Category: स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
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देवर्षि दयानंद चरित Devarshi Dayanand Charit
Rs.90.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रज्वलित दीप अनगिनत बुझे हुए दीयों को जीवन्त बना आभा और गरिमायुक्त बना देता है। आदर्श पुरुष दयानन्द ने समाधि सुख को तिलाञ्जली देकर अपने समय की विषम परिस्थितियों में अन्धकारमय वातावरण में जीवन जीनेवाले मानवों के कल्याणार्थ कंटकाकीर्ण मार्ग का चयन किया । देव दयानन्द ने अपने जीवन को प्रतीक बना दिया जिसे देखकर कथनी-करनी की एकरूपता का सुखद अनुभव व्यक्ति को होता है ।
इस जीवनी के अध्ययन चिन्तन-मनन से ज्ञात होता है कि ऋषि दयानन्द ने व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास का मार्ग प्रशस्त किया । वह भौतिकता व अध्यात्म के प्रखर समन्वयक थे । वह ऐसे विरले अध्यात्मवादी थे जिनके अन्तर में राष्ट्रभक्ति का सागर हिलोरें लेता था। उनकी दृष्टि में समाज का स्थान ऊपर था । यह जीवनी देव दयानन्द के जीवन पर अच्छा प्रकाश डालती है ।
हमारे आदरास्पद पूज्य स्वामी श्री जगदीश्वरानन्दजी सरस्वती ने इसका लेखन जिस कुशलता से किया है वह सहजग्राह्य है। इस पुस्तक के अनेकों संस्करण निकले हैं और हम आशा करते हैं निकलते रहेंगे। हम आशा करते हैं कि इसके पाठक इसे पढ़कर अन्यों को भी पढ़वाकर उन्हें प्रेरित और उत्साहित करेंगे ।
– प्रभाकरदेव आर्य
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Swadhyaay sandoha स्वाध्याय-संदोह
Rs.400.00Sold By : The Rishi Mission Trustचित्ति, उक्ति, कृति की एकता
लेखक- स्वामी वेदानन्द (दयानन्द) तीर्थ
सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते। -ऋ० १०/१९१/२शब्दार्थ- यथा= जैसे पूर्वे= पूर्ववर्त्ती अथवा पूर्ण देवा:= विद्वान् सं+जानाना= भली प्रकार जानते हुए भागम्= सेवन करने योग्य मोक्ष, प्रभु की उपासते= उपासना करते हैं, वैसे ही तुम सब सं+ गच्छध्वम्= एक-सा चलो, सं वदध्वम्= एक-सा बोलो। व:+जानताम्= तुम ज्ञानियों के मनांसि= मन सम्= एक-समान हों।
व्याख्या- ऋग्वेद [१०/१९१/१] में भगवान् से प्रार्थना की गई है कि प्रभो! हमें धन दो। भगवान् ने तीन मन्त्रों में धन-साधन का उपदेश दिया है। उन तीनों में से यह पहला मन्त्र है। भगवान् का आदेश है-
१. सं गच्छध्वम्= तुम सब एक-सा चलो, अथवा एक-साथ चलो। किसी कार्य की सिद्धि के लिए कार्य करने वालों की चाल, गति भिन्न-भिन्न होगी, तो कार्यसिद्धि में बड़ी बाधा आ खड़ी होगी, अतः सभी की गति, कृति, आचार एक-सा होना चाहिए।
२. वदध्वम्= तुम सब एक-सा बोलो। चाल की समानता के लिए बोल की समानता अत्यन्त आवश्यक है। बोली= भाषा के भेद के कारण बहुधा विचित्र किन्तु निरर्थक झगड़े हुए हैं। एकता स्थापित करने के लिए एक भाषा का होना अत्यन्त आवश्यक है। एक भाषाभाषी एक गुट बना लेते हैं, प्रायः उनका दूसरी भाषा बोलने वालों से सम्पर्क न्यून ही रहता है, फलतः उनसे उचित सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता, अतः मनुष्यों की बोली, भाषा, उक्ति, उच्चार एक-सा होना चाहिए।
३. सं वो मनांसि जानताम्= तुम ज्ञानियों के मन एक-समान हों। एक-जैसा बोल तभी हो सकता है, जब मनों के भाव एक-से हों, अर्थात् जब तक मनुष्यों का ज्ञान, विचार एक-सा न हो, तब तक उच्चार और आचार की एकता असम्भव है। उच्चार और आचार का मूल विचार है, क्योंकि जो कुछ मन में होता है, वही वाणी पर आता है और जो वाणी से बोला जाता है, वहीं कर्म में परिणत होता है। पूर्ण विद्वान् सदा ही एक-सा व्यवहार करता हैं। अथर्ववेद [६/६४/१] में भी इसी प्रकार का मन्त्र है। उसके पूर्वार्द्ध में थोड़ा-सा भेद है। उसे यहां उद्धृत करते हैं- ‘सं जानीध्वं सं पृच्यध्वं सं वो मनांसि जानताम्’- एक-सा चलो, एक-साथ मिलो। तुम सब ज्ञानियों के मन एक-समान हों।
ऋग्वेद में ‘संवदध्वम्’ है, अथर्ववेद में ‘संपृच्यध्वम्’ है। इस एक शब्द के भेद ने बहुत ही चमत्कार किया है। ज्ञानीजन यह कहते हैं कि अपने ज्ञान द्वारा विचार में समानता उत्पन्न करके उच्चारों, आचारों में समानता ला दें, किन्तु अज्ञानियों के विचारों में एकता नहीं हो सकती। अथर्ववेद के मन्त्र में उसी का साधन बताया है- तुम सब इकठ्ठे चलो, और एक-दूसरे के साथ मिल जाओ, तब ज्ञानियों के समान तुम्हारे विचार भी एक-से हो जाएंगे। ऋग्वेद में साध्य से पहले कहा है। अथर्ववेद में उन्हीं शब्दों द्वारा, केवल एक शब्द का भेद करके, साधन-सिद्धि का उपाय बतला दिया है।
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Valmiki-Ramayana
Rs.500.00Sold By : The Rishi Mission Trustवाल्मीकि रामायण आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान, निरंतर साहित्य साधना में संलग्न रामायण के इस ग्रंथ के समालोचक एवं मर्मज्य लेखक स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती है , आप यदि अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की झांकी देखना चाहते है , यदि आप मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन का अध्ययन करना चाहते है, यदि आप प्राचीन राजनीति (राज्यव्यवस्था ) का स्वरूप देखना चाहते है, यदि आप रामायण के सम्बन्ध में प्रचलित भ्रांत धारणाओं का समाधान पाना चाहते है, यदि आप भ्रात्री प्रेम, नारी गौरव, आदर्श सेवक, आदर्श मित्र, आदर्श राज्य, आदर्श पुत्र के स्वरूपों का अवलोकन करना चाहते है, यदि आप रामायण का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहते है तो यह रामायण भाष्य सैकड़ों टिप्पणीयों से समलंकित ६०००श्लोकों में रचा गया है आप इसका स्वाध्याय अवश्य करें
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