Weight | 150 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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Divy Shabd Vigyan
Rs.250.00Rs.210.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रात: वन्दनीय श्री योगेश्वरानन्द परमहंस ने इस ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ को बड़ी बुद्धिमत्ता और सूक्ष्मदर्शिता से लोकोपकारार्थ लिख कर प्रदान किया है। इस ग्रन्थ में शब्द और मन्त्र द्वारा आत्मा परमात्मा के साक्षात्कार के अनेक साधन साधकों के लिए बताये गए हैं।
इस ग्रन्थ में 108 प्रकार के दिव्य शब्दों और मन्त्रों द्वारा पदार्थों में आत्मा, परमात्मा, कार्य कारणात्मक प्रकृति के साक्षात्कार का वर्णन है। प्रकृति की परिणत होती हुई प्रत्येक अवस्था में ब्रह्म का व्याप्य – व्यापक भाव सम्बन्ध दिखाकर इसको प्रत्यक्ष करने की बातें बतायी गयी हैं ।
जिस प्रकार ‘प्राण-विज्ञान’ और ‘दिव्य ज्योति विज्ञान’ में प्राण और ज्योतियों द्वारा पदार्थों में आत्मा और परमात्मा के साक्षात्कार के साधन बताये गये हैं, इसी प्रकार इस ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ ग्रन्थ में आत्मा, परमात्मा और प्रकृति के साक्षात्कार के बहुत से साधन लिखे गये हैं। पाठकवृन्द बहुत शीघ्र इस विज्ञान को समझने में समर्थ होंगे।
इस ग्रन्थ को पूज्यपाद श्री योगेश्वरानन्द परमहंस जी ने योग निकेतन पहलगाम (काश्मीर) में 3 मास के योग साधना शिविर के अवसर पर लिखा है। यह आश्रम बहुत एकान्त शान्त स्थान है। आस-पास में चीड़, कैपल, देवदार के वृक्ष और बड़े-बड़े विशाल पर्वत हैं जो प्रायः हिमाच्छादित और हरे भरे बने रहते हैं। थोड़ी दूर पर नीचे लिदर नाम की नदी बह रही है। इसका जल पत्थरों से टकराकर कल-कल शब्द करते हुए चलता है। इसकी ध्वनि में बाहर के अन्य शब्द सुनायी नहीं देते। ध्यानाभ्यास के लिए बहुत पवित्र स्थान है। श्री योगश्वरानन्द परमहंस ने ‘निर्गुण ब्रह्म’, ‘प्राण विज्ञान’ और ‘दिव्य ज्योति विज्ञान’ ग्रन्थ’ यहां ही लिखे थे और अब ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ ग्रन्थ भी यहां ही लिखा गया है।
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Brahm Vigyan
Rs.500.00Rs.450.00Sold By : The Rishi Mission Trustपरब्रह्म परमेश्वर की अपार कृपा में ब्रह्मनिष्ठ योगिप्रवर ब्रह्मणि १०८ स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज रचित योगविषयक ग्रन्थमाला के तीसरे पुष्प “ब्रह्म-विज्ञान” को जनता की सेवा में प्रस्तुत करते हुए, हमें हर्ष होता है। इस ग्रन्थ-माला की पहली दो पुस्तकों में अष्टांग योग के आठों अंगों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। यह “ब्रह्म-विज्ञान” पुस्तक उच्च कोटि के साधकों के लिए श्री स्वामी जी महाराज की अपार देन है । इस ग्रन्थ में सृष्टि की उत्पत्ति, प्रकृति और उसके कार्यों एवं ब्रह्म के साक्षात्कार जैसे सूक्ष्मतम विषयों की व्याख्या है। श्री स्वामी जी महाराज ने अपने पिछले ६० वर्षों की तपस्या में किये गये अनुभवों के आधार पर इस पुस्तक की है । की रचना
हिन्दी साहित्य में यह अद्भुत, अमूल्य, अपूर्व और महान् ग्रन्थ है। भारत क प्राचीन ऋषियों ने ब्रह्म-विज्ञान अथवा ब्रह्म विद्या के सम्बन्ध में ग्रन्थों का एलोक या सूत्र रूप में निर्माण किया था। कई सहस्र वर्षों से इस विद्या का लोप होता जा रहा था, परन्तु इस लुप्तप्राय विद्या को श्री पूज्य स्वामी जी ने अपने अनुभवों के आधार पर पुनर्जीवित किया है और सर्वसाधारण जनता के लिए हिन्दी भाषा में यह ग्रन्थ रचकर मानव जाति के ऊपर महान् उपकार किया है। हमें पूर्ण आशा है कि इस विज्ञान के युग में श्री स्वामी जी महाराज की इस रचना से शान्ति और आनन्द की धारा का शाश्वत् प्रवाह अनन्त काल तक बहता रहेगा ।
इस ग्रन्थ से पूर्ण लाभ उठाने के लिए साधक “बहिरङ्ग-योग” और “आत्म-विज्ञान” में वर्णित साधनों का विधिपूर्वक अनुसरण कर |
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