Weight | 100 g |
---|
Related products
-
दयानन्दोक्त औषधि आरोग्य सूत्र dayanandokt aushadhi arogy sootr
Rs.125.00Rs.100.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रो० डॉ० लोखण्डेजी ने स्वामी दयानन्द सरस्वती रचित सभी पुस्तकों के सागर से मोती चुनकर एक जगह संकलित करने का कठिन श्रम किया है। इस पुस्तक की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि स्वामीजी के औषधि एवं आरोग्य सूत्रों को आधुनिक चिकित्सा के सिद्धान्तों से तुलना कर आज के सन्दर्भ में ये कितने उपयोगी हैं यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है। इस संकलन के निम्न प्रकरणों में उन्होंने विस्तार से स्वामीजी और आधुनिक चिकित्सकों के सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है जिनमें ब्रह्मचर्य एवं वीर्यरक्षा, आहार-विहार, दिनचर्या, यज्ञ एवं पर्यावरण, व्यवहार कौशल्य, योगासन एवं प्राणायाम, विवाह और गृहस्थाश्रम, ऋतुकाल एवं गर्भाधान विधि, प्रसूति बालसंगोपन, मांस भक्षण, दुर्व्यसनों से हानि, रोग एवं औषधि प्रमुख हैं।
मुझे लगता है कि मानव सर्वांगीन आरोग्य की प्राप्ति हेतु इन आरोग्य
सूत्रों का पालन करे तो वह जीवन में अवश्य सुखी होगा। मनुष्य केवल शारीरिक व्याधियों से ही रोगग्रस्त नहीं होता, अपितु मानसिक एवं आत्मिक दुःखों से भी त्रस्त रहता है। आज का विज्ञान केवल शरीर पर ही गौर करने का आदि हो गया है। आज का आरोग्य विज्ञान मनुष्य के सर्वांगीन दुःखों एवं व्याधियों से मुक्ति दिलाने के लिए कृत संकल्प नहीं है लेकिन आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा तथा सुव्यवहार दर्शन मनुष्य को सर्वतोमुखी सुखी बना सकता है। स्वामी दयानन्दजी ने औषधि चिकित्सा के साथ-साथ, रहन-सहन, दिनचर्या, गृहस्थ, ब्रह्मचर्य, व्यवहार कौशल्य, योग-प्राणायाम-आसनादि के द्वारा मानव मात्र को स्वस्थ एवं निरोगी बनाने का यत्र-तत्र अपने ग्रन्थों में उल्लेख किया है।
Add to cart -
धर्म का आदिस्रोत dharm ka aadisrot
Rs.100.00Rs.80.00Sold By : The Rishi Mission Trustधर्म का मूल ईश्वर है
– धर्म का उत्पत्ति- स्थान क्या है ? किसी मत विशेष का नहीं प्रत्युत उस धर्म का मूल क्या है जिसके अवान्तर रूप से विविध प्रकार के मत विद्यमान हैं। साधारणतया इस प्रश्न के दो उत्तर हैं – (१) यह कि धर्म का मूल ईश्वर है और (२) यह कि उसकी उत्पत्ति मनुष्य से है। प्रथम विचार इस बात की उपेक्षा नहीं करता कि वर्त्तमान धर्मों के विकास और वृद्धि पर मनुष्यों का, उनके जातीय इतिहास और देश की भौगोलिक अवस्था तक का बड़ा प्रभाव पड़ा है। केवल इस बात पर बल दिया है कि धर्म का आदि मूल कारण ईश्वर है ।
यह पुस्तक इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर पूर्णरूपेण मीमांसा करने की प्रतिज्ञा नहीं करती । इसका उद्देश्य संसार के मुख्य-मुख्य मतों के मिलान और अनुशीलन से केवल यह सिद्ध करना है कि नवीन मतों का पता पुराने मतों से और इन पुराने मतों का पता और अधिक प्राचीन मतों से चल सकता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर पता लगाते हुए हम मनुष्य जाति के प्राचीनतम पवित्र धर्म तक पहुंच जाते हैं। मतों के परस्पर मिलान पूर्वक अनुशीलन से यह सिद्ध हो जायेगा कि वास्तव में धर्म की सीमा के अन्तर्गत किसी प्रकार का नया आविष्कार कभी नहीं हुआ। धर्म के मुख्य सिद्धान्त जिन्हें उसका सार कहना चाहिये उतने ही पुराने हैं जितनी कि मानव जाति । इससे सिद्ध होता है कि सृष्टि के आरम्भ काल में परमेश्वर ने धार्मिक ज्ञान का बीज मनुष्य के लिए दिया था। और यही धर्म-ज्ञान का बीज मानव जाति के ग्रन्थ भण्डार के सर्वसम्मत प्राचीनतम वेद में पाया जाता है ।
Add to cart
Reviews
There are no reviews yet.