योग मीमांसा Yog Mimansa
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योग मानव जीवन के कल्याण का आधार है । योग के बिना अन्य सभी साधन पूर्णानन्द की प्राप्ति करवाने में समर्थ नहीं हैं। प्रत्येक प्राणी समस्त दुःखों से छूटकर पूर्ण, स्थायी, दुःखरहित आनन्द को प्राप्त करना चाहता है । इस उद्देश्य की पूर्ति योग से ही सम्भव है । इसलिए योग के वास्तविक स्वरूप को जानना व जनाना और यथाशक्ति उस पर चलना-चलाना मुख्योद्देश्य है। योग के स्वरूप को न जानने और उस पर न चलने के कारण मनुष्य जाति प्रायः दुःख- संतप्त है । इस वर्तमानकाल में योग के नाम पर बहुत कुछ प्रयास किये जा रहे हैं । परन्तु योग के स्थान में अयोग सिखाया जा रहा है । यदि इस झूठे योग को न रोका गया तो इसके परिणाम बहुत भयंकर होंगे । इस अन्ध-परम्परा से सच्चा योग भी कलंकित हो जायेगा । इसलिये योग के वास्तविक स्वरूप को जानना अत्यन्त आवश्यक है । योग क्या है और अयोग क्या है, इसको मनुष्य जान सकें, अपना तथा दूसरों का कल्याण कर सकें इसलिए योग के विषय में लिखना प्रारम्भ किया है । इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में योग का स्वरूप, योग का फल, उसके साधन और योग-मार्ग में आने वाले बाधकों का स्वरूप समझाने का प्रयास किया है । उत्तर भाग में यह बतलाया है कि योग के नाम पर क्या-क्या भ्रान्तियाँ प्रचलित हो गई हैं । इन दोनों भागों का अध्ययन करने पर यह निश्चय हो जायेगा कि वास्तविक योग क्या है ? और योग के नाम पर सिखाया जाने वाला अयोग क्या है ? आशा है कि बुद्धिमान् योग के जिज्ञासु इसको पढ़-पढ़ाकर अपना और अन्यों का कल्याण करेंगे ।
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योग-भ्रान्तियों को ठीक प्रकार से जाने बिना योग मार्ग पर चलना अत्यंत कठिन है । इन योगभ्रान्तियों का खण्डन सबके हित के लिए किया है, किसी की हानि के लिये नही । पक्षपात को छोड़कर जो सत्य है, असको सत्य और जो असत्य है उसको असत्य बतलाना मेरा मुख्य उद्देश्य है । वेद और वेदानुकुल ग्रन्थों के अध्ययन तथा क्रियात्मक योगाभ्यास के करने से मैं इस परिणाम पर पहुंचा हूं कि वैदिक योग ही समस्त दुःखों से छुड़ा कर मोक्ष आनंद की प्राप्ति कराने का सच्चा साधन है, अन्य कोई योग नहीं ।
Weight | 250 g |
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