Weight | 417 g |
---|
Related products
-
Dhyan yog Sadhana
Rs.125.00Rs.100.00Sold By : The Rishi Mission Trustइस विश्व ब्रह्माण्ड में समस्त शक्तियों का भण्डार समस्त विश्व का संचालक तथा समस्त चेतनाओं का मूलभूत तत्त्व एकमात्र परब्रह्म परमात्मा ही है अन्य कोई नहीं। इस सत्य को मान लेने पर और उसका ध्यान करने से आपके और उसके बीच में जितने भी पर्दे हैं वे सबके सब एक-एक करके उठ जायेंगे, हट जायेंगे। तब एकदिन आप पायेंगे कि आप और वह एक हो गये हैं आप और उसमें कोई भेद नहीं रह गया है। तब आपके लिये मुक्ति मोक्ष का द्वार खुला हुआ ही समझो। परन्तु यह कार्य ध्यान साधना के बिना नहीं हो सकता है, यह भी सत्य है। ऐसी स्थिति में ध्यान का महत्व और भी बढ़ जाता है ।
एक प्रारम्भिक साधक के समक्ष कितनी समस्याएँ आकर उपस्थित होती है, साधक ही इस बात को जानते हैं । अर्थात् ध्यान कैसे करना चाहिये? किसका ध्यान करना चाहिये? शरीर के भीतर कहाँ ध्यान करना चाहिये ? ध्यान काल में क्या-क्या होता है? ध्यान में मन क्यों नहीं लगता है ? मन को एकाग्र समाहित करने के लिये क्या उपाय करना चाहिये? आत्मदर्शन कब और कैसे होता है ? इस प्रकार की तमाम समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं ।
हुए हर्ष की बात है कि हमारे स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ इन सारी समस्याओं का समाधान करते अनेक प्रकार की उच्चतम ध्यान-साधनाओं का विस्तृत वर्णन किया प्रस्तुत है। सगुण निर्गुण आदि ध्यान विधि से लेकर सम्प्रज्ञात असम्प्रज्ञात समाधि तक सविस्तृत वर्णन किया है ।
यद्यपि ब्रह्मलीन पूज्यपाद स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा रचित आत्मविज्ञान, ब्रह्म विज्ञान, दिव्यज्योति विज्ञान, दिव्य शब्द विज्ञान तथा व्याख्यान माला आदि ग्रन्थों में ध्यान तथा समाधि आदि के विषय में पर्याप्त रूप में लिखे गये हैं
Add to cart -
Divy Shabd Vigyan
Rs.250.00Rs.210.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रात: वन्दनीय श्री योगेश्वरानन्द परमहंस ने इस ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ को बड़ी बुद्धिमत्ता और सूक्ष्मदर्शिता से लोकोपकारार्थ लिख कर प्रदान किया है। इस ग्रन्थ में शब्द और मन्त्र द्वारा आत्मा परमात्मा के साक्षात्कार के अनेक साधन साधकों के लिए बताये गए हैं।
इस ग्रन्थ में 108 प्रकार के दिव्य शब्दों और मन्त्रों द्वारा पदार्थों में आत्मा, परमात्मा, कार्य कारणात्मक प्रकृति के साक्षात्कार का वर्णन है। प्रकृति की परिणत होती हुई प्रत्येक अवस्था में ब्रह्म का व्याप्य – व्यापक भाव सम्बन्ध दिखाकर इसको प्रत्यक्ष करने की बातें बतायी गयी हैं ।
जिस प्रकार ‘प्राण-विज्ञान’ और ‘दिव्य ज्योति विज्ञान’ में प्राण और ज्योतियों द्वारा पदार्थों में आत्मा और परमात्मा के साक्षात्कार के साधन बताये गये हैं, इसी प्रकार इस ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ ग्रन्थ में आत्मा, परमात्मा और प्रकृति के साक्षात्कार के बहुत से साधन लिखे गये हैं। पाठकवृन्द बहुत शीघ्र इस विज्ञान को समझने में समर्थ होंगे।
इस ग्रन्थ को पूज्यपाद श्री योगेश्वरानन्द परमहंस जी ने योग निकेतन पहलगाम (काश्मीर) में 3 मास के योग साधना शिविर के अवसर पर लिखा है। यह आश्रम बहुत एकान्त शान्त स्थान है। आस-पास में चीड़, कैपल, देवदार के वृक्ष और बड़े-बड़े विशाल पर्वत हैं जो प्रायः हिमाच्छादित और हरे भरे बने रहते हैं। थोड़ी दूर पर नीचे लिदर नाम की नदी बह रही है। इसका जल पत्थरों से टकराकर कल-कल शब्द करते हुए चलता है। इसकी ध्वनि में बाहर के अन्य शब्द सुनायी नहीं देते। ध्यानाभ्यास के लिए बहुत पवित्र स्थान है। श्री योगश्वरानन्द परमहंस ने ‘निर्गुण ब्रह्म’, ‘प्राण विज्ञान’ और ‘दिव्य ज्योति विज्ञान’ ग्रन्थ’ यहां ही लिखे थे और अब ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ ग्रन्थ भी यहां ही लिखा गया है।
Add to cart -
Patanjali Yoga Darshan
Rs.250.00Rs.225.00Sold By : The Rishi Mission Trustदर्शन शब्द का व्युत्पत्ति – लभ्य अर्थ है- ‘दृश्यते अनेनेति दर्शनम्’ । जिसके द्वारा देखा जाय वही दर्शन है। अर्थात् सृष्टि और अतिसृष्टि के तत्त्व समूहों को जिसके द्वारा देखा जाता है सम्यक् प्रकारेण जाना जाता है वही दर्शन है। भारतीय दर्शन शास्त्रों में योग दर्शन का स्थान विशेष महत्वपूर्ण है। दर्शन शास्त्रों में यही एक क्रियात्मक दर्शन है और योगरूप मोक्ष साधना का प्रतिपादक होने से मोक्षशास्त्र भी है। वर्तमान युग में पातञ्जल योगदर्शन ही एक प्रामाणिक तथा प्राचीनतम योगशास्त्र है योगसाधन मार्ग पर चलने वाले मुमुक्षु साधकों के लिये योगदर्शन ही एक प्रकार से प्रकाशस्तम्भ का काम देता आया है और आगे भी देता रहेगा – वह ध्रुव सत्य है । राजयोग का आधार ग्रन्थ पातञ्जल योगदर्शन का ही माना जाता है।
बहुत दिनों से यह विचार था कि योगदर्शन का एक संक्षिप्त संस्करण संस्था से प्रकाशित किया जाय। परन्तु कई कारणों से वह कार्य पूर्ण न हो सका। इस वर्ष परमेश्वर की अहेतुक कृपा से वह कार्य सम्पन्न हो गया। स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती जी ने अल्पकाल में ही इस पर ‘सम्यग्दर्शिनी’ हिन्दी व्याख्या लिख दी और संस्था ने साथ-साथ प्रकाशित भी कर दिया है ।
यह हिन्दी व्याख्या यद्यपि व्यासभाष्य का पूरा पूरा अनुवाद नहीं है फिर भी व्यासभाष्य के आधार पर ही यह व्याख्या लिखी गयी है। व्याख्या संक्षिप्त होने पर भी सूत्रार्थ बोधक हैं। सूत्रों का अन्वय पदच्छेद पूर्वक अर्थ दिये जाने से सभी वर्गों के पाठकों के लिये पुस्तक विशेष उपयोगी सिद्ध होगी। हम आशा करते हैं कि सभी प्रकार के पाठक एवं साधकगण इससे लाभ उठा सकेंगे। इतिशम्!
Add to cart
Reviews
There are no reviews yet.