Weight | 50 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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Nirgun Brahm
Rs.200.00Rs.175.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रस्तुत ग्रन्थ “निर्गुण ब्रहा” परमपूज्य ब्रहापि श्री स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज की ब्रह्मपरक अनुसन्धानात्मक विचार शैली का पूर्णरूपेण परिचायक है। उन्हीं के द्वारा पूर्व रचित ग्रन्थ “ब्रहाविज्ञान” में ब्रहा साक्षात्कार के साधनों का सविस्तार प्रतिपादन किया गया था। इस स्वनामसिद्ध रचना में ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप का युक्ति संगत एवं निर्णयात्मक निदर्शन कराया गया है और ब्रह्म के सम्बन्ध में प्रचलित अनेक सिद्धान्तों के यथोचित परीक्षण के पश्चात् प्रमाण सिद्ध मन्तव्यों तथा निष्कर्षों की उपस्थित किया गया है। ग्रन्थ के अनुपम महत्त्व का निर्णय तो विचारशील जिज्ञासु पाठक स्वयं कर सकेंगे। इसमें सन्देह नहीं कि ब्रह्म जैसे गम्भीर जटिल एवं गहनतम विषय पर गुरुदेव की यह अनूठी देन एक बड़े अभाव की पूर्ति करती है।
आशा है कि यह विचित्र दार्शनिक उपहार अपनी गम्भीरता द्वारा ब्रहा विषयक चिन्तन एवं ज्ञान की ओर प्रेरित करते हुए जिज्ञासु साधकों को ज्ञानशील बनाने में सफल होगा।
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Hathyog Vidya
Rs.200.00Rs.150.00Sold By : The Rishi Mission Trustयोग-साधना अति प्राचीन काल से ही अत्यन्त लोकप्रिय रही है, आज भी है और आगे भी रहेगी इसमें किंचित् मात्र सन्देह नहीं है। हमारे प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों का यह एक महान् अवदान सिद्ध हुआ है। भारतीय मोक्ष- साधना के क्षेत्र में योग एक सार्वभौम तथा सर्वोत्तम साधन पद्धति है। हमारे दर्शन आदि शास्त्रों में या धर्म-ग्रन्थों में किसी न किसी विषय पर या किसी अंश में वाद-विवाद बना ही रहता है। परन्तु योग ही एक ऐसा विषय है जिसमें वाद-विवाद के लिये कोई गुंजाईश नहीं है; क्योंकि योग तर्क का विषय नहीं है किन्तु अनुभूति का विषय है। इसलिये योग कहता है कि ऐसा करो, ऐसा करने से उसका फल ऐसा मिलेगा । यही कारण है कि औपनिषदिक काल के ऋषि-मुनि लोग भी इस योग-साधना में कुशल अभ्यासी बन कर योगसिद्ध योगी बन जाते थे। योगाभ्यास से होने वाले लाभों को भी वे मुक्तकण्ठ से व्यक्त करते थे। जैसे कहा है
‘न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम’ ।। श्वेता. २ / १२ ।।
अर्थात् जिस योगी ने योग-साधना का अभ्यास भली प्रकार से किया है और उस योग-साधना के द्वारा योगाग्निमय शरीर प्राप्त कर लिया है उस योगी को कोई भी रोग नहीं होता है। उसके पास शीघ्र बुढ़ापा नहीं आता है और उस योगी को मृत्यु भी शीघ्र प्राप्त नहीं होती है। यही योग की विशेषता है।’ इसे बहिरंग योग या हठयोग विद्या के चमत्कार कहे तो अत्युक्ति नहीं होगी। योग के इन्हीं महान् लाभों तथा गुणों के कारण ही आज ‘योग- चिकित्सा’ नामक एक नयी चिकित्सा पद्धति भी विकसित हुई है।
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