आपस्तम्बगृह्यसूत्रम Apastambagrihyasutram
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कल्पसूत्रों की रचना के पहले ब्राह्मणग्रन्थों की विभिन्न शाखाएँ या चरण थे । ब्राह्मणों में किसी सूत्र का उल्लेख नहीं है, किन्तु ऐसा कोई सूत्र नहीं है, जिसमें ब्राह्मणों की विविध शाखाओं के नामों का उल्लेख न हो। सूत्रों की रचना के साथ-साथ कुछ नयी शाखाओं या चरणों का विकास हुआ । आश्वलायन और कात्यायन की शाखाएँ ऐसी ही हैं । कुछ सूत्र तो प्राचीन हैं और उनका सम्बन्ध ब्राह्मणग्रन्थों की शाखाओं से ही है। सूत्ररचनाओं के तिथिक्रम के विषय में प्रो० मैक्स मूलर ने इस तथ्य की ओर संकेत किया है कि शाखाओं को परम्परा के आधार पर भी सूत्रों के काल का संकेत किया गया है। उदाहरण के लिए तैत्तिरीय शाखा का प्राचीनतम सूत्र बौधायन का है । उनके बाद भारद्वाज, आपस्तम्ब, सत्याषाढ, हिरण्यकेशी, वधून और वैखानस के सूत्र हैं। इनमें अन्तिम दो को छोड़कर अन्य के नाम पर विभिन्न चरणों का नाम पड़ा है । यद्यपि कोई भी सूत्र किसी चरण की स्थापना का उद्देश्य लेकर नहीं रचा गया था, तथापि इसे विभिन्न वर्गों ने एक नये चरण का रूप दे दिया।
शाखाओं की भिन्नता स्वाध्याय के आधार पर उत्पन्न हुई है । आश्वलायन और कात्यायन के कल्पसूत्र दोनों शाखाओं मे समान हैं, किन्तु तैत्तिरीयसंहिता से सम्बद्ध सूत्र भिन्न-भिन्न शाखाओं के हैं। कभी-कभी सूत्र के भेद के साथ ही शाखाभेद की उत्पत्ति हुई है।
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