श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम् ( एक मात्र वैदिक पञ्चाङ्ग) विक्रम संवत २०७९-८० Shri Mohan Kriti Arsh Patrakam (The only Vedic Panchang) Vikram Samvat 2079-80
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श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम् ( एक मात्र वैदिक पञ्चाङ्ग)
विश्व भर के हिन्दू भाई-बहिनों को यह बता देना मैं अपना धार्मिक दायित्व समझता हूँ कि हम सब अपने व्रत-पर्व-त्यौहारों की तिथियों के निर्धारण में बहुत बड़ी गलती पर हैं। इसका कारण वैदिक मार्गदर्शन से विमुख एवं धार्मिक रूढ़िवादिता से ग्रसित, वर्तमान के सभी पञ्चाङ्गों का अवैज्ञानिक, अप्राकृतिक तथ्यहीन अथवा भ्रान्त सङ्क्रान्तियों पर आधारित होना है। सत्य यह है कि मकर (माघ) सङ्क्रान्ति अर्थात माघी, वस्तुतः जनवरी में एवं मेष (वैशाख) सङ्क्रान्ति अर्थात वैशाखी अप्रैल माह
में न कभी हुई है, न हो सकती है और न कभी होगी ही। आम ज्योतिषियों की अवधारणा के विरूद्ध सभी 28 नक्षत्र (न कि केवल 27 ) समान अथवा 13°20 कला के नहीं हैं। संवत् का शुक्लपक्ष से प्रारम्भ होना किन्तु चान्द्रमासों से कृष्णपक्ष से प्रारम्भ होना अवैदिक और अप्राकृतिक तथ्य है। चान्द्र मास शुक्लादि (अमान्त) ही होते हैं और किसी भी सङ्क्रान्ति के बाद प्रारम्भ होने वाला शुक्लपक्ष उसी सौर मास के नाम का चान्द्रपक्ष होता है। यह तथ्य श्रद्धेय शङ्कराचार्यो, विभिन्न विश्वविद्यालयों के विभागध्यक्षों, शिक्षाविदों एवं लगभग सभी पञ्चाङ्गकारों के संज्ञान में लाने की हमारी कोशिशें रही हैं। अब आम जनता को भी इस अपमान दायी भूल से अवगत करने का हमारा उद्देश्य एवं प्रयास है। वास्तविक माघ शुक्ल पक्ष एवं तदुपरान्त माघ कृष्ण पक्ष, सूर्य की परमक्रान्ति प्रभाव से घटित होने वाली वास्तविक मकर (माघ) सङ्क्रान्ति पर ही आधारित होते हैं। ठीक इसी प्रकार वैशाखी भी सूर्य की शून्यक्रान्ति युक्त मेष राशि के शून्य भोगांश पर ही आधारित होती है। जनवरी की अयथार्थ मकर सङ्क्रान्ति से न तो शुद्ध माघ शुक्ल पक्ष का निर्धारण ही हो सकता है और ना ही इस गलत स्वीकृति से कोई पञ्चाङ्ग ही शुद्ध या स्वीकार्य हो सकता है। माघ, एक उदाहरण के तौर पर इंगित किया गया है। वस्तुतः इसी तरह सारी ही 12 सङ्क्रान्तियां गलत ली जा रही हैं। इसी कारण से सारे सौर एवं चान्द्रमास गलत स्थिति में दर्शाये जा रहे हैं। यह भी जानना चाहिये कि उत्तरायण तथा शिशिर ऋतु का आरम्भ, यही मकर सङ्क्रान्ति का दिन होता है और इस दिन, रात्रि सबसे बडी और दिन सबसे छोटा होता है और साथ ही मकर रेखा क्षेत्र पर वस्तु का छायालोप हो जाता है। छायालोप अर्थात छाया का न बनना। इसी प्रकार वैशाखी के दिन, दिन-रात्रि का बराबर होना व भूमध्य रेखा क्षेत्र पर वस्तु का छायालोप होना सर्वथा प्रत्यक्ष है। आप मानिये, और अन्ततः आपको मानना ही होगा कि एक मात्र शुद्ध वैदिक पञ्चाङ्ग श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम् ही है जो कि सिद्धान्त सम्मत होने से सही व्रत-पर्व तिथियों के लिये आपका सम्यक मार्गदर्शन करता है। याद रखें कि यही आपका वास्तविक पञ्चाङ्ग है। अस्तु समस्त हिन्दु समाज को चाहिये कि इस पञ्चाङ्ग के अनुसार निर्धारित तिथियों में अपने व्रत-पर्व और त्योहार मनायें।
धन्यवाद ।
पत्रकम् के गणितकर्ता एवं सम्पादक:-
आचार्य दार्शनेय लोकेश अध्यक्ष, “आर्षायण” (पंजीकृत ट्रस्ट),
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