Aasan evm yog mudrayen
Rs.300.00
आसन एवं योगमुद्रायें अनादि काल से ही मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अन्तर्गत विकसित हुई कही जा सकती हैं। मनुष्य के क्रिया-कलापों का विकास प्राचीन काल से ही उसके सहज स्वभाव में निहित ज्ञात होता है । यह उसकी अपनी प्रकृति है जिसकी वजह से वह अपने शरीर का अनेक स्वरूपों में नित्यप्रति परिवर्तन करता है। शरीर के विभिन्न स्वरूपों की अलग-अलग पहचान भी क्रमशः व्यवहार के अनुसार स्थिर परिभाषाओं में अभिव्यक्त की जाने लगीं। मानव ने शरीर के द्वारा की जाने वाली विविध क्रियाओं को महत्त्व देना शुरू किया और यह समझा कि जो विभिन्न क्रियायें की जाती हैं, वे शरीर के लिए उपयोगी भी हैं। शरीर के द्वारा जितने भी स्वरूप बन सकते हैं उन पर ध्यान दिया गया और मानव मस्तिष्क के विकास के फलस्वरूप उनकी शास्त्रीय परम्परा का विकास हुआ। अब उन उन स्वरूपों के रूप में मुद्रा विशेष पहचानी गईं । शरीर के विभिन्न स्वरूपों को उनके विनियोग एवं भाव प्रदर्शन के अनुसार विशेष नाम दिये गये । शरीर द्वारा की जाने वाली क्रियाओं का तीन मुख्य भागों में प्रारम्भिक वर्गीकरण हुआ जान पड़ता है- १. खड़े रहकर पैरों से होने वाली क्रियायें, २. हाथों से की जाने वाली क्रियायें, तथा ३. बैठने में की जाने वाली क्रियायें । 1 सभी आसन, स्थान एवं हाथों की मुद्रायें मनुष्य की सहज शारीरिक प्रवृत्तियों और क्रियाओं के रूप में निर्धारित हुई ज्ञात होती हैं। विभिन्न शारीरिक प्रक्रियायें जैसे खड़ा होना, बैठना, सोना, चलना, कूदना, भागना इत्यादि के आधार पर उन्हें पहचाना जाने लगा। उदाहरण स्वरूप, शवासन मनुष्य की पूर्ण सुप्तावस्था का रूप है।
2 in stock
Reviews
There are no reviews yet.