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आयुर्वेदिय रचना शारीर विज्ञान ayurvediy rachana sharir vigyan

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चिकित्सा शास्त्र के छात्र का पाठ्यक्रम प्राकृत शरीर के अध्ययन के साथ शुरू होता है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र (M.B.B.S.) में मानव शरीर रचना (human anatomy) और मानव शरीर क्रिया (human physiology) इन विषयों का प्रथम वर्ष में अध्ययन होता है। आयुर्वेदाचार्य (B.A.M.S.) के अभ्यासक्रम में भी इन विषयों का समावेश किया गया है जो क्रम से रचना शारीर और क्रिया शारीर कहलाते हैं ।

प्राचीन काल में भी शरीर के ज्ञान को मूलभूत माना गया है । प्राणाभिसर वैद्य (जो चिकित्सक प्राणों की रक्षा करते हैं तथा रोगों का विनाश करते हैं) के गुणों में चरक के शरीर ज्ञान और शरीर उत्पत्ति ज्ञान को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है।

तथाविधा हि केवले शरीरज्ञाने शरीराभिनिर्वृत्तिज्ञाने प्रकृतिविकारज्ञाने च निःसंशया: । (च.सू. २९/७)

इस प्रकार (प्राणाभिसर वैद्य को) शरीर ज्ञान, शरीर अभिनिवृत्ति (उत्पत्ति) ज्ञान तथा प्रकृति-विकार का नि:संशय ज्ञान होता है । (चरक )

आयुर्वेदाचार्य के पाठ्यक्रम में जो रचना शारीर विषय है उसमें आयुर्वेदिय रचना शारीर तथा आधुनिक शरीर रचना, दोनों को सम्मिलित किया गया है। चरक-सुश्रुत आदि प्राचीन संहिताओं में रचना शारीर तथा क्रिया शारीर सम्बद्धि जो वर्णन प्राप्त होता है वह ‘आयुर्वेदिय शारीर’ है और आधुनिक मानव शरीर रचना ‘human anatomy’ कहलाती हैं ।

आयुर्वेदिय संहिताओं से रचना शारीर का जो वर्णन प्राप्त होता है वह विशिष्टता पूर्ण है। जैसे मर्म, स्रोत, कला आदि सिद्धांतों का निर्देश केवल आयुर्वेद में है। आयुर्वेदिय चिकित्सा शास्त्र का सफल प्रयोग करने के लिये उसके अपने सिद्धांतों को आयुर्वेदिय पद्धति से समझ लेना आवश्यक है । आधुनिक चिकित्सा शास्त्र ने निरन्तर संस्करण और अनुसंधान के बाद वर्तमानकालिक विकसित anatomy प्राप्त की है। रचना शारीर का सम्पूर्ण ज्ञान आज के आयुर्वेद चिकित्सक के लिये भी अत्यंत आवश्यक है इसलिये आयुर्वेदीय रचना शारीर विज्ञान

आयुर्वेदाचार्य के अभ्यासक्रम में आधुनिक anatomy का समावेश किया गया है। संहिताओं में उल्लिखित सिद्धांत हजारों साल पुराने है तथा उनका कालानुरूप योग्य संस्करण भी नहीं हुआ है । इसलिये physics, chemistry, bioliogy इन आधुनिक विज्ञान के विषयों का अध्ययन करनेवाले छात्रों को आयुर्वेदिय शारीर के कुछ सिद्धांतों का अध्ययन करने में कठिनता का अनुभव होने की संभावना है। ऐसे प्रसंग में छात्रों को अपने अध्यापकों के साथ विचार विनिमय करके शंकाओं का समाधान करना चाहिये ।

के साथ तुलना anatomy आयुर्वेदिय रचना शारीर की सभी संदर्भों में करना अथवा समानता दिखाना संभव नहीं और न्यायसंगत भी नहीं । प्रायः इस तुलना में तज्ञों में मतभिन्नता देखी जाती है । इसलिये आयुर्वेदिय सहिताओं में वर्णित मनुष्य के शरीर का विवेचन उसके मूल रूप में इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया गया है। चरक – सुश्रुतादि के अपेक्षित शारीर को समझने का प्रयास इस ग्रंथ में किया गया है ।

संहिताओं से शरीर सम्बन्धित सिद्धांत तथा संकल्पना का अध्ययन करते समय कुछ कठिनता का सामना करना पड़ता है ।

14 १. रचना का विस्तृत वर्णन संहिताओं के शारीर स्थान में है परंतु शारीर के अन्य उपयोगी संदर्भ संहिताओं में बिखरे हुये हैं। यहाँ सब संदर्भों को संकलित करना तथा वर्णन को क्रमानुसार व्यवस्थित करना आवश्यक होता है। जैसे इन्द्रियों का वर्णन चरक में एक ही स्थान, अध्याय में प्राप्त नहीं होता । इस ग्रंथ के इन्द्रिय प्रकरण में जो श्लोक एकत्रित किये गये है वे चरक सूत्र स्थान के १, ७, ८, ११, १७, २८, ३० क्रमांकों के अध्यायों से तथा चरक शारीर स्थान के पहले और इन्द्रियस्थान के चौथे अध्याय से लिये गये हैं। इस प्रकार के संदर्भ सुश्रुत आदि अन्य संहिताओं से भी एकत्र किये गये हैं ।

२. संस्कृत का पूर्ण ज्ञान प्रत्येक छात्र को नहीं होता। इसलिये संस्कृत के श्लोक का बोध करना छात्रों के लिये कठिन होता है । ३. संहिताओं में प्रस्तुत अनेक सूत्र सार स्वरूप हैं उनका आशय समझना कठिन होता है । को

४. टिका सूत्र का विश्लेषण करती है, कठिन शब्दों का अर्थ व्यक्त करती है। इसलिये टिका का अध्ययन करना लाभदायक है। परंतु कभीकभी टिका भी अतिविस्तारीत होती है अथवा अपेक्षित अर्थ को प्रकट नहीं करती ।

५. आधुनिक विज्ञान के छात्रों के लिये आयुर्वेद के कुछ सिद्धांन समझना कठिन होता है; जैसे मर्म, स्रोत आदि ।

इस समस्या का मुकाबला करनेवाले आयुर्वेद के छात्रों की सहायता करने हेतु इस ग्रंथ का प्रबन्ध किया गया है।

यह संदर्भ ग्रंथ छात्रों को इस प्रकार सहायक है –

१. यहाँ संस्कृत तथा हिंदी भाषा का उपयोग किया गया है इसलिये अध्यापक तथा विद्यार्थी इस ग्रंथ का उपयोग कर सकेंगे ।

२. आयुर्वेदिय शारीर सम्बन्धित सुश्रुत, चरक आदि संहिताओं के सभी महत्त्वपूर्ण सूत्र, उनकी टिका तथा उनका योग्य हिंदी अनुवाद यहाँ उपलब्ध है।

३. यहाँ केवल आयुर्वेद के रचना सम्बन्धि विषयों का विस्तार से वर्णन किया गया है। आधुनिक anatomy के अनुवादित रूप का समावेश यहाँ नहीं किया गया है। क्योंकि आयुर्वेदिय शारीर और आधुनिक anatomy के मिश्र वर्णन से छात्र संभ्रमित होने की संभावना होती है और सभी वर्णन को आयुर्वेदिय शारीर के रूप में ही ग्रहण करते हैं। जैसे ‘अंसच्छदा’ deltoid muscle का केवल अनुवादित शब्द है । ‘असंच्छदा’ यह शब्द संस्कृत का रूप है परंतु इसका किसी आयुर्वेदिय संहिता में उल्लेख नहीं है। इसलिये इस प्रकार के anatomy के अनुवादित शब्दों का यहाँ उपयोग नहीं किया गया है| anatomy के लिये तो अनेक, अत्यंत विस्तृत पुस्तक उपलब्ध हैं। विद्यार्थी उनका स्वतंत्र उपयोग कर सकते हैं ।

४. इस ग्रंथ में आवश्यकता के अनुसार अत्यंत जरूरी स्थान पर ही आयुर्वेदिय रचना शारीर की anatomy के साथ तुलना की है अथवा सहसम्बन्धता का निर्देश किया गया है।

५. संहिताओं के एक-एक सूत्र की विशिष्ट प्रकार से, क्रम से योजना
आयुर्वेदीय रचना शारीर विज्ञान
की गई है ताकि छात्र पूर्ण संकल्पना का ज्ञान विना संभ्रम के प्राप्त कर सके। ६. आवश्यकता के अनुसार अवयवों का सचित्र वर्णन किया गया है जिसके उपयोग से विषय समझने में सुगमता हो तथा शास्त्र के प्रति अभिरूचि उत्पन्न हो ।

इस ग्रंथ में रचना शारीर का ज्ञान आयुर्वेदिय पद्धति से प्राप्त करने का प्रयास किया गया है। ध्येय यह है कि छात्र शास्त्रवादी हो और रचना शारीर का विचार आयुर्वेदिय दृष्टिकोण से करें तथा केवल श्रेष्ठ आयुर्वेद के शारीर का ज्ञान प्राप्त कर सके ।

आशा है अध्यापक और विद्यार्थियों के लिये यह ग्रंथ उपयोगी तथा लाभदायक सिद्ध होगा ।

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