Category: हवन,संध्या,ध्यान,उपासना,योग
Showing 1–36 of 55 results
-
Vedic Nitya Karma and Pancha Mahayagya Vidhi
Rs.300.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रस्तुत पुस्तक का प्रकाशन इसी भावना से किया जा रहा है कि आज के मनुष्य आध्यात्मिकता के महत्त्व को समझें, उसकी ओर प्रवृत्त हों, वैदिक नित्यकर्मों तथा पञ्चमहायज्ञों का प्रचार-प्रसार हो और सभी इनका अनुष्ठान करें और अनुष्ठान के इच्छुक व्यक्तियों को उनकी विधि सरल- सुबोध रूप में उपलब्ध हो सके।
प्रस्तुत पुस्तक की उपादेयता
पाठकों के मन में प्रश्न उठ सकता है कि यज्ञीय विधि सम्बन्धी अनेक पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं, फिर इस पुस्तक की क्या आवश्यकता है ? इसके उत्तर में मेरा विनम्र निवेदन यह है कि मैंने अपने जीवन में यज्ञानुष्ठान करते समय, यज्ञीय विधियों की पुस्तकों पर मनन करते समय, कुछ ऐसी शंकाओं के समाधान का अभाव पाया, जो एक यज्ञकर्त्ता के मन में उठती रहती हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन करके मैंने उन अभावों को दूर करने का प्रयास किया है। संक्षेप में इस पुस्तक की विशेषताओं को इस प्रकार रखा जा सकता है – –
१. यह पुस्तक महर्षि दयानन्द कृत संस्कारविधि तथा पञ्चमहायज्ञविधि पर आधारित है। इसमें महर्षि की विधियों एवं मान्यताओं की पुष्टि की गयी है ।
२. इसमें सभी यज्ञीय विधियों एवं क्रियाओं को सरल एवं सुबोध शैली में स्पष्ट किया गया है। उठने से लेकर शयन तक की पूर्ण नित्यचर्या मन्त्रार्थ सहित दी गयी है ।
३. उपासकों याज्ञिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे मन्त्रोच्चारण के साथ-साथ मन्त्रों का अर्थ चिन्तन भी करें तभी सन्ध्याउपासना तथा अग्निहोत्रादि के अनुष्ठान का पूर्ण फल प्राप्त हो सकता है, किन्तु बाजार में ऐसी कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं है, जिसमें मन्त्रों का पदार्थ दिया गया हो। यह पुस्तक उस अभाव की पूर्ति करेगी और याज्ञिक जन इसकी सहायता से अर्थ चिन्तनपूर्वक मन्त्रोच्चारण कर सकेंगे। इसमें एक-एक मन्त्रंपद का पृथक्-पृथक् स्पष्ट अर्थ दिया गया है ।
४. शास्त्रों में भी यह आदेश है और व्यवहार में भी यह कहा जाता है कि उपासकों को अर्थपूर्वक मन्त्रों का चिन्तन अथवा उच्चारण करना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब मन्त्रपदों के अनुसार अर्थ ज्ञात हो । प्रायः व्याख्याकारों ने शब्दों और पंक्तियों को आगे-पीछे करके अर्थ किये हैं। ऐसे अर्थों का मन्त्र के पदों के क्रम से चिन्तन नहीं हो सकता । इस पुस्तक में, मन्त्र के पदों के क्रम से ही अर्थ करने का प्रयास किया गया है, जिससे उपासक मन्त्रोच्चारण क्रम से अर्थचिन्तन कर सकें ।
५. प्रायः व्याख्याकारों ने यज्ञीय मन्त्रों की व्याख्या पृथक्-पृथक् की है। पाठक यह समझ नहीं पाता कि अर्थ का यह अन्तर किस कारण से है और इन अर्थों का क्या आधार है । इस पुस्तक में जो भी अर्थ किये गये हैं, उसकी पुष्टि में व्याकरण, निरुक्त, ब्राह्मण ग्रन्थों, वेदों तथा महर्षि दयानन्द के प्रमाण दिये गये हैं। इस प्रकार पाठकों को प्रामाणिक अर्थ एवं व्याख्या देने का एक विनम्र प्रयास है । इस प्रकार यह अल्पशिक्षितों तथा उच्चशिक्षितों, दोनों वर्गों के लिए उपयोगी है।
६. मन्त्रों में आये विशिष्ट पदों, विचारणीय स्थलों पर टिप्पणी में प्रमाणपूर्वक, स्पष्ट समीक्षा दी गयी है । आवश्यक स्थलों – पर विशेष कथन देकर प्रतिपाद्य को स्पष्ट किया गया है । ७. यज्ञ सम्बन्धी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनका स्पष्टीकरण यज्ञीय विधि-पुस्तकों में नहीं मिलता, जैसे- महर्षि दयानन्द द्वारा विहित न्यून-से-न्यून एक घण्टा तक सन्ध्या कैसे की जा सकती है ? दीर्घयज्ञ की विधि क्या है ? न्यून-सेन्यून सोलह आहुतियाँ कौन-सी हैं ? एक काल के यज्ञ की विधि क्या है ? आदि शंकाओं का टिप्पणी में स्पष्टीकरण दिया गया है । ८. अन्त में यज्ञादि धार्मिक अवसरों पर गाये जानेवाले भक्तिगीतों, प्रार्थनाओं का पर्याप्त संग्रह है।
९. पुस्तक में स्थूलाक्षर टाइप का प्रयोग किया गया है, जिससे आबाल-वृद्ध सभी बिना कठिनाई के पढ़ सकें
१०. अधिक उपयोगी संस्करण – प्रस्तुत संस्करण को और अधिक उपयोगी बनाया गया है। इसमें, लोकव्यवहार में प्रचलित प्रमुख संस्कारों, सामाजिक प्रथाओं और आर्यपर्वों के अनुष्ठान की विधियाँ भी दे दी गयी हैं। अब आप इस एक ही पुस्तक से अनेक अनुष्ठान सम्पन्न कर सकते हैं।
११. पुरोहितों के लिए विशेष उपयोगी – बहुप्रचलित प्रायः सभी अनुष्ठान इस पुस्तक में एकत्र होने से यह पुरोहितों के लिए में विशेष उपयोगी एवं सुविधाजनक है।
– आचार्य सत्यानन्द ‘नैष्ठिक’
Add to cart -
योग मीमांसा Yog Mimansa
Rs.40.00Sold By : The Rishi Mission Trustयोग मानव जीवन के कल्याण का आधार है । योग के बिना अन्य सभी साधन पूर्णानन्द की प्राप्ति करवाने में समर्थ नहीं हैं। प्रत्येक प्राणी समस्त दुःखों से छूटकर पूर्ण, स्थायी, दुःखरहित आनन्द को प्राप्त करना चाहता है । इस उद्देश्य की पूर्ति योग से ही सम्भव है । इसलिए योग के वास्तविक स्वरूप को जानना व जनाना और यथाशक्ति उस पर चलना-चलाना मुख्योद्देश्य है। योग के स्वरूप को न जानने और उस पर न चलने के कारण मनुष्य जाति प्रायः दुःख- संतप्त है । इस वर्तमानकाल में योग के नाम पर बहुत कुछ प्रयास किये जा रहे हैं । परन्तु योग के स्थान में अयोग सिखाया जा रहा है । यदि इस झूठे योग को न रोका गया तो इसके परिणाम बहुत भयंकर होंगे । इस अन्ध-परम्परा से सच्चा योग भी कलंकित हो जायेगा । इसलिये योग के वास्तविक स्वरूप को जानना अत्यन्त आवश्यक है । योग क्या है और अयोग क्या है, इसको मनुष्य जान सकें, अपना तथा दूसरों का कल्याण कर सकें इसलिए योग के विषय में लिखना प्रारम्भ किया है । इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में योग का स्वरूप, योग का फल, उसके साधन और योग-मार्ग में आने वाले बाधकों का स्वरूप समझाने का प्रयास किया है । उत्तर भाग में यह बतलाया है कि योग के नाम पर क्या-क्या भ्रान्तियाँ प्रचलित हो गई हैं । इन दोनों भागों का अध्ययन करने पर यह निश्चय हो जायेगा कि वास्तविक योग क्या है ? और योग के नाम पर सिखाया जाने वाला अयोग क्या है ? आशा है कि बुद्धिमान् योग के जिज्ञासु इसको पढ़-पढ़ाकर अपना और अन्यों का कल्याण करेंगे ।
Add to cart -
आध्यात्मिक उन्नति का सोपान देवयज्ञ aadhyatmik Unnati ka sopan devyagy
Rs.100.00Sold By : The Rishi Mission Trustइस असार संसार में प्रत्येक मानव सुख की कामना करता है। अज्ञानवश स्वल्प सुख के लिये मानव ऐसे कार्य करता है जो प्रकृति प्रदत्त सुख साधनो में वैषम्य उत्पन्न कर देता है। भौतिक सुख सुविधाओं के लिये विशाल भवन बनें तो उनकी साज सज्जा के लिय वनस्थित वृक्ष, जो पर्यावरण के लिये वरदान थे, काट दिये गये। विशाल नगरीय आधुनिकी करण में कल-कारखानों के साथ आवागमन के साधन बने। ये सभी साधन प्रकृति के सुरम्य पर्यावरण को दोषमय
कर के मानव के ही स्वास्थ्य को दूषित करने लगे। नगरीय बाह्याड़म्बर प्रियता ने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ अन्तःकरण की प्रवित्रता को भी समाप्त कर दिया। अपवित्र अन्तःकरण ने सहृदयता, सौजन्यता | एवं पारस्परिक सहयोग के भाव को भी समाप्त कर दिया। कमनीय काञ्चन प्रियता |ने उस विलासिता एवं स्व जिजीविषा के भाव को उत्पन्न कर दिया, जिसने भारत | के प्राचीन गौरव को ही समाप्त कर दिया। प्रश्न है – क्या लुप्त हुआ भारत का | गौरव पुनः प्राप्त हो सकता है? आधुनिक भारत के पुनरुद्धारक, नवचेतना के अग्रदूत | महर्षि दयानन्द ने इस दिशा में सर्वप्रथम चिन्तन किया। भारतीय ऋषि-मुनियों द्वारा वर्णित वेदों के मार्ग पर चलने का निर्देश दिया। उन्होंने विकृत हुये तथा | अधिकांशतः लुप्त हुए संस्कार-प्रणाली व कर्मकाण्ड प्रणाली को परिशोधित कर | अनिवार्य रूप से उन्हें दैनिक जीवन में लाने का निर्देश दिया। इसके सम्यक् प्रचार प्रसार के लिये ही उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज के प्रचार-प्रसार ने मानव को नव-जागरण का सन्देश दिया। इस नव जागरण ने संस्कार प्रणाली व यज्ञ प्रणाली का प्रचार व प्रसार किया। वर्तमान में प्रचलित विविध पारायण यज्ञ, | गायत्री यंज्ञ एवं विश्वशान्ति यज्ञ आदि इसके प्रमाण हैं। विदेशों में होनेवाले ‘यज्ञ’ पर विविध अन्वेषण कार्य इसके महत्व को ही प्रमाणित कर रहे हैं।
महर्षि दयानन्द ने भौतिक, आत्मिक व सामाजिक उन्नति के लिये प्रत्येक | गृहस्थी को ब्रह्मा- देव-पितृ – अतिथि तथा भूतयज्ञ, इन पाँच यज्ञों को प्रतिदिन | सम्पन्न करने का निर्देश दिया। ये पञ्च-यज्ञ इतने महत्वशाली है कि प्राचीन शास्त्रों में इनकी संज्ञा पंच महायज्ञों के रूप में वर्णित है।
लेखक को ‘पारायण यज्ञ’ सम्पादनार्थ पानीपत नगर जाना पड़ा। वहाँ | प्रतिदिन के यज्ञ में ग्रामीण परिवेश के अनेक लोग श्रद्धाभाव के साथ आरम्भ से ही उपस्थित रहते थे। उन्हें दैनिक यज्ञ के सभी मन्त्र कण्ठस्थ थे। बातचीत करने पर विदित हुआ कि वे घरों पर नित्य दैनिक यज्ञ करते हैं किन्तु उनके अर्थों व | विधियाँ क्यों की जाती हैं, इनसे अनभिज्ञ थे। वहाँ के वयोवृद्ध आर्य समाज के | निष्ठावान कार्यकर्त्ता परम श्रद्धेय श्री ठाकरदास वत्रा जी ने प्रेरणा दी कि सरल शब्दों में इनके अर्थात् जन सामान्य के हितार्थ ‘दैनिक यज्ञ’ की व्याख्या लिखें ।
श्री वत्रा जी की प्रेरणा से सरल शब्दों में ‘दैनिक यज्ञ’ के महत्व पर लेख | लिखने आरम्भ हुये। आर्य जगत् की प्रसिद्ध पत्रिका ‘वेदवाणी; में इन लेखों को छापकर लेखक का उत्साह वर्धन किया।
लेख जैसे भी हों, वे पुस्तक रूप में समर्पित हैं। ये समस्त लेख लगभग | तीन वर्ष के अन्तराल में पूर्ण हुये हैं, अतः लेखों में विचारों, भावों तथा उद्धरणों की पुनरावृत्ति हो गयी है। यह पुनरावृत्ति विषय की स्पष्टता के लिये आवश्यक | थी अतः क्षम्य है ।
इसमें जो कुछ अच्छा है, उपादेय है, वह सब इन विषयों पर लिखने वाले | अनेक विद्वानों की देन है तथा प्राचीन महर्षियों की कृपा है। जो भी न्यूनता या त्रुटि है, दोष हे, वह सब लेखक की अल्पज्ञता व असावधानी का परिणाम है। मनीषी | पाठकों से विनम्र निवेदन है कि वे त्रुटियों पर ध्यान दिलाने की कृपा करेंगे, जिससे | आगामी संस्करण में उनकी पुनरावृत्ति न हों।
लेखक ‘वेदवाणी’ के सम्पादक व व्यवस्थापकों का अत्यन्त आभारी है। | जिन्होंने इन लेखों को पत्रिका में स्थान देकर लेखक का उत्साह वर्धन किया। | लेखक ने पूर्व लिखित अनेक लेखकों की एतद् विषयक पुस्तकों से सहायता ली | है, लेखक उनका आभारी है। इसके अतिरिक्त गृह स्वामिनी श्रीमती सुमन शर्मा, पुत्री कु· ऋचा शर्मा के विविध प्रकार के सहयोग के लिये सस्नेह शुभाशीर्वाद । प्रिय पौत्र आयुष व सम्भव ने लगातार लेखन में व्यस्त रहते हुये को समय-समय | पर अपने निरर्थक प्रयासों से परेशानकरते हुये जो विश्राम प्रदान किया, जिससे || लेखन कार्य में प्रगति हुई, उन्हें भी स्नेहाशीष है।
Add to cart -
नित्य कर्म विधि तथा भजन कीर्तन (गुटका) nity karm vidhi tatha bhajan kertan
Rs.15.00Sold By : The Rishi Mission Trustयह पुस्तक आर्य समाज ब्यावर द्वारा प्रकाशित नित्य कर्म विधि गुटका जो सभी आर्य समाजों में प्रसिद्ध है, आर्य समाज ब्यावर इस पुस्तिका की १७ वीं आवृत्ति धर्म प्रेमी जनता के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है, यह परमपिता परमात्मा की पूर्ण कृपा का ही फल है, कि आज के इस भौतिक युग में भी अध्यात्म वृत्ति की पिपासा इस क्षेत्र में प्रचुर रूप में है, और फलस्वरूप इस पुस्तिका की प्रत्येक आवृत्ति का भरपूर स्वागत किया गया है, इसी हेतु इसकी १७ वीं आवृत्ति प्रकाशित करने का साहस किया जा रहा है इस संस्करण में नित्यक्रम विभाग और भजन-कीर्तन विभाग के साथ-साथ आर्य पर्व पद्धति को समाविष्ट किया है, तथा तीनों को पृथक पृथक करके सुविधा का यत्न किया गया है, तथा कुछ परिवर्तन भी किया गया है, इस पुस्तक में कुल 215 पृष्ठ हैं
Add to cart