Weight | 300 g |
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धर्म का आदिस्रोत dharm ka aadisrot
Rs.100.00Rs.80.00Sold By : The Rishi Mission Trustधर्म का मूल ईश्वर है
– धर्म का उत्पत्ति- स्थान क्या है ? किसी मत विशेष का नहीं प्रत्युत उस धर्म का मूल क्या है जिसके अवान्तर रूप से विविध प्रकार के मत विद्यमान हैं। साधारणतया इस प्रश्न के दो उत्तर हैं – (१) यह कि धर्म का मूल ईश्वर है और (२) यह कि उसकी उत्पत्ति मनुष्य से है। प्रथम विचार इस बात की उपेक्षा नहीं करता कि वर्त्तमान धर्मों के विकास और वृद्धि पर मनुष्यों का, उनके जातीय इतिहास और देश की भौगोलिक अवस्था तक का बड़ा प्रभाव पड़ा है। केवल इस बात पर बल दिया है कि धर्म का आदि मूल कारण ईश्वर है ।
यह पुस्तक इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर पूर्णरूपेण मीमांसा करने की प्रतिज्ञा नहीं करती । इसका उद्देश्य संसार के मुख्य-मुख्य मतों के मिलान और अनुशीलन से केवल यह सिद्ध करना है कि नवीन मतों का पता पुराने मतों से और इन पुराने मतों का पता और अधिक प्राचीन मतों से चल सकता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर पता लगाते हुए हम मनुष्य जाति के प्राचीनतम पवित्र धर्म तक पहुंच जाते हैं। मतों के परस्पर मिलान पूर्वक अनुशीलन से यह सिद्ध हो जायेगा कि वास्तव में धर्म की सीमा के अन्तर्गत किसी प्रकार का नया आविष्कार कभी नहीं हुआ। धर्म के मुख्य सिद्धान्त जिन्हें उसका सार कहना चाहिये उतने ही पुराने हैं जितनी कि मानव जाति । इससे सिद्ध होता है कि सृष्टि के आरम्भ काल में परमेश्वर ने धार्मिक ज्ञान का बीज मनुष्य के लिए दिया था। और यही धर्म-ज्ञान का बीज मानव जाति के ग्रन्थ भण्डार के सर्वसम्मत प्राचीनतम वेद में पाया जाता है ।
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स्वास्थ्य के शत्रु svasthy ke shatru
Rs.100.00Rs.80.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्राचीनकाल से ही यह विचारणीय विषय रहा है कि मनुष्यों को शाकाहार करना चाहिये अथवा मांसाहार ? शाकाहार के समर्थक सदैव से ही यह कहते आए हैं कि मनुष्य को मांसाहार नहीं करना चाहिये, क्योंकि मांस मनुष्य का भोजन नहीं है, परन्तु मांसाहारी भी मांस खाने के पक्ष में अनेक बातें कहते आए हैं। यहाँ निष्पक्ष होकर यह विचार करना है कि मनुष्य का भोजन शाक है या मांस ? इस विषय को तीन कसौटियों पर कसकर निर्णय किया जा सकता है –
१. धार्मिक,
२. स्वास्थ्य और
३. सांसारिक लाभ।
इस सभी विषयों को विस्तारपूर्वक आगे के अध्यायों में लिखा गया है। अण्डा-मांसाहार के साथ-साथ मदिरापान, तमाखू, गुटखा, चरस, स्मैक, आदि की हानियों को भी वैज्ञानिक रूप में विस्तारपूर्वक लिखा गया है ।
प्रस्तुत पुस्तक को लिखने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि मनुष्य अण्डा – मांसाहार, मदिरापान, तमाखू, गुटखा, चरस, स्मैक, ब्राउनशुगर, आदि तामसी और अत्यन्त हानिकारक पदार्थों का सेवन त्यागकर केवल अन्न, फल, शाक- भाजी, दूध-घी, आदि शुद्ध- सात्विक शाकाहारी पदार्थों का ही सेवन करें तथा सभी मनुष्य स्वस्थ और सुखी रहें ।
सुहृद पाठकों से निवेदन है कि वे इस पुस्तक को मनोयोगपूर्वक पढ़कर स्वयं लाभ उठाएँ तथा संसार के कल्याण हेतु अधिक-सेअधिक पाठकों को पढ़वाएँ ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक संसार का बहुत अधिक कल्याण करेगी और मानवता की सेवा हेतु मेरा यह लघु प्रयास सफल होगा ।
प्रस्तुत पुस्तक में जिन समाचार पत्र, पत्रिकाओं और पुस्तकों से सहायता ली गई है, मैं उनके सम्पादकों और लेखकों के प्रति हृदय से आभारी हूँ। –
– डॉ० वेदप्रकाश –
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