Weight | 200 g |
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Upanishad Prakaash उपनिषद प्रकाश:
Rs.350.00Rs.300.00Sold By : The Rishi Mission Trustलेखक परिचय
डॉ. सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार का जन्म 5 मार्च 1898 व मृत्यु 13.09.1992 आप का जन्म लुधियाना के अंतर्गत सब्द्दी ग्राम में हुआ 1919 में गुरुकुल कांगड़ी के स्नातक होने के बाद कोल्हापुर, बेंगलुरु, मैसूर, मद्रास में 4 वर्ष तक समाज सेवा का कार्य करते रहे 1923 में आप “दयानंद सेवा सदन” के आजीवन सदस्य होकर गुरुकुल विद्यालय में प्रोफेसर हो गए 15 जून 1926को आपका विवाह श्रीमती चन्द्रावती लखनपाल एम.ए., बी.टी.से हुआ 30.11. 1930 को सत्याग्रह में गिरफ्तार हुए और 1931 को गांधी इरविन पैक्ट में छोड़ दिए गए आपकी पत्नी 20.06.1932 में यू.पी.एस.सी. की अध्यक्षा पद से आगरा में गिरफ्तार हुई उन्हें 1 साल की सजा हुई 1934में चन्द्रावती जी को “स्त्रियों की स्थिति“ग्रन्थ पर सेकसरिया तथा 20.04.1935 में उन्हें “शिक्षा मनोविज्ञान” ग्रन्थ पर महात्मा गांधी के सभापतित्व में मंगला प्रसाद पारितोषिक दिया गया अप्रेल 1952 में राज्यसभा की सदस्या चुनी गई और 10 साल तक इस पद पर रही , डॉ. सत्यव्रत जी अपनी सेवा के दौरान मई 1935 में गुरुकुल विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए 15 नवंबर 1941 को सेवा कालसमाप्त कर वे मुंबई में समाज सेवा कार्य में व्यस्त हो गए 2 जुलाई 1945 को आपकी पत्नी कन्या गुरुकुल देहरादून की आचार्या पद पर नियुक्त हुई डॉ. सत्यव्रत जी ने इस बीच “समाजशास्त्र” “मानव शास्त्र” “वैदिक संस्कृति” तथा “शिक्षा” आदि पर बीसीओ ग्रंथ लिखे जो विश्वविद्यालय में पढ़ाये जाने लगे आपके “एकादशोपनिषदभाष्य” की भूमिका राष्ट्रपति डॉ.राधाकृष्णनने तथा आपके गीता भाष्य की भूमिका प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने लिखी आपके होम्योपैथी के ग्रंथों को सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ घोषित कर उन पर 1000 का पारितोषिक दिया गया इन ग्रंथों का विमोचन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने किया 3 जनवरी 1960 को आपको “समाजशास्त्र” के मूल तत्व पर मंगला प्रसाद पारितोषिक देकर सम्मानित किया गया 4 जून 1960 को आप दोबारा 6 वर्ष के लिए गुरुकुल विश्वविद्यालय के उप कुलपति नियुक्त हुए 3 मार्च 1962 को पंजाब सरकार ने आप के साहितिक कार्य के सम्मान में चंडीगढ़ में एक दरबार आयोजित करके 1200रु.की थैली तथा एक दोशाला भेंट किया 1964में राष्ट्रपति डॉ.राधाकृष्णन ने आपको राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया 1977 में आपके ग्रंथ “वैदिक विचारधारा का वैज्ञानिक आधार” पर गंगा प्रसाद ट्रस्ट द्वारा 1200 रु.और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ₹2500रु. और रामकृष्ण डालमिया पुरस्कार द्वारा 11पुरस्कार द्वारा 1100₹ का पुरस्कार दिया गया 1978 में आप नैरोबी के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के अध्यक्ष हुए 1978में दिल्ली प्रशासन ने वेदों के मूर्धन्य विद्वान होंने के नाते सम्मान अर्पण समारोह करके आपको 2001रु. तथा सरस्वती की मूर्ति देकर सम्मानित किया आपने होम्योपैथी पर अनेक ग्रंथ लिखे हैं जिसमें “होम्योपैथिक औषधियों का सजीव चित्रण” “रोग तथा उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा” “बुढ़ापे के जवानी की ओर” तथा “होम्योपैथी के मूल सिद्धांत” प्रसिद्ध आपके अंग्रेजी में लिखे ग्रन्थ “Heritage of vediv culture”, “Exposition of vedic thought”, तथा Glimpses of the vedic” Confidential talks to youngmen” का विदेशों में बहुत मान हुआ है आपके नवीनतम ग्रंथ “ब्रह्मचर्य संदेश” वैदिक संस्कृति का सन्देश” तथा “उपनिषद प्रकाश” आदि अनेक वैदिक साहित्य के आप लेखक है
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Shukla Yajurvedi Shatapatha Brahmin Madhyandini 1-3
Rs.3,000.00Rs.1,800.00Sold By : The Rishi Mission Trustवेदार्थ और कर्मकांड का अत्यंत प्रसिद्ध, अति प्राचीन ग्रंथ, महर्षि याज्ञवल्क्य और शाण्डिल्य मुनि की कृति, मूल ग्रंथ में 14 कांड है, 100 अध्याय और 7625 कण्डिकायें है। शतपथ ब्राह्मण की दो शाखाएं प्रसिद्ध है – माध्यन्दिनीय शाखा और काण्व, यह अनुवाद माध्यन्दिनीय शाखा का है। शतपथ ब्राह्मण का अंतिम कांड बृहदारण्यक उपनिषद के नाम से विख्यात है, जो अध्यात्म की सर्वश्रेष्ठ रचना है। डॉ. अलबेर्त वेबेर ने बड़े परिश्रम से माध्य नंदिनी शाखा के शतपथ ब्राह्मण का स्वर संयुक्त संस्करण बर्लिन से प्रकाशित किया था 1849 उसे ही हिंदी अनुवाद के साथ दिया गया है
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संध्या क्या क्यों और कैसे ? sandhya kya kyon aur kaise ?
Rs.65.00Rs.45.00Sold By : The Rishi Mission Trustसंध्या की महत्ता
पञ्च महायज्ञों में सबसे पहला ब्रह्म-यज्ञ है। ब्रह्म-यज्ञ का मुख्य भाग है संध्या । ‘महायज्ञ’ का ‘महा’ शब्द बताता है कि यह महायज्ञ बड़ा यज्ञ है जिसमें सैकड़ों कृत्यों का करना आवश्यक होगा और बहुत-सा धन तथा रुपया लगता होगा। वस्तुतः यह बात नहीं है। यह पञ्च महायज्ञ बहुत छोटा है। इसको ‘महायज्ञ’ कहने का हेतु यह है कि मनुष्य की इति कर्त्तव्यता में यह सबसे प्रथम है और इसके करने से मनुष्य का आचार और अध्यात्म बनता है। –
संध्या का अर्थ है ध्यान करना, अर्थात् परमात्मा के गुण, कर्म और स्वभाव के विषय में इस प्रकार सोचना कि हम परमात्मा के अस्तित्व का इस जगत् में और अपने जीवन में अनुभव कर सकें। इसलिए ‘मन से सोचना’ संध्या का मुख्य उद्देश्य है। शेष सब कृत्य गौण हैं, मौलिक नहीं।
संध्या के तीन भाग हैं – (१) शारीरिक- अर्थात् स्नानादि करके एकान्त में जहाँ ऊँची-नीची भूमि न हो, कोलाहल न हो, पूरी शान्ति विराजती हो, आसन जमाकर बैठना। हथेली पर पानी लेकर तीन ‘आचमन’ करना या शरीर के अन्यान्य अवयवों पर छींटे देना।
(२) दूसरा भाग–वाचिक, अर्थात् ऊपर के लिखे कृत्यों को करते हुए नियत मन्त्रों को पढ़ना ।
– (३) तीसरा भाग – मानसिक अथवा भीतरी । अर्थात् अर्थ समझते हुए ईश्वर के गुणों का चिन्तन करना। इनमें सब से आवश्यक भाग है तीसरा । यदि यह तीसरा भाग उचित रीति से सम्पन्न न किया जाए, तो सन्ध्या सर्वथा निष्फल हो जाती है
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