Brahm Vigyan
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परब्रह्म परमेश्वर की अपार कृपा में ब्रह्मनिष्ठ योगिप्रवर ब्रह्मणि १०८ स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज रचित योगविषयक ग्रन्थमाला के तीसरे पुष्प “ब्रह्म-विज्ञान” को जनता की सेवा में प्रस्तुत करते हुए, हमें हर्ष होता है। इस ग्रन्थ-माला की पहली दो पुस्तकों में अष्टांग योग के आठों अंगों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। यह “ब्रह्म-विज्ञान” पुस्तक उच्च कोटि के साधकों के लिए श्री स्वामी जी महाराज की अपार देन है । इस ग्रन्थ में सृष्टि की उत्पत्ति, प्रकृति और उसके कार्यों एवं ब्रह्म के साक्षात्कार जैसे सूक्ष्मतम विषयों की व्याख्या है। श्री स्वामी जी महाराज ने अपने पिछले ६० वर्षों की तपस्या में किये गये अनुभवों के आधार पर इस पुस्तक की है । की रचना
हिन्दी साहित्य में यह अद्भुत, अमूल्य, अपूर्व और महान् ग्रन्थ है। भारत क प्राचीन ऋषियों ने ब्रह्म-विज्ञान अथवा ब्रह्म विद्या के सम्बन्ध में ग्रन्थों का एलोक या सूत्र रूप में निर्माण किया था। कई सहस्र वर्षों से इस विद्या का लोप होता जा रहा था, परन्तु इस लुप्तप्राय विद्या को श्री पूज्य स्वामी जी ने अपने अनुभवों के आधार पर पुनर्जीवित किया है और सर्वसाधारण जनता के लिए हिन्दी भाषा में यह ग्रन्थ रचकर मानव जाति के ऊपर महान् उपकार किया है। हमें पूर्ण आशा है कि इस विज्ञान के युग में श्री स्वामी जी महाराज की इस रचना से शान्ति और आनन्द की धारा का शाश्वत् प्रवाह अनन्त काल तक बहता रहेगा ।
इस ग्रन्थ से पूर्ण लाभ उठाने के लिए साधक “बहिरङ्ग-योग” और “आत्म-विज्ञान” में वर्णित साधनों का विधिपूर्वक अनुसरण कर |
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