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Category: मनसाराम वैदिक तोप

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  • पौराणिक पोप पर वैदिक तोप

     

    आर्यसमाज का प्रारम्भिक युग शास्त्रार्थों का युग था। एक समय था जब आर्यसमाज के प्रत्येक उत्सव पर शास्त्रार्थ होता था। वह युग समाप्त हुआ परिणामस्वरूप नए-नए मत और पथ पुनः पनपने लगे।

    इस ग्रन्थ के लेखक पं० मनसाराम जी ने जहाँ सहस्रों व्याख्यान दिए, सैकड़ों शास्त्रार्थ किए, वहीं अनेकों पुस्तकें भी लिखीं। महर्षि दयानन्द के अमर ग्रन्थ “सत्यार्थ प्रकाश” ने सभी मत-मतान्तरों की नींव हिला दी। जिसके विरुद्ध कई पुस्तकें लिखी गईं एवं दुष्प्रचार किया गया। सनातन धर्म के समस्त पण्डितों ने मिलकर “सनातन धर्म विजय” नाम से एक पुस्तक प्रकाशित करवाई। इस विचार से कि जनता में भ्रम न फैले, पं० श्री मनसारामजी आर्योपदेशक ने इस पुस्तक के उत्तर में एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक, जिसका नाम “सनातन धर्म की मौत” (पौराणिक पोप पर वैदिक तोप), अत्यन्त परिश्रम से युक्त और प्रमाणपूर्वक लिखी।

    यह पुस्तक पाण्डित्यपूर्ण, युक्ति और प्रमाण-पुर: सर शैली में लिखी गई है। प्रत्येक बात को सिद्ध करने के लिए वेद, स्मृति और शास्त्रार्थों के उद्धरण दिये गये हैं। पौराणिक गाथाओं की सही जानकारी प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है यह।

    यह ग्रन्थ 1933 में उर्दू में छपा था। स्वामी जगदीश्वरानन्द जी ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक इसका अनुवाद किया है। सभी प्रमाणों को मूल ग्रन्थों से मिलाया है। जहाँ पते गलते थे, उन्हें शुद्ध कर दिया है। मूल उद्धरणों में जो मुद्रण की अशुद्धियाँ थीं, उन्हें भी शोध दिया है। इस प्रकार इस ग्रन्थ को उपयोगी बनाने का भरसक प्रयत्न किया है। स्थान-स्थान पर टिप्पणियाँ देकर इसकी गरिमा को और बढ़ाया है। इस बार मन्त्र और श्लोकों की अनुक्रमणिका देकर, उपयोगिता और बढ़ा दी गई है।

    हमें पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों के हृदय और मस्तिष्क को उद्वेलित कर उन्हें वैदिक धर्म की ओर आकृष्ट करेगी।

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  • ‘पौराणिक पोलप्रकाश

    जिस समय भारत में अविद्या और अन्धकार छा रहा था, नये-नये पन्थ, और मत पनप रहे थे, वैदिक धर्मी विधर्मी बन रहे थे, मूर्तिपूजा, अन्धविश्वास, गुरुडम, पाखण्डवाद बढ़ रहा था, मन्दिरों में देवदासियाँ रक्खी जाती थीं, पण्डों और पुजारियों ने लूट का बाजार गर्म कर रखा था, दुराचार और व्यभिचार पनप रहा था-ऐसे भीषण समय में महर्षि दयानन्द सरस्वती भारतीय रंगमञ्च पर अवतरित हुए।

    ओ३म्

    महर्षि दयानन्द के बलिदान के पश्चात् अनेक लोगों ने महर्षि दयानन्द के ग्रन्थों पर लेखनी उठाई। अनेक ग्रन्थ उनके खण्डन में लिखे गये। इस प्रकार का एक ग्रन्थ लिखा गया ‘आर्यसमाज की मौत’। इस पुस्तक का मुँहतोड़ उत्तर दिया शास्त्रार्थमहारथ: पं० मनसारामजी ‘वैदिक तोप’ ने।

    पुस्तक क्या है, रत्नों से तोलने योग्य है। महर्षि पर जितने भी आक्षेप किये गये हैं, उन सबका मुँहतोड़ उत्तर है। प्रमाणों की झड़ी लगी हुई है। पुस्तक कैसी है? ऐसी कि पढ़ते ही अपने पाठकों के हृदयों पर सिक्का जमा देगी।

    आज पाखण्ड फिर बढ़ रहा है; मूर्तिपूजा, अवतारवाद और गुरुडम खुलकर ताण्डव नृत्य कर हैं। आज पुन: इस बात की आवश्यकता है कि इस पौराणिकता के गढ़ पर प्रबल प्रहार किया जाए। यह पुस्तक इस कार्य में अत्यन्त सहायक होगी।

    इस ग्रन्थ के सम्पादन और ईक्ष्यवाचन (प्रूफ रीडिंग) स्वामी जगदीश्वरानन्दजी ने बड़े परिश्रम से किया है। इस ग्रन्थ के प्रत्येक प्रमाण को मूल ग्रन्थ से मिलाया है। जहाँ प्रमाण छूट गये थे, वहाँ ढूँढकर लिख दिये गये हैं। जहाँ पते अशुद्ध थे उन्हें शोध दिया गया है। इस बार मन्त्रों तथा श्लोकों की अनुक्रमणिका देकर इसकी उपयोगिता को बढ़ा दिया गया है। महर्षि दयानन्द की आलोचनाओं से घबराकर लोगों ने अपने ग्रन्थों को बदल डाला। यह आर्यसमाज की बहुत बड़ी विजय है। आशा है पाठक पहले संस्करणों की भाँति इसे भी अपनाएँगे।

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