गया तो इसके परिणाम बहुत भयंकर होंगे । इस अन्ध-परम्परा से सच्चा योग भी कलंकित हो जायेगा । इसलिये योग के वास्तविक स्वरूप को जानना अत्यन्त आवश्यक है । योग क्या है और अयोग क्या है, इसको मनुष्य जान सकें, अपना तथा दूसरों का कल्याण कर सकें इसलिए योग के विषय में लिखना प्रारम्भ किया है । इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में योग का स्वरूप, योग का फल, उसके साधन और योग-मार्ग में आने वाले बाधकों का स्वरूप समझाने का प्रयास किया है । उत्तर भाग में यह बतलाया है कि योग के नाम पर क्या-क्या भ्रान्तियाँ प्रचलित हो गई हैं । इन दोनों भागों का अध्ययन करने पर यह निश्चय हो जायेगा कि वास्तविक योग क्या है ? और योग के नाम पर सिखाया जाने वाला अयोग क्या है ? आशा है कि बुद्धिमान् योग के जिज्ञासु इसको पढ़-पढ़ाकर अपना और अन्यों का कल्याण करेंगे ।
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आर्यवीर दिनचर्या (aryaveer dincharya)
Rs.20.00Sold By : The Rishi Mission Trustइस लघु पुस्तिका में आर्यवीर की दिनचर्या कैसी हो, इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए संकलन किया गया है, इस पुस्तक में शारीरिक पाठ्यक्रम के अलावा आर्यवीर दल के दिनचर्या में प्रयुक्त सभी मन्त्र तथा आर्यवीर दल के राष्ट्रगान ध्वजगान,आर्य समाज के नियम, संगठन सूक्त जैसी उपयुक्त सामग्री का संकलन किया गया है शिविर में भावार्थ सहित संध्या करायी जाने पर आर्य वीरों की मांग को देखकर इस संस्करण में उक्त भावार्थ जोड़ा गया है ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना का स्व डॉ धर्मवीर जी दवारा लिखा तथा संगठन सूक्त का डॉ त्रिलोकियनाथ क्षत्रिय जी दवारा लिखित पद्द्यानुवाद इस पुस्तक की अन्य विशिष्टता है , अत: यह पुस्तक अपने बच्चों को अवश्य ही पढ़ायें
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Yogdarshanam योगदर्शनम
Rs.35.00Sold By : The Rishi Mission Trustसमस्त दुखों से निवृत्ति मुक्ति प्राप्त कर लेने पर ही होती है। मुक्ति अविद्या के संस्कारों के नष्ट होने पर संभव है। अविद्या के संस्कार ईश्वर साक्षात्कार के बिना नष्ट नहीं हो सकते और ईश्वर का साक्षात्कार समाधि के बिना नहीं हो सकता। समाधि चित्तवृत्ति निरोध का नाम है। चित्त वृत्तियों का निरोध यम नियम आदि योग के आठ अंगों का पालन करने से होता है। इन यम नियमों से लेकर समाधि और आगे मुक्ति तथा अन्य समस्त साधकों और साधकों का संपूर्ण विधि विधान योग दर्शन में विद्यमान है। हमारा सौभाग्य है कि आज भी हमें महर्षि पतंजलि जैसे महान ऋषियों का संदेश मोक्ष प्राप्ति करने कराने के लिए उपलब्ध है।
मात्र 160/-
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Yogdarshanam vyas bhasya sahit (swami styapati ji privrajak hindi bhasy sahit)
Rs.320.00Sold By : The Rishi Mission Trustसमस्त दुखों से निवृत्ति मुक्ति प्राप्त कर लेने पर ही होती है। मुक्ति अविद्या के संस्कारों के नष्ट होने पर संभव है। अविद्या के संस्कार ईश्वर साक्षात्कार के बिना नष्ट नहीं हो सकते और ईश्वर का साक्षात्कार समाधि के बिना नहीं हो सकता। समाधि चित्तवृत्ति निरोध का नाम है। चित्त वृत्तियों का निरोध यम नियम आदि योग के आठ अंगों का पालन करने से होता है। इन यम नियमों से लेकर समाधि और आगे मुक्ति तथा अन्य समस्त साधकों और साधकों का संपूर्ण विधि विधान योग दर्शन में विद्यमान है। हमारा सौभाग्य है कि आज भी हमें महर्षि पतंजलि जैसे महान ऋषियों का संदेश मोक्ष प्राप्ति करने कराने के लिए उपलब्ध है।
मात्र 160/-
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