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Yajurveda-Shatakam यजुर्वेद शतकम
Rs.50.00Rs.35.00Sold By : The Rishi Mission Trustवेद वैदिक संस्कृति के आधार स्तंभ है, वेद प्रभु प्रदत वह ज्ञान है, जो सृष्टि के आदि में मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और चारित्रिक उन्नति के पथ प्रदर्शन के लिए मिला था, यह ज्ञान चार ऋषीयों को मिला था, ज्ञानस्वरूप प्रभु ने यजुर्वेद का प्रकाश वायु ऋषि के ह्रदय में किया था याजिक प्रक्रिया में यजुर्वेद का प्रमुख एवं महत्वपूर्ण स्थान है अतः इसे यजुर्वेद भी कहते हैं यज्ञ का एक नाम अध्वर भी है, अतः इसे अध्वर्वेद भी कहते हैं, चारों वेदों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं, उन्हीं के अनुसार यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान है, यजुर्वेद कर्म वेद है, पहले ही मंत्र में श्रेष्ठतम कर्मों को करने का आदेश दिया गया है, अंत में भी कर्म करने पर बल दिया गया है, मनुष्य को चाहिए कि वह इस संसार में 100 वर्ष तक कर्म करते हुए जीने की इच्छा करें ,यजुर्वेद यज्ञवेद है और कर्मकांड प्रधान है परंतु यज्ञ का अर्थ संकुचित न होकर बहुत व्यापक है प्रत्येक परोपकार का कर्म यज्ञ है यजुर्वेद में धर्म नीति, समाजनीति, राजनीति, अर्थनीति, शिल्प कला कौशल तथा मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत सभी कर्मों का वर्णन है, अध्यात्म ज्ञान के गूढ़ तत्व भी इसमें स्थान स्थान पर मिलते हैं, इसका 40 वा अध्याय तो सारे का सारा ही आध्यात्मिक तत्वों से परिपूर्ण है, यह अध्यात्म ईशोपनिषद के नाम से प्रसिद्ध है, जिस पर समस्त संसार मोहित है, प्राचीन काल में यजुर्वेद की 101 शाखाएं थी इन शाखाओं के भी दो प्रधान वर्ग है एक शुक्ल और दूसरा कृष्ण, शुक्ल यजुर्वेद की 15 शाखायें थी और कृष्ण यजुर्वेद की 81 शुक्ल यजुर्वेद का ब्राहमण शतपथ और उपवेद धनुर्वेद है,
यजुर्वेद की अध्याय संख्या 40 और मंत्रों की संख्या 1975 है, महर्षि दयानंद ने शुक्ल यजुर्वेद पर अपना भाष्य लिखा है ,महर्षि दयानंद का भाष्य अपूर्व एवं अनूठा है उव्वट और महीधर के भाष्य इतने अश्लील है कि उन्हें सभ्य समाज के समक्ष बैठकर पढ़ा नहीं जा सकता, इसके विपरीत महर्षि दयानन्द का भाष्य इस अश्लीलता से सर्वथा रहित है महर्षि दयानंद का भाष्य वैदिक सत्य सिद्धन्तों का प्रतिपादन तथा मनुष्यों के दैनिक कर्तव्यों का संदेश व उपदेश देता है, इस पुस्तक में महर्षि के भाष्य से 100 मन्त्र दिये गये हैं इसमें भी प्रत्येक मंत्र का एक शीर्षक दे दिया है जिसमें मन्त्र समझने की सुविधा हो, मंत्रों के अंत में जो संख्या दी गई है वह अध्याय और मंत्र की सूचक है, वेद का पढ़ना पढ़ना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है, आप भी अपने परम धर्म का पालन कीजिए प्रतिदिन वेद का स्वाध्याय कीजिए यदि अधिक नहीं हो तो एक मन्त्र अवश्य पढ़िए इस संग्रह को पढ़कर कुछ व्यक्तियों को भी मूल वेद पढ़ने की प्रेरणा होगी तो हम अपने परिश्रम को सफल समझेंगे
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