दयानन्दोक्त औषधि आरोग्य सूत्र dayanandokt aushadhi arogy sootr
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प्रो० डॉ० लोखण्डेजी ने स्वामी दयानन्द सरस्वती रचित सभी पुस्तकों के सागर से मोती चुनकर एक जगह संकलित करने का कठिन श्रम किया है। इस पुस्तक की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि स्वामीजी के औषधि एवं आरोग्य सूत्रों को आधुनिक चिकित्सा के सिद्धान्तों से तुलना कर आज के सन्दर्भ में ये कितने उपयोगी हैं यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है। इस संकलन के निम्न प्रकरणों में उन्होंने विस्तार से स्वामीजी और आधुनिक चिकित्सकों के सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है जिनमें ब्रह्मचर्य एवं वीर्यरक्षा, आहार-विहार, दिनचर्या, यज्ञ एवं पर्यावरण, व्यवहार कौशल्य, योगासन एवं प्राणायाम, विवाह और गृहस्थाश्रम, ऋतुकाल एवं गर्भाधान विधि, प्रसूति बालसंगोपन, मांस भक्षण, दुर्व्यसनों से हानि, रोग एवं औषधि प्रमुख हैं।
मुझे लगता है कि मानव सर्वांगीन आरोग्य की प्राप्ति हेतु इन आरोग्य
सूत्रों का पालन करे तो वह जीवन में अवश्य सुखी होगा। मनुष्य केवल शारीरिक व्याधियों से ही रोगग्रस्त नहीं होता, अपितु मानसिक एवं आत्मिक दुःखों से भी त्रस्त रहता है। आज का विज्ञान केवल शरीर पर ही गौर करने का आदि हो गया है। आज का आरोग्य विज्ञान मनुष्य के सर्वांगीन दुःखों एवं व्याधियों से मुक्ति दिलाने के लिए कृत संकल्प नहीं है लेकिन आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा तथा सुव्यवहार दर्शन मनुष्य को सर्वतोमुखी सुखी बना सकता है। स्वामी दयानन्दजी ने औषधि चिकित्सा के साथ-साथ, रहन-सहन, दिनचर्या, गृहस्थ, ब्रह्मचर्य, व्यवहार कौशल्य, योग-प्राणायाम-आसनादि के द्वारा मानव मात्र को स्वस्थ एवं निरोगी बनाने का यत्र-तत्र अपने ग्रन्थों में उल्लेख किया है।
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