Category: स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
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Valmiki-Ramayana वाल्मीकि रामायण
Rs.450.00Sold By : The Rishi Mission Trustवाल्मीकि रामायण आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान, निरंतर साहित्य साधना में संलग्न रामायण के इस ग्रंथ के समालोचक एवं मर्मज्य लेखक स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती है , आप यदि अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की झांकी देखना चाहते है , यदि आप मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन का अध्ययन करना चाहते है, यदि आप प्राचीन राजनीति (राज्यव्यवस्था ) का स्वरूप देखना चाहते है, यदि आप रामायण के सम्बन्ध में प्रचलित भ्रांत धारणाओं का समाधान पाना चाहते है, यदि आप भ्रात्री प्रेम, नारी गौरव, आदर्श सेवक, आदर्श मित्र, आदर्श राज्य, आदर्श पुत्र के स्वरूपों का अवलोकन करना चाहते है, यदि आप रामायण का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहते है तो यह रामायण भाष्य सैकड़ों टिप्पणीयों से समलंकित ६०००श्लोकों में रचा गया है आप इसका स्वाध्याय अवश्य करें
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Mahabharatam महाभारतम
Rs.1,200.00Sold By : The Rishi Mission Trustमहाभारत ज्ञान का सबसे बड़ा कोश है, महाभारत महर्षि व्यास द्वारा प्रज्वलित ज्ञान प्रदीप है, यह धर्म का विश्वकोष है इस ग्रंथ में जहां आत्मा की अमरता का संदेश गीता है वहां राजनीति के संबंध में कणिक नीति, नारद नीति और विदुर नीति जैसे दिव्य उपदेश है जिसमें राजनीति के साथ साथ आचार और लोक व्यवहार का भी सुंदर निरूपण है सांस्कृतिक ऐतिहासिक धार्मिक राजनीतिक आदि अनेक दृष्टियों से महाभारत एक गौरवमय ग्रंथ है, इन्हीं गुणों के कारण इसे पांचवा वेद भी कहा जाता है, महाभारत इतना बड़ा ग्रंथ है कि साधन पाठक के लिए उसका पढना कठिन ही है स्वामी जी ने अत्यंत परिश्रम से यह संक्षिप्त संकलन तैयार किया है इसमें अश्लील असंभव गप्पों , असत्य और अनैतिहासिक घटनाओं को छोड़ दिया है, महाभारत का सार सर्वस्व इसमें दे दिया है, लोगों में ऐसी धारणा प्रचलित है कि जिस घर में महाभारत का पाठ होता है वहां गृह कलह लड़ाई झगड़ा आरंभ हो जाता है अतः घर में महाभारत नहीं पड़नी चाहिए यह धारणा सर्वथा मिथ्या और भ्रांत है, हमारा विश्वास है कि जहां महाभारत का पाठ होगा वहां के निवासियों के चरित्रों का उत्थान और मानव जीवन का कल्याण होगा हिचकिये नहीं महाभारत का पाठ कीजिए और इस की शिक्षाओं को अपने जीवन में धारण कीजिये ,इस संस्करण में असंभव अश्लील और अश्लील कथाओं को निकाल दिया गया है लगभग 16000 श्लोकों में संपूर्ण महाभारत पूर्ण हुआ है श्लोकों का तारतम्य इस प्रकार मिलाया गया है कि कथा का संबंध निरंतर बना रहता है, यदि आप अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की, संस्कृति और सभ्यता की, ज्ञान विज्ञान की, आचार व्यवहार की झांकी देखना चाहते हैं, यदि योगीराज कृष्ण की नीतिमतता देखना चाहते हैं, यदि प्राचीन समय की राजव्यवस्था की झलक देखना चाहते हैं, यदि आप जानना चाहते हैं कि द्रोपती का चीर खींचा गया था, क्या एकलव्य का अंगूठा काटा गया था, क्या युध्द के समय अभिमन्यु की अवस्था 16 वर्ष की थी,क्या कर्ण सूत पुत्र था, क्या जयद्रथ को धोखे से मारा गया, क्या कोरवों की उत्पत्ति घड़ों से हुई थी? आदि
यदि आप भात्री प्रेम, नारी का आदर्श सदाचार, धर्म का स्वरूप, गृहस्थ का आदर्श, मोक्ष का स्वरूप, वर्ण और आश्रमों के धर्म, प्राचीन राज्य का स्वरूप आदि के संबंध में जानना चाहते तो एक बार इस ग्रंथ को अवश्य पढ़ें
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Yajurveda-Shatakam यजुर्वेद शतकम
Rs.35.00Sold By : The Rishi Mission Trustवेद वैदिक संस्कृति के आधार स्तंभ है, वेद प्रभु प्रदत वह ज्ञान है, जो सृष्टि के आदि में मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और चारित्रिक उन्नति के पथ प्रदर्शन के लिए मिला था, यह ज्ञान चार ऋषीयों को मिला था, ज्ञानस्वरूप प्रभु ने यजुर्वेद का प्रकाश वायु ऋषि के ह्रदय में किया था याजिक प्रक्रिया में यजुर्वेद का प्रमुख एवं महत्वपूर्ण स्थान है अतः इसे यजुर्वेद भी कहते हैं यज्ञ का एक नाम अध्वर भी है, अतः इसे अध्वर्वेद भी कहते हैं, चारों वेदों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं, उन्हीं के अनुसार यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान है, यजुर्वेद कर्म वेद है, पहले ही मंत्र में श्रेष्ठतम कर्मों को करने का आदेश दिया गया है, अंत में भी कर्म करने पर बल दिया गया है, मनुष्य को चाहिए कि वह इस संसार में 100 वर्ष तक कर्म करते हुए जीने की इच्छा करें ,यजुर्वेद यज्ञवेद है और कर्मकांड प्रधान है परंतु यज्ञ का अर्थ संकुचित न होकर बहुत व्यापक है प्रत्येक परोपकार का कर्म यज्ञ है यजुर्वेद में धर्म नीति, समाजनीति, राजनीति, अर्थनीति, शिल्प कला कौशल तथा मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत सभी कर्मों का वर्णन है, अध्यात्म ज्ञान के गूढ़ तत्व भी इसमें स्थान स्थान पर मिलते हैं, इसका 40 वा अध्याय तो सारे का सारा ही आध्यात्मिक तत्वों से परिपूर्ण है, यह अध्यात्म ईशोपनिषद के नाम से प्रसिद्ध है, जिस पर समस्त संसार मोहित है, प्राचीन काल में यजुर्वेद की 101 शाखाएं थी इन शाखाओं के भी दो प्रधान वर्ग है एक शुक्ल और दूसरा कृष्ण, शुक्ल यजुर्वेद की 15 शाखायें थी और कृष्ण यजुर्वेद की 81 शुक्ल यजुर्वेद का ब्राहमण शतपथ और उपवेद धनुर्वेद है,
यजुर्वेद की अध्याय संख्या 40 और मंत्रों की संख्या 1975 है, महर्षि दयानंद ने शुक्ल यजुर्वेद पर अपना भाष्य लिखा है ,महर्षि दयानंद का भाष्य अपूर्व एवं अनूठा है उव्वट और महीधर के भाष्य इतने अश्लील है कि उन्हें सभ्य समाज के समक्ष बैठकर पढ़ा नहीं जा सकता, इसके विपरीत महर्षि दयानन्द का भाष्य इस अश्लीलता से सर्वथा रहित है महर्षि दयानंद का भाष्य वैदिक सत्य सिद्धन्तों का प्रतिपादन तथा मनुष्यों के दैनिक कर्तव्यों का संदेश व उपदेश देता है, इस पुस्तक में महर्षि के भाष्य से 100 मन्त्र दिये गये हैं इसमें भी प्रत्येक मंत्र का एक शीर्षक दे दिया है जिसमें मन्त्र समझने की सुविधा हो, मंत्रों के अंत में जो संख्या दी गई है वह अध्याय और मंत्र की सूचक है, वेद का पढ़ना पढ़ना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है, आप भी अपने परम धर्म का पालन कीजिए प्रतिदिन वेद का स्वाध्याय कीजिए यदि अधिक नहीं हो तो एक मन्त्र अवश्य पढ़िए इस संग्रह को पढ़कर कुछ व्यक्तियों को भी मूल वेद पढ़ने की प्रेरणा होगी तो हम अपने परिश्रम को सफल समझेंगे
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