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धर्म के 10 लक्षण dharm ke 10 lakshan

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धर्म के दस लक्षण (दशकं धर्मलक्षणम्) नामक लघुकाय पुस्तिका वस्तुतः २००९ के वार्षिकोत्सव में ब्रह्मचारिणियों द्वारा प्रस्तुत वक्तव्यों का संकलन है। मनुस्मृति में प्रोक्त धृति क्षमा आदि धर्म के लक्षण अत्यन्त गम्भीर तथा विस्तार सापेक्ष है पुनरपि षष्ठ, सप्तम, अष्टम कक्षा की ब्रह्मचारिणियों की पात्रता देखते हुये तथा मञ्च की समयगत विवशता को देखते हुये लघु वक्तव्य ही लिखे गये। छोटे बच्चों के मुख से निःसृत सटीक शब्द कई बार बड़ों की अपेक्षा अधिक प्रभावकारी होते हैं यह सोचकर ही इसे प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया।

धर्म शब्द धृञ् धारणे धातु से औणादिक मन् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है। धर्म शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक लिंग भेद से उभयलिङ्गी है किन्तु जहाँ यह कर्मवाचक है वहीं नपुंसक लिंग में प्रयुक्त होता है अन्यत्र प्रायः पुल्लिंग में ही प्रयुक्त होता है। धारणार्थक धृञ् धातु से निष्पन्न इस धर्म शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य प्रथम अर्थ हैचराचर जगत् जिसको धारण करते हैं या जिसके आधार पर अस्तित्व पाते हैं वह गुण अथवा स्वभाव । संस्कृत वाड्मय में धर्म शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में देखा जाता है ।

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