भैषज्य कल्पना विज्ञान bhaishajya kalpana vigyan
Rs.350.00 Rs.275.00
भैषज्य कल्पना विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान की प्रमुख शाखा है। इसमें औषधियों के विषय में निर्माणविधि और मानकों आदि का ज्ञान मिलता है।
आयुर्वेद के अनुसार चिकित्सा में भैषज या औषधि का प्रमुख स्थान है। आचार्य चरक ने औषधि या भैषज को चिकित्सा के चतुष्पावों में चिकित्सक के बाद द्वितीय पाद के रूप में वर्णित किया है। चिकित्सा की सफलता में औषधि को विशेष माना है। भैषज्य कल्पना विज्ञान में भैषज के विषय, विस्तृत स्वरूप, भेद, उत्पत्ति स्थल, संग्रह विधि, प्रयोज्यांग, पहचान, प्रयोगविधि मानक माप औषध और औषधियों के गुण कर्म आदि का ज्ञान मिलता है। इसमें विस्तृत स्वरूप और सम्यक ज्ञान का होना भारतीय चिकित्सा (आयुर्वेद) में इसकी प्रधानता को और भी प्रमाणिकता प्रदान करता है। य चिकित्सा विज्ञान का अभिन्न अंग है।
इस पुस्तक में CCIM पर आधारित पाठ्यक्रम के आधार पर विषयों को प्रस्तुत किया, गया है। यह पुस्तक स्नातक, स्नातकोत्तर एवं डॉक्ट्रेट प्रणालियों के अलावा आयुर्वेदिक औषधि निर्माताओं के लिए भी अमूल्य ग्रंथ के रूप में उपयोगी है। इस ग्रंथ में द्रव्य के संग्रहण विधि से लेकर विभिन्न संस्कार विधियाँ, संरक्षण विधियाँ और अंत में. रोगियों को वितरण नियमों के सिद्धांत भी पूर्णतः सम्मिलित हैं। सुलभ शैली, सरल भाषा, क्रमान्वित स्वरूप में विषय को प्रस्तुत किया गया है।
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द्रव्यगुण विज्ञान dravyaguna vigyan
Rs.400.00Rs.325.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रस्तुत ग्रन्थ की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
• भारतीय केन्द्रीय चिकित्सा परिषद्, नई दिल्ली द्वारा निर्धारित द्रव्यगुण प्रथम भाग के नवीनतम संशोधित पाठ्यक्रम के अनुसार ही सभी प्रकरणों / अध्यायों का क्रमबद्ध वर्णन किया गया है ।
● नवीनतम पाठ्यक्रम में समाविष्ट आधुनिक औषधविज्ञान (Modern Pharmacology) के प्रकरणों को भी स्नातक स्तरीय छात्रों को ध्यान में रखते हुए सरल एवं सुबोधगम्य स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है । (विदित हो कि आयुर्वेद स्नातकोत्तर अध्ययन काल के दौरान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आधुनिक औषधविज्ञान विषय भी पढ़ाया जाता है जिसके कारण मैं इसे लिखने का दुःसाहस कर सका)
पाठ्यक्रमानुसार ही ग्रन्थ को दो खण्डों (खण्ड-क एवं खण्ड-ख) में तथा पुनः खण्ड-ख को दो उपखण्डों में विभाजित किया गया है। खण्ड क के अन्तर्गत विषयों को २१ अध्यायों में विभक्त किया गया है जिनमें द्रव्यगुण, द्रव्य, द्रव्यों – द्रव्यगुणविज्ञान
) का मौलिक, रचनात्मक तथा कर्मात्मक वर्गीकरण (संहितानुसार), छ: मुख्य निघण्टुओं के परिचय सहित उनमें द्रव्यों के वर्गीकरण की शैली, गुण, रस, विपाक, वीर्य, प्रभाव, कर्म, चरकोक्त गणों के कर्म, मिश्रक वर्गीकरण, द्रव्यों का नामकरण व पर्याय का आधार देश विभाग, भूमिविभाग, द्रव्य संग्रहण एवं संरक्षण इत्यादि का पृथक् पृथक् अध्यायों में वर्णन किया गया है। खण्ड-ख के प्रथम उपखण्ड के विषयों को पाँच अध्यायों में विभक्त किया गया है जिनमें द्रव्यशोधन, अपमिश्रण, प्रतिनिधि द्रव्य, कृत्रिम द्रव्य, प्रशस्त भेषज, द्रव्यों का वैरोधिकत्व, औषध मात्रा का निर्धारण, अनुपान व्यवस्था, भैषज्य काल, भैषज्य प्रयोग मार्ग, औषध व्यवस्था पत्र लेखन, Plant extracts (Alkaloids, Glycosides, Flavonoids, Food additives, Excipients & Food colours आदि) का वर्णन किया गया है । खण्ड-ख के द्वितीय उपखण्ड में आधुनिक औषधविज्ञान ( Modern Pharmacology) के सामान्य सिद्धान्तों तथा औषधियों के विभिन्न गणों को ३९ अध्यायों में विभक्त किया गया है जिनमें Anaesthetics, CNS depressants, Sedatives, Hypnotics, Tranquilisers, Antipyretics, Analgesics, Antiepileptics, Antihypertensive, Antianginal, Antiplatelet, Hypolipidaemic, Haemopoetic, Coagulants, Bronchodialators, Aerosols/Inhalants, Expectorants, Digestants, Carminatives, Antacids, Antiulcer, Laxatives, Antidiarrhoeals, Antiemetics, Hepatoprotective, Diuretic, Antidiuretic, Lithotriptic, Antiinflammatory, Hormonal therapy, Antiobesity, Antidiabetics, Antithyroid, Oxytocic, Galactagogues, Contraceptives, Styptics, Antihistamines, Antimicrobial, Antibiotics, Antimalarial, Amoebicidal, Antifilarial, Anthelmentic, Antifungal, Vitamins, Minerals, Water imbalance, IV fluids, Vaccines, Antivenom, Antirabies serum, Local anti septics, Drugs in Forstophthalmic practice, Anti cancer drugs Immunomodulators का वर्णन किया गया है। प्रत्येक अध्याय के शुरू में वर्णित विषयवस्तु का उल्लेख किया गया है।
• ग्रन्थ से सम्बन्धित मूलवाक्यों को प्रत्येक अध्याय के अन्त में दिया गया है जिससे • मूलग्रन्थ विस्मृत न हो तथा प्रमाणिकता भी बनी रहे।
द्रव्यों के वर्गीकरण पर विशेष ध्यान देते हुए बृहत्त्रयी के सभी द्रव्यों के वानस्पतिक नाम तथा उन द्रव्यों के टीकाकार सम्मत नाम भी दिये गये हैं जिससे पाठकों को एक ही स्थान पर द्रव्य का मूलभूत ज्ञान मिल सके।
पाठकों में मूल विषयवस्तु को लेकर कोई भ्रम या सन्देह न रहे, इसके लिए मैंने प्रत्येक सन्दर्भ आयुर्वेद के मूल ग्रन्थ तथा उनकी टीकाओं का अध्ययन कर मूलरूप में ही उद्धृत किये हैं न कि अन्य किसी पुस्तक से।
• जिन द्रव्यों के वीर्य व विपाक रस से विपरीत होते हैं, उनका विस्तृत उल्लेख पंचदश अध्याय में किया गया है ।
● पुस्तक के अन्त में, पूर्व में पूछे गये परीक्षा प्रश्नपत्रों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नों का संकलन किया गया है जिससे छात्रों को प्रश्न के स्वरूप का पता चल सके ।
यदि मेरी इस कृति से पाठकों को कुछ लाभ मिल सका तो मैं अपने कठिन परिश्रम को सार्थक समझुंगा ।
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आयुर्वेदिय रचना शारीर विज्ञान ayurvediy rachana sharir vigyan
Rs.400.00Rs.325.00Sold By : The Rishi Mission Trustचिकित्सा शास्त्र के छात्र का पाठ्यक्रम प्राकृत शरीर के अध्ययन के साथ शुरू होता है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र (M.B.B.S.) में मानव शरीर रचना (human anatomy) और मानव शरीर क्रिया (human physiology) इन विषयों का प्रथम वर्ष में अध्ययन होता है। आयुर्वेदाचार्य (B.A.M.S.) के अभ्यासक्रम में भी इन विषयों का समावेश किया गया है जो क्रम से रचना शारीर और क्रिया शारीर कहलाते हैं ।
प्राचीन काल में भी शरीर के ज्ञान को मूलभूत माना गया है । प्राणाभिसर वैद्य (जो चिकित्सक प्राणों की रक्षा करते हैं तथा रोगों का विनाश करते हैं) के गुणों में चरक के शरीर ज्ञान और शरीर उत्पत्ति ज्ञान को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है।
तथाविधा हि केवले शरीरज्ञाने शरीराभिनिर्वृत्तिज्ञाने प्रकृतिविकारज्ञाने च निःसंशया: । (च.सू. २९/७)
इस प्रकार (प्राणाभिसर वैद्य को) शरीर ज्ञान, शरीर अभिनिवृत्ति (उत्पत्ति) ज्ञान तथा प्रकृति-विकार का नि:संशय ज्ञान होता है । (चरक )
आयुर्वेदाचार्य के पाठ्यक्रम में जो रचना शारीर विषय है उसमें आयुर्वेदिय रचना शारीर तथा आधुनिक शरीर रचना, दोनों को सम्मिलित किया गया है। चरक-सुश्रुत आदि प्राचीन संहिताओं में रचना शारीर तथा क्रिया शारीर सम्बद्धि जो वर्णन प्राप्त होता है वह ‘आयुर्वेदिय शारीर’ है और आधुनिक मानव शरीर रचना ‘human anatomy’ कहलाती हैं ।
आयुर्वेदिय संहिताओं से रचना शारीर का जो वर्णन प्राप्त होता है वह विशिष्टता पूर्ण है। जैसे मर्म, स्रोत, कला आदि सिद्धांतों का निर्देश केवल आयुर्वेद में है। आयुर्वेदिय चिकित्सा शास्त्र का सफल प्रयोग करने के लिये उसके अपने सिद्धांतों को आयुर्वेदिय पद्धति से समझ लेना आवश्यक है । आधुनिक चिकित्सा शास्त्र ने निरन्तर संस्करण और अनुसंधान के बाद वर्तमानकालिक विकसित anatomy प्राप्त की है। रचना शारीर का सम्पूर्ण ज्ञान आज के आयुर्वेद चिकित्सक के लिये भी अत्यंत आवश्यक है इसलिये आयुर्वेदीय रचना शारीर विज्ञान
आयुर्वेदाचार्य के अभ्यासक्रम में आधुनिक anatomy का समावेश किया गया है। संहिताओं में उल्लिखित सिद्धांत हजारों साल पुराने है तथा उनका कालानुरूप योग्य संस्करण भी नहीं हुआ है । इसलिये physics, chemistry, bioliogy इन आधुनिक विज्ञान के विषयों का अध्ययन करनेवाले छात्रों को आयुर्वेदिय शारीर के कुछ सिद्धांतों का अध्ययन करने में कठिनता का अनुभव होने की संभावना है। ऐसे प्रसंग में छात्रों को अपने अध्यापकों के साथ विचार विनिमय करके शंकाओं का समाधान करना चाहिये ।
के साथ तुलना anatomy आयुर्वेदिय रचना शारीर की सभी संदर्भों में करना अथवा समानता दिखाना संभव नहीं और न्यायसंगत भी नहीं । प्रायः इस तुलना में तज्ञों में मतभिन्नता देखी जाती है । इसलिये आयुर्वेदिय सहिताओं में वर्णित मनुष्य के शरीर का विवेचन उसके मूल रूप में इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया गया है। चरक – सुश्रुतादि के अपेक्षित शारीर को समझने का प्रयास इस ग्रंथ में किया गया है ।
संहिताओं से शरीर सम्बन्धित सिद्धांत तथा संकल्पना का अध्ययन करते समय कुछ कठिनता का सामना करना पड़ता है ।
14 १. रचना का विस्तृत वर्णन संहिताओं के शारीर स्थान में है परंतु शारीर के अन्य उपयोगी संदर्भ संहिताओं में बिखरे हुये हैं। यहाँ सब संदर्भों को संकलित करना तथा वर्णन को क्रमानुसार व्यवस्थित करना आवश्यक होता है। जैसे इन्द्रियों का वर्णन चरक में एक ही स्थान, अध्याय में प्राप्त नहीं होता । इस ग्रंथ के इन्द्रिय प्रकरण में जो श्लोक एकत्रित किये गये है वे चरक सूत्र स्थान के १, ७, ८, ११, १७, २८, ३० क्रमांकों के अध्यायों से तथा चरक शारीर स्थान के पहले और इन्द्रियस्थान के चौथे अध्याय से लिये गये हैं। इस प्रकार के संदर्भ सुश्रुत आदि अन्य संहिताओं से भी एकत्र किये गये हैं ।
२. संस्कृत का पूर्ण ज्ञान प्रत्येक छात्र को नहीं होता। इसलिये संस्कृत के श्लोक का बोध करना छात्रों के लिये कठिन होता है । ३. संहिताओं में प्रस्तुत अनेक सूत्र सार स्वरूप हैं उनका आशय समझना कठिन होता है । को
४. टिका सूत्र का विश्लेषण करती है, कठिन शब्दों का अर्थ व्यक्त करती है। इसलिये टिका का अध्ययन करना लाभदायक है। परंतु कभीकभी टिका भी अतिविस्तारीत होती है अथवा अपेक्षित अर्थ को प्रकट नहीं करती ।
५. आधुनिक विज्ञान के छात्रों के लिये आयुर्वेद के कुछ सिद्धांन समझना कठिन होता है; जैसे मर्म, स्रोत आदि ।
इस समस्या का मुकाबला करनेवाले आयुर्वेद के छात्रों की सहायता करने हेतु इस ग्रंथ का प्रबन्ध किया गया है।
यह संदर्भ ग्रंथ छात्रों को इस प्रकार सहायक है –
१. यहाँ संस्कृत तथा हिंदी भाषा का उपयोग किया गया है इसलिये अध्यापक तथा विद्यार्थी इस ग्रंथ का उपयोग कर सकेंगे ।
२. आयुर्वेदिय शारीर सम्बन्धित सुश्रुत, चरक आदि संहिताओं के सभी महत्त्वपूर्ण सूत्र, उनकी टिका तथा उनका योग्य हिंदी अनुवाद यहाँ उपलब्ध है।
३. यहाँ केवल आयुर्वेद के रचना सम्बन्धि विषयों का विस्तार से वर्णन किया गया है। आधुनिक anatomy के अनुवादित रूप का समावेश यहाँ नहीं किया गया है। क्योंकि आयुर्वेदिय शारीर और आधुनिक anatomy के मिश्र वर्णन से छात्र संभ्रमित होने की संभावना होती है और सभी वर्णन को आयुर्वेदिय शारीर के रूप में ही ग्रहण करते हैं। जैसे ‘अंसच्छदा’ deltoid muscle का केवल अनुवादित शब्द है । ‘असंच्छदा’ यह शब्द संस्कृत का रूप है परंतु इसका किसी आयुर्वेदिय संहिता में उल्लेख नहीं है। इसलिये इस प्रकार के anatomy के अनुवादित शब्दों का यहाँ उपयोग नहीं किया गया है| anatomy के लिये तो अनेक, अत्यंत विस्तृत पुस्तक उपलब्ध हैं। विद्यार्थी उनका स्वतंत्र उपयोग कर सकते हैं ।
४. इस ग्रंथ में आवश्यकता के अनुसार अत्यंत जरूरी स्थान पर ही आयुर्वेदिय रचना शारीर की anatomy के साथ तुलना की है अथवा सहसम्बन्धता का निर्देश किया गया है।
५. संहिताओं के एक-एक सूत्र की विशिष्ट प्रकार से, क्रम से योजना
आयुर्वेदीय रचना शारीर विज्ञान
की गई है ताकि छात्र पूर्ण संकल्पना का ज्ञान विना संभ्रम के प्राप्त कर सके। ६. आवश्यकता के अनुसार अवयवों का सचित्र वर्णन किया गया है जिसके उपयोग से विषय समझने में सुगमता हो तथा शास्त्र के प्रति अभिरूचि उत्पन्न हो ।इस ग्रंथ में रचना शारीर का ज्ञान आयुर्वेदिय पद्धति से प्राप्त करने का प्रयास किया गया है। ध्येय यह है कि छात्र शास्त्रवादी हो और रचना शारीर का विचार आयुर्वेदिय दृष्टिकोण से करें तथा केवल श्रेष्ठ आयुर्वेद के शारीर का ज्ञान प्राप्त कर सके ।
आशा है अध्यापक और विद्यार्थियों के लिये यह ग्रंथ उपयोगी तथा लाभदायक सिद्ध होगा ।
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