नमस्ते जी !!! प्रत्येक ग्राहक के लिये 500/-से अधिक की खरीद करने पर अब इंडिया पोस्ट से पूर्णत: शिपिंग फ्री,ऋषि मिशन ट्रस्ट के पंजिकृत सदस्यता अभियान में शामिल हो कर ट्रस्ट द्वारा चलाई जा रही अनेक गतिविधियों का लाभ उठा सकते हैं। जिसमें 11 पुस्तक सेट (महर्षि दयानंद सरस्वती कृत), सदस्यता कार्ड, महर्षि का चित्र, 10% एक्स्ट्रा डिस्काउंट, अन्य अनेक लाभ/ विशेष सूचना अब आपको कोरियर से भी पुस्तकें भेजी जाती है,जो मात्र 1,7 दिन में पुरे भारत में डिलेवरी हो जाती है, इस सुविधा का खर्च आपको अतिरिक्त देना होता है

Rishi Mission is a Non Profitable Organization In India

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop
Sale!

आध्यात्मिक उन्नति का सोपान देवयज्ञ aadhyatmik Unnati ka sopan devyagy

Rs.125.00

इस असार संसार में प्रत्येक मानव सुख की कामना करता है। अज्ञानवश स्वल्प सुख के लिये मानव ऐसे कार्य करता है जो प्रकृति प्रदत्त सुख साधनो में वैषम्य उत्पन्न कर देता है। भौतिक सुख सुविधाओं के लिये विशाल भवन बनें तो उनकी साज सज्जा के लिय वनस्थित वृक्ष, जो पर्यावरण के लिये वरदान थे, काट दिये गये। विशाल नगरीय आधुनिकी करण में कल-कारखानों के साथ आवागमन के साधन बने। ये सभी साधन प्रकृति के सुरम्य पर्यावरण को दोषमय

कर के मानव के ही स्वास्थ्य को दूषित करने लगे। नगरीय बाह्याड़म्बर प्रियता ने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ अन्तःकरण की प्रवित्रता को भी समाप्त कर दिया। अपवित्र अन्तःकरण ने सहृदयता, सौजन्यता | एवं पारस्परिक सहयोग के भाव को भी समाप्त कर दिया। कमनीय काञ्चन प्रियता |ने उस विलासिता एवं स्व जिजीविषा के भाव को उत्पन्न कर दिया, जिसने भारत | के प्राचीन गौरव को ही समाप्त कर दिया। प्रश्न है – क्या लुप्त हुआ भारत का | गौरव पुनः प्राप्त हो सकता है? आधुनिक भारत के पुनरुद्धारक, नवचेतना के अग्रदूत | महर्षि दयानन्द ने इस दिशा में सर्वप्रथम चिन्तन किया। भारतीय ऋषि-मुनियों द्वारा वर्णित वेदों के मार्ग पर चलने का निर्देश दिया। उन्होंने विकृत हुये तथा | अधिकांशतः लुप्त हुए संस्कार-प्रणाली व कर्मकाण्ड प्रणाली को परिशोधित कर | अनिवार्य रूप से उन्हें दैनिक जीवन में लाने का निर्देश दिया। इसके सम्यक् प्रचार प्रसार के लिये ही उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज के प्रचार-प्रसार ने मानव को नव-जागरण का सन्देश दिया। इस नव जागरण ने संस्कार प्रणाली व यज्ञ प्रणाली का प्रचार व प्रसार किया। वर्तमान में प्रचलित विविध पारायण यज्ञ, | गायत्री यंज्ञ एवं विश्वशान्ति यज्ञ आदि इसके प्रमाण हैं। विदेशों में होनेवाले ‘यज्ञ’ पर विविध अन्वेषण कार्य इसके महत्व को ही प्रमाणित कर रहे हैं।

महर्षि दयानन्द ने भौतिक, आत्मिक व सामाजिक उन्नति के लिये प्रत्येक | गृहस्थी को ब्रह्मा- देव-पितृ – अतिथि तथा भूतयज्ञ, इन पाँच यज्ञों को प्रतिदिन | सम्पन्न करने का निर्देश दिया। ये पञ्च-यज्ञ इतने महत्वशाली है कि प्राचीन शास्त्रों में इनकी संज्ञा पंच महायज्ञों के रूप में वर्णित है।

लेखक को ‘पारायण यज्ञ’ सम्पादनार्थ पानीपत नगर जाना पड़ा। वहाँ | प्रतिदिन के यज्ञ में ग्रामीण परिवेश के अनेक लोग श्रद्धाभाव के साथ आरम्भ से ही उपस्थित रहते थे। उन्हें दैनिक यज्ञ के सभी मन्त्र कण्ठस्थ थे। बातचीत करने पर विदित हुआ कि वे घरों पर नित्य दैनिक यज्ञ करते हैं किन्तु उनके अर्थों व | विधियाँ क्यों की जाती हैं, इनसे अनभिज्ञ थे। वहाँ के वयोवृद्ध आर्य समाज के | निष्ठावान कार्यकर्त्ता परम श्रद्धेय श्री ठाकरदास वत्रा जी ने प्रेरणा दी कि सरल शब्दों में इनके अर्थात् जन सामान्य के हितार्थ ‘दैनिक यज्ञ’ की व्याख्या लिखें ।

श्री वत्रा जी की प्रेरणा से सरल शब्दों में ‘दैनिक यज्ञ’ के महत्व पर लेख | लिखने आरम्भ हुये। आर्य जगत् की प्रसिद्ध पत्रिका ‘वेदवाणी; में इन लेखों को छापकर लेखक का उत्साह वर्धन किया।

लेख जैसे भी हों, वे पुस्तक रूप में समर्पित हैं। ये समस्त लेख लगभग | तीन वर्ष के अन्तराल में पूर्ण हुये हैं, अतः लेखों में विचारों, भावों तथा उद्धरणों की पुनरावृत्ति हो गयी है। यह पुनरावृत्ति विषय की स्पष्टता के लिये आवश्यक | थी अतः क्षम्य है ।

इसमें जो कुछ अच्छा है, उपादेय है, वह सब इन विषयों पर लिखने वाले | अनेक विद्वानों की देन है तथा प्राचीन महर्षियों की कृपा है। जो भी न्यूनता या त्रुटि है, दोष हे, वह सब लेखक की अल्पज्ञता व असावधानी का परिणाम है। मनीषी | पाठकों से विनम्र निवेदन है कि वे त्रुटियों पर ध्यान दिलाने की कृपा करेंगे, जिससे | आगामी संस्करण में उनकी पुनरावृत्ति न हों।

लेखक ‘वेदवाणी’ के सम्पादक व व्यवस्थापकों का अत्यन्त आभारी है। | जिन्होंने इन लेखों को पत्रिका में स्थान देकर लेखक का उत्साह वर्धन किया। | लेखक ने पूर्व लिखित अनेक लेखकों की एतद् विषयक पुस्तकों से सहायता ली | है, लेखक उनका आभारी है। इसके अतिरिक्त गृह स्वामिनी श्रीमती सुमन शर्मा, पुत्री कु· ऋचा शर्मा के विविध प्रकार के सहयोग के लिये सस्नेह शुभाशीर्वाद । प्रिय पौत्र आयुष व सम्भव ने लगातार लेखन में व्यस्त रहते हुये को समय-समय | पर अपने निरर्थक प्रयासों से परेशानकरते हुये जो विश्राम प्रदान किया, जिससे || लेखन कार्य में प्रगति हुई, उन्हें भी स्नेहाशीष है।

2 in stock

Compare
Sale!
Weight 350 g

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “आध्यात्मिक उन्नति का सोपान देवयज्ञ aadhyatmik Unnati ka sopan devyagy”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop