नमस्ते जी !!! प्रत्येक ग्राहक के लिये अब इंडिया पोस्ट से पूर्णत: शिपिंग फ्री,ऋषि मिशन ट्रस्ट के पंजिकृत सदस्यता अभियान में शामिल हो कर ट्रस्ट द्वारा चलाई जा रही अनेक गतिविधियों का लाभ उठा सकते हैं। जिसमें 11 पुस्तक सेट (महर्षि दयानंद सरस्वती कृत), सदस्यता कार्ड, महर्षि चित्र, केलेंडर, 10% एक्स्ट्रा डिस्काउंट, अन्य अनेक लाभ विशेष सूचना अब आपको कोरियर से भी पुस्तकें भेजी जाती है जो मात्र 1,7 दिन में पुरे भारत में डिलेवरी हो जाती है, इस सुविधा का खर्च आपको अतिरिक्त देना होता है

Rishi Mission is a Non Profitable Organization In India

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop

Category: सत्यार्थ प्रकाश

Showing all 18 results

  • यह प्रश्न बहुत साधारण है और इसका उत्तर उतना ही जटिल है कारण हम न तो सदैव दुःखी रहते हैं न सुखी रहते हैं। कई बार हम चिंतित होते हैं तो कई बार कुछ प्रसंगों को लेकर हमारे मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि दुनिया में हम क्यों आये? हम आये तो जीवन को किस तरह जियें ? हम दुःखी क्यों होते हैं? क्या है चिंता? क्या है धर्म? क्या है पूजा उपासना के अर्थ ? |आखिर वो भगवान कैसा है जिसकी सब पूजा करते हैं? यही नहीं कई बार हम जब ज्यादा परेशान होते हैं तो ज्योतिष और बाबाओं के चक्कर में भी आ जाते हैं इन सब सवालों के जवाब यहां नहीं दिये जा सकते, लेकिन “सत्यार्थ प्रकाश का हर एक समुल्लास (अध्याय) आपके ज्ञान और शंकाओं का निवारण एक गुरु की तरह करता है जो सिर्फ सच्ची शिक्षा देता है । माना कि आज का जीवन आधुनिक है, हम भौतिक युग में जी रहे हैं, हमारे हाथों में कम्प्यूटर है, महंगे फोन हैं, हम आधुनिकता की बातें करते हैं लेकिन जब हम किसी आर्थिक, सामाजिक या पारिवारिक परेशानी में आते हैं तब हम हजारों साल पुराने अन्धविश्वास में जाने अनजाने में फंस जाते हैं। सर्वविदित है कि 140 सालों में लाखों लोगों का जीवन परिवर्तित करने वाला, सत्य और असत्य की विवेचना करने वाले महानतम ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के रचनाकार महर्षि दयानन्द सरस्वती मूल रूप से गुजराती थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने “सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी भाषा में की। क्योंकि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ की रचना किसी एक धर्म के लाभ-हानि के लिए नहीं की अपितु मानव मात्र के कल्याण और ज्ञान वर्धन के लिए की ताकि हम निष्पक्ष होकर सत्य और असत्य का अन्तर जान सकें और असत्य मार्ग को छोड़कर सत्य मार्ग की ओर बढ़ सकें क्योंकि उनका मानना था कि दुःख का कारण असत्य और अज्ञान है

    Sold By : The Rishi Mission Trust
    Add to cart
  • यह प्रश्न बहुत साधारण है और इसका उत्तर उतना ही जटिल है कारण हम न तो सदैव दुःखी रहते हैं न सुखी रहते हैं। कई बार हम चिंतित होते हैं तो कई बार कुछ प्रसंगों को लेकर हमारे मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि दुनिया में हम क्यों आये? हम आये तो जीवन को किस तरह जियें ? हम दुःखी क्यों होते हैं? क्या है चिंता? क्या है धर्म? क्या है पूजा उपासना के अर्थ ? |आखिर वो भगवान कैसा है जिसकी सब पूजा करते हैं? यही नहीं कई बार हम जब ज्यादा परेशान होते हैं तो ज्योतिष और बाबाओं के चक्कर में भी आ जाते हैं इन सब सवालों के जवाब यहां नहीं दिये जा सकते, लेकिन “सत्यार्थ प्रकाश का हर एक समुल्लास (अध्याय) आपके ज्ञान और शंकाओं का निवारण एक गुरु की तरह करता है जो सिर्फ सच्ची शिक्षा देता है । माना कि आज का जीवन आधुनिक है, हम भौतिक युग में जी रहे हैं, हमारे हाथों में कम्प्यूटर है, महंगे फोन हैं, हम आधुनिकता की बातें करते हैं लेकिन जब हम किसी आर्थिक, सामाजिक या पारिवारिक परेशानी में आते हैं तब हम हजारों साल पुराने अन्धविश्वास में जाने अनजाने में फंस जाते हैं। सर्वविदित है कि 140 सालों में लाखों लोगों का जीवन परिवर्तित करने वाला, सत्य और असत्य की विवेचना करने वाले महानतम ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के रचनाकार महर्षि दयानन्द सरस्वती मूल रूप से गुजराती थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने “सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी भाषा में की। क्योंकि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ की रचना किसी एक धर्म के लाभ-हानि के लिए नहीं की अपितु मानव मात्र के कल्याण और ज्ञान वर्धन के लिए की ताकि हम निष्पक्ष होकर सत्य और असत्य का अन्तर जान सकें और असत्य मार्ग को छोड़कर सत्य मार्ग की ओर बढ़ सकें क्योंकि उनका मानना था कि दुःख का कारण असत्य और अज्ञान है

    Sold By : The Rishi Mission Trust
    Add to cart
  • यह प्रश्न बहुत साधारण है और इसका उत्तर उतना ही जटिल है कारण हम न तो सदैव दुःखी रहते हैं न सुखी रहते हैं। कई बार हम चिंतित होते हैं तो कई बार कुछ प्रसंगों को लेकर हमारे मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि दुनिया में हम क्यों आये? हम आये तो जीवन को किस तरह जियें ? हम दुःखी क्यों होते हैं? क्या है चिंता? क्या है धर्म? क्या है पूजा उपासना के अर्थ ? |आखिर वो भगवान कैसा है जिसकी सब पूजा करते हैं? यही नहीं कई बार हम जब ज्यादा परेशान होते हैं तो ज्योतिष और बाबाओं के चक्कर में भी आ जाते हैं इन सब सवालों के जवाब यहां नहीं दिये जा सकते, लेकिन “सत्यार्थ प्रकाश का हर एक समुल्लास (अध्याय) आपके ज्ञान और शंकाओं का निवारण एक गुरु की तरह करता है जो सिर्फ सच्ची शिक्षा देता है । माना कि आज का जीवन आधुनिक है, हम भौतिक युग में जी रहे हैं, हमारे हाथों में कम्प्यूटर है, महंगे फोन हैं, हम आधुनिकता की बातें करते हैं लेकिन जब हम किसी आर्थिक, सामाजिक या पारिवारिक परेशानी में आते हैं तब हम हजारों साल पुराने अन्धविश्वास में जाने अनजाने में फंस जाते हैं। सर्वविदित है कि 140 सालों में लाखों लोगों का जीवन परिवर्तित करने वाला, सत्य और असत्य की विवेचना करने वाले महानतम ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के रचनाकार महर्षि दयानन्द सरस्वती मूल रूप से गुजराती थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने “सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी भाषा में की। क्योंकि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ की रचना किसी एक धर्म के लाभ-हानि के लिए नहीं की अपितु मानव मात्र के कल्याण और ज्ञान वर्धन के लिए की ताकि हम निष्पक्ष होकर सत्य और असत्य का अन्तर जान सकें और असत्य मार्ग को छोड़कर सत्य मार्ग की ओर बढ़ सकें क्योंकि उनका मानना था कि दुःख का कारण असत्य और अज्ञान है

    Sold By : The Rishi Mission Trust
    Add to cart
  • हम सत्यार्थ प्रकाश क्यों पढ़ें?
    यह प्रश्न बहुत साधारण है और इसका उत्तर उतना ही जटिल है कारण हम न तो सदैव दुःखी रहते हैं न सुखी रहते हैं। कई बार हम चिंतित होते हैं तो कई बार कुछ प्रसंगों को लेकर हमारे मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि दुनिया में हम क्यों आये? हम आये तो जीवन को किस तरह जियें ? हम दुःखी क्यों होते हैं? क्या है चिंता? क्या है धर्म? क्या है पूजा उपासना के अर्थ ? |आखिर वो भगवान कैसा है जिसकी सब पूजा करते हैं? यही नहीं कई बार हम जब ज्यादा परेशान होते हैं तो ज्योतिष और बाबाओं के चक्कर में भी आ जाते हैं इन सब सवालों के जवाब यहां नहीं दिये जा सकते, लेकिन “सत्यार्थ प्रकाश का हर एक समुल्लास (अध्याय) आपके ज्ञान और शंकाओं का निवारण एक गुरु की तरह करता है जो सिर्फ सच्ची शिक्षा देता है ।
    माना कि आज का जीवन आधुनिक है, हम भौतिक युग में जी रहे हैं, हमारे हाथों में कम्प्यूटर है, महंगे फोन हैं, हम आधुनिकता की बातें करते हैं लेकिन जब हम किसी आर्थिक, सामाजिक या पारिवारिक परेशानी में आते हैं तब हम हजारों साल पुराने अन्धविश्वास में जाने अनजाने में फंस जाते हैं।
    सर्वविदित है कि 140 सालों में लाखों लोगों का जीवन परिवर्तित करने वाला, सत्य और असत्य की विवेचना करने वाले महानतम ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के रचनाकार महर्षि दयानन्द सरस्वती मूल रूप से गुजराती थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने “सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी भाषा में की। हो सकता है जब आप इसे पढ़ना शुरू करें तो इ भाषा आपको मुश्किल लगे किन्तु जब आप पढ़ेंगे तो आपको मानवता और ” धर्म से जुड़े सभी रहस्य उजागर होंगे क्योंकि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ की रचना किसी एक धर्म के लाभ-हानि के लिए नहीं की अपितु मानव मात्र के कल्याण और ज्ञान वर्धन के लिए की ताकि हम निष्पक्ष होकर सत्य और असत्य का अन्तर जान सकें और असत्य मार्ग को छोड़कर सत्य मार्ग की ओर बढ़ सकें क्योंकि उनका मानना था कि दुःख का कारण असत्य और अज्ञान है अतः सुख की प्राप्ति के सत्य मार्ग को जानने का प्रयत्न प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए ।

    Sold By : The Rishi Mission Trust
    Add to cart
  • Satyarth Prakash (Light of Truth) deals with the docttrines of the Sanatan Vedic Dharma and philosophy. It also consists of critical examination of different religions and sectorian beliefs. This Book as translation of Satyarth Prakash into English is unique in several aspects. As most of the Vedic terms and Samskrita words do not have their equivalent in the English vocabulary, the translator has very carefully chosen the English words which convey the correct and right meaning of the terms to a greater range in this translation. Besides, being a scholar of Samskrita and science, his insight into the Veda mantras, Slokas and other Samskrita aphorisms is remarkable. He has thus made this translation easily understable and to the point both for the Indians who are familiar with the Vedic and Samskrita terms and also for the English speaking people who are eager to have a clear understanding of the ancient and oldest Sanatana Vedic Dharma, culture and history of the Āryas. This translation is indeed a must read for missionaries, students of comparative religions, and for the seekers of truth.

    Sold By : The Rishi Mission Trust
    Add to cart
  • इस संस्करण के संबंध में !!!                                                                                           परोपकारिणी सभा अजमेर में महर्षि दयानंद सरस्वती के प्राय: सभी ग्रंथों की मूल प्रतियां है,  इनमें से सत्यार्थ प्रकाश की दो प्रतियां है, इनके नाम “मूलप्रति” तथा “मुद्रणप्रति” रखे हुए हैं, मूलप्रति से  मुद्रणप्रति तैयार की गई थी, मुद्रणप्रति (प्रेस कापी) के आधार पर सन १८८४  इसवी  में           सत्यार्थप्रकाश  का द्वितीय संस्करण छपा था, इतने लंबे अंतराल में  विभिन्न संशोधकों  के हाथों इतने संशोधन, परिवर्तन तथा परिवर्धन हो गए कि मूलपाठ का निश्चय करना कठिन होने लग गया था, मूल प्रति से मुद्रण प्रति लिखने वाले महर्षि के लेखक तथा प्रतिलिपिकर्ता  ने सर्वप्रथम यह फेरबदल की थी, महर्षि अन्य लोकोपकारक  कार्यों में व्यस्त रहने से तथा लेखक पर विश्वास करने से मुद्रणप्रति को मूलप्रति से अक्षरश: से नहीं मिला सके, परिणामत: लेखक नें  प्रतिलिपि करते समय अनेक  स्थलों  पर मूल पंक्तियां छोड़कर उनके आशय के आधार पर अपने शब्दों में महर्षि  का भाव अभिव्यक्त कर दिया,  अनेक स्थानों पर भूल से भी पंक्तियां छूट गई तथा अनेक पंक्तियां दोबारा भी लिखी गई, अनेकत्र  मूल शब्द के स्थान पर पर्यायवाची शब्द भी लिख दिए थे मुंशी समर्थदान  नें भी  पुनरावृति समझकर 13 वें 14 वें  समुल्लास की अनेक आयतें और समीक्षाएं काट दि , यह सब करना महर्षि दयानंद सरस्वती के अभिप्राय से   विरुद्ध होता चला गया,

    परोपकारिणी सभा के अतिरिक्त अन्य प्रकाशको के पास यह सुविधा कभी नहीं रही कि वे  मूलप्रति से मिलान करके महर्षि के सभी ग्रंथों का शुद्धतम पाठ प्रकाशित कर सकें परोपकारिणी सभा की ओर से भी कभी-कभी एक मुद्रणप्रति (प्रेस कापी) से ही मिलान करके प्रकाशन किया जाता रहा मूलप्रति की ओर  विशेष दृष्टिपात नहीं किया गया (किंतु किसी किसी ने कहीं-कहीं पाठ देखकर सामान्य  परिवर्तन किए हैं) और न कभी यह संदेह  हुआ कि दोनों प्रतियों में कोई मूलभूत पर्याप्त अंतर भी हो सकता है,

    गत अनेक शताब्दियों में ऋषि मुनिकृत ग्रंथों में विभिन्न  मतावलम्बियों ने अपने -अपने संप्रदाय के पुष्टियुक्त वचन बना बनाकर प्रक्षिप्त कर दिए हैं इसके परिणामस्वरुप मनुस्मृति,  ब्राह्मणग्रंथ, रामायण, महाभारत, श्रोतसूत्र और गृहसूत्र आदि ग्रंथों में वेददि  शास्त्रों की मान्यताओं के विपरीत भी लेख देखने को मिलते हैं इसी संभावना का भय  है महर्षि दयानंद सरस्वती के ग्रंथों में भी दृष्टिगोचर होने लगा था इस भय के  निवारणार्थ परोपकारिणी  सभा ने निश्चय किया कि महर्षि के हस्तलेखों से   मिलान करके सत्यार्थ प्रकाश आदि  सभी ग्रंथों का शुद्ध संस्करण निकाला जाए इसीलिए अनेक विद्वानों के सहयोग और   सत्परामार्श  के पश्चात संस्करण में निम्नलिखित मापदंड अपनाए गए हैं—

    1. मूले मूलाभावादमूलं मूलम् ( सांख्य १.६७ ) कारण का कारण और मूल का मूल नहीं हुआ करता, इसलिए सबका मूलकारण होने से सत्यार्थप्रकाश की मूलप्रति स्वत: प्रमाण है

    2. मुद्रणप्रति जहां तक मूलप्रति के अनुकूल है, वहां तक उसका पाठ मान्य किया है, प्रतिलिपिकर्ता  द्वारा श्रद्धा अथवा  भावुकतावश बढ़ाये  गए अनावश्यक और अनार्ष  वाक्यों को अमान्य किया है

    3. जहां मुद्रणप्रति में मूलप्रति  से गलत  पाठ उतारा और महर्षि उसमें  यथामति  संशोधन करने का यत्न किया, ऐसी स्थिति में  मूलप्रति  का पाठ   उससे अच्छा होने से उसे स्वीकार किया गया है

    4.मुद्रण प्रति में महर्षि जी ने जहाँ-जहाँ सव्ह्स्त  से आवश्यक परिवर्तन परिवर्तन किए हैं वे सभी स्वीकार किए हैं

    5. सन १८८३ से १८८४ तक प्रकाशित हुए  सत्यार्थ प्रकाश के द्वितीय संस्करण में प्रूफ देखते समय   मुद्रणप्रति के पाठ से हटकर जो  परिवर्तन-परिवर्धन  किए गए थे वे  भी प्राय: सभी अपनाएं हैं

    कुछ विद्वान महर्षि की भाषा में वर्तमान समय अनुकूल परिवर्तन करने का तथा  भाव को स्पष्ट करने के लिए कुछ शब्द बढ़ा  देने का व्यर्थ आग्रह किया करते हैं यह अनुचित है अतः इस संस्करण में ऐसा कुछ नहीं किया गया है

    इस प्रकार इस ग्रंथ को शुद्धतम  प्रकाशित करने के लिए विशेष यत्न किया गया है पुनरपि अनवधानतावश वस्तुतः  कोई त्रुटि रह गई हो तो शुद्धभाव से सूचित करने पर आगामी आवर्ती में उसे शुद्ध कर दिया जाएगा क्योंकि ऐसे कार्यों में दुराग्रह और  अभिमान के छोड़ने से ही सत्यमत गृहित  हो सकता है इसी में विद्वता  की शोभा भी  है

    Sold By : The Rishi Mission Trust
    Add to cart
  • सत्यार्थ प्रकाश का यह विशिष्ट संस्करण है तथा अब तक प्रकाशित संस्करणों में शुद्धतम संस्करण है, सत्यार्थ- प्रकाश की मूल हस्तलिखित प्रति, उसकी प्रेस कापी व द्वितीय संस्करण से इसके पाठों का को अक्षरश: मिलान किया गया है। इसके अतिरिक्त महर्षि दयानन्द द्वारा सत्यार्थ में दिये गये उद्धरणों का मिलान भी महर्षि द्वारा उपयोग लिये गये ग्रन्थ यथा मनुस्मृति, बाइबिल, कुरान, प्रकरण रत्नाकर आदि ग्रन्थों से किया गया है, दोनों भागों की कुल पृष्ठ संख्या 2276 है। इसकी विषय सूची 46 पृष्ठों की है आर्य समाज के दिग्गज विद्वानों यथा – सर्वश्री भगवदत्त, स्वामी वेदानन्द, पं.युधिष्ठिर मीमांसक, एवं जगदेव सिद्धान्ती व संपादक की लगभग 7045 टिप्पणियां हैं, द्वितीय संस्करण में छूटे पाठ लगभग 402 पाठों को सम्मिलित किया गया है द्वितीय स. से लगभग 1080 पाठों का ग्रहण किया गया है। इस प्रकार यह सत्यार्थ प्रकाश का श्रेष्ठतम संस्करण है इसका उपयोग करिये और लाम उठाइए

    Sold By : The Rishi Mission Trust
    Add to cart

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop