Dayanand Darshan (Sachitra) दयानन्द दर्शन (सचित्र)
Rs.450.00
उदयपुर स्थित नव लखा महल वह पावन व ऐतिहासिक स्थल है जहाँ महर्षि दयानन्द सरस्वती ने साढ़े छः मास निवास कर प्रियवर अशोक आर्य (सुपुत्र आचार्य प्रेमभिक्षु जी मथुरा) के अनथक परिश्रम के फलस्वरूप पूरी हुई है। ईश्वर वैदिक सद्धर्म के प्रति उनकी निष्ठा बनाऐ रखने में सहायक हो ।
सत्यार्थ प्रकाश जैसे मानवोपकारक ग्रन्थ का प्रणयन सम्पूर्ण किया एवं अपनी उत्तराधिकारिणी सभा-श्रीमती परोपकारिणी सभा की स्थापना कर मेवाड़ नरेश को इसका प्रथम सभापति नियुक्त किया। इस स्थल का आर्यों के साथ जो भावनात्मक संबंध है उसे महसूस करते हुए, ६ वर्ष पूर्व इस निश्चय के साथ कि इस महत्वपूर्ण स्थल को राज्य सरकार से प्राप्त कर, महर्षि स्मृति के एक अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित किया जावे ताकि यहाँ से “सत्यारी सन्देश” का दिग्दगन्त में प्रचार प्रसार हो सके. आर्य प्रतिनिधि सभा, राजस्थान के सहयोग से मैंने प्रयास प्रारम्भ किये। ईश कृपा से सफलता मिली। १९९२ में इसका अधिग्रहण कर आगे की व्यवस्थाओं के लिए “श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास” की स्थापना कर मुझे इसका आजीवन अध्यक्ष बना, उपरलिखित संकल्प की पूर्ति का दायित्व मुझे सौंपा गया। भवन जीर्ण-शीर्ण हालत में था। प्रथम तो इसे सुरक्षित करना था फिर इसका सुन्दरतम व नियोजित तरीके से विकास करना था। समस्याऐं बहुत थ पर मैंने इसे अपना जीवन संकल्प बना लिया। अतः जो कुछ भी मुझसे बन पड़ा मैं कर रहा हूँ। मुझे प्रसन्नता है कि इस कार्य में आर्य जगत् की समस्त विभूतियों तथा आर्यजनों का सहयोग व आशीर्वाद मुझे मिल रहा है। यह पवित्र स्थल आकर्षक व प्रेरक स्मारक के रूप में विकसित हो, यहाँ पर्याप्त आवासीय सुविधा हो, प्रतिदिन प्रातः सायं यज्ञ, वेद पारायण यज्ञ, सत्यार्थ प्रकाश कथा, भव्य यज्ञशाला में हो, प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन हो, वेद प्रचार वाहन द्वारा वेदपचार व आर्ष साहित्य का प्रचार हो, यहाँ प्रतिदिन आने वाले देशी-विदेशी नर-नारियों को प्रेरणा मिल सके इस हेतु भवन की दीवारों पर सत्यार्थ-संदेश अंकित हो आदि उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जो भी योजनाएँ हाथ में ली गई वह पूर्णता की ओर अग्रसर हैं। सत्यार्थ प्रकाश स्तम्भ की प्रस्तावित योजना हेतु प्रयास जारी हैं। महर्षि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अधिकाधिक लोग परिचित हो प्रेरणा प्राप्त कर सकें, इस निमित्त यहाँ एक सुन्दर चित्रदीर्घा का निर्माण किया गया है जिसमें महर्षिवर की जीवन घटनाओं पर आधारित प्रख्यात चित्रकारों द्वारा निर्मित सुन्दर चित्रों को उनके विवरण सहित प्रदर्शित किया गया है। दो वर्षों में बनकर तैयार होने वाली इस चित्रदीर्घा का प्रत्येक चित्र सुन्दर व मनोहारी होने के साथ साथ उसकी ऐतिहासिकता यथाशक्य सुनिश्चित हो, इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखा गया है। महर्षि की सचित्र जीवन गाथा के रूप में यह अधिकाधिक ऋषि भक्तों के हाथों में पहुँच सके, इसे ” दयानन्द दर्शन” के रूप में अत्यन्त सुन्दर स्वरूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया ताकि यह आर्यजनों व आर्य संस्थाओं के पुस्तकालय की शोभा बन सके। यह सारी परियोजना, ऋषि मिशन के प्रति समर्पित,
विवरण के संकलन में महर्षि जीवन चरित्र के लेखक प्रातः स्मरणीय पं. लेखराम जी, स्वामी सत्यानन्द जी, स्वामी जगदीश्वरानंद जी व आर्य जगत् के प्रख्यात् विद्वान् डॉ. भवानीलाल जी भारतीय के ग्रन्थों से प्रचुर मात्रा में सहयोग मिला है। आंग्लभाषा में इसके लेखन का श्रेय प्रो. विजय बिहारी लाल माथुर, जयपुर को जाता है। उदयपुर के प्रख्यात चित्रकार सर्वश्री सुदर्शन सोनी, रामकृष्ण शर्मा व दुष्यन्त कुमार ने पूरी निष्ठा व परिश्रम से चित्रांकन किया है। इन सभी महानुभावों के साथ चित्रदीर्घा हेतु दान देने वाले सभी दानदाताओं के प्रति आभार प्रकाशित करता हूँ।
हमारा प्रयास कैसा बन पड़ा इसका निर्णय तो सुधी पाठक ही कर सकेंगे। महर्षि देव दयानन्द के पावन व्यक्तित्व व कृतित्व से अधिकाधिक नर-नारी परिचित हो प्रेरणा प्राप्त कर सकें- इसी भावना के साथ,
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उदयपुर स्थित नव लखा महल वह पावन व ऐतिहासिक स्थल है जहाँ महर्षि दयानन्द सरस्वती ने साढ़े छः मास निवास कर प्रियवर अशोक आर्य (सुपुत्र आचार्य प्रेमभिक्षु जी मथुरा) के अनथक परिश्रम के फलस्वरूप पूरी हुई है। ईश्वर वैदिक सद्धर्म के प्रति उनकी निष्ठा बनाऐ रखने में सहायक हो ।
सत्यार्थ प्रकाश जैसे मानवोपकारक ग्रन्थ का प्रणयन सम्पूर्ण किया एवं अपनी उत्तराधिकारिणी सभा-श्रीमती परोपकारिणी सभा की स्थापना कर मेवाड़ नरेश को इसका प्रथम सभापति नियुक्त किया। इस स्थल का आर्यों के साथ जो भावनात्मक संबंध है उसे महसूस करते हुए, ६ वर्ष पूर्व इस निश्चय के साथ कि इस महत्वपूर्ण स्थल को राज्य सरकार से प्राप्त कर, महर्षि स्मृति के एक अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित किया जावे ताकि यहाँ से “सत्यारी सन्देश” का दिग्दगन्त में प्रचार प्रसार हो सके. आर्य प्रतिनिधि सभा, राजस्थान के सहयोग से मैंने प्रयास प्रारम्भ किये। ईश कृपा से सफलता मिली। १९९२ में इसका अधिग्रहण कर आगे की व्यवस्थाओं के लिए “श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास” की स्थापना कर मुझे इसका आजीवन अध्यक्ष बना, उपरलिखित संकल्प की पूर्ति का दायित्व मुझे सौंपा गया। भवन जीर्ण-शीर्ण हालत में था। प्रथम तो इसे सुरक्षित करना था फिर इसका सुन्दरतम व नियोजित तरीके से विकास करना था। समस्याऐं बहुत थ पर मैंने इसे अपना जीवन संकल्प बना लिया। अतः जो कुछ भी मुझसे बन पड़ा मैं कर रहा हूँ। मुझे प्रसन्नता है कि इस कार्य में आर्य जगत् की समस्त विभूतियों तथा आर्यजनों का सहयोग व आशीर्वाद मुझे मिल रहा है। यह पवित्र स्थल आकर्षक व प्रेरक स्मारक के रूप में विकसित हो, यहाँ पर्याप्त आवासीय सुविधा हो, प्रतिदिन प्रातः सायं यज्ञ, वेद पारायण यज्ञ, सत्यार्थ प्रकाश कथा, भव्य यज्ञशाला में हो, प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन हो, वेद प्रचार वाहन द्वारा वेदपचार व आर्ष साहित्य का प्रचार हो, यहाँ प्रतिदिन आने वाले देशी-विदेशी नर-नारियों को प्रेरणा मिल सके इस हेतु भवन की दीवारों पर सत्यार्थ-संदेश अंकित हो आदि उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जो भी योजनाएँ हाथ में ली गई वह पूर्णता की ओर अग्रसर हैं। सत्यार्थ प्रकाश स्तम्भ की प्रस्तावित योजना हेतु प्रयास जारी हैं। महर्षि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अधिकाधिक लोग परिचित हो प्रेरणा प्राप्त कर सकें, इस निमित्त यहाँ एक सुन्दर चित्रदीर्घा का निर्माण किया गया है जिसमें महर्षिवर की जीवन घटनाओं पर आधारित प्रख्यात चित्रकारों द्वारा निर्मित सुन्दर चित्रों को उनके विवरण सहित प्रदर्शित किया गया है। दो वर्षों में बनकर तैयार होने वाली इस चित्रदीर्घा का प्रत्येक चित्र सुन्दर व मनोहारी होने के साथ साथ उसकी ऐतिहासिकता यथाशक्य सुनिश्चित हो, इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखा गया है। महर्षि की सचित्र जीवन गाथा के रूप में यह अधिकाधिक ऋषि भक्तों के हाथों में पहुँच सके, इसे ” दयानन्द दर्शन” के रूप में अत्यन्त सुन्दर स्वरूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया ताकि यह आर्यजनों व आर्य संस्थाओं के पुस्तकालय की शोभा बन सके। यह सारी परियोजना, ऋषि मिशन के प्रति समर्पित,
विवरण के संकलन में महर्षि जीवन चरित्र के लेखक प्रातः स्मरणीय पं. लेखराम जी, स्वामी सत्यानन्द जी, स्वामी जगदीश्वरानंद जी व आर्य जगत् के प्रख्यात् विद्वान् डॉ. भवानीलाल जी भारतीय के ग्रन्थों से प्रचुर मात्रा में सहयोग मिला है। आंग्लभाषा में इसके लेखन का श्रेय प्रो. विजय बिहारी लाल माथुर, जयपुर को जाता है। उदयपुर के प्रख्यात चित्रकार सर्वश्री सुदर्शन सोनी, रामकृष्ण शर्मा व दुष्यन्त कुमार ने पूरी निष्ठा व परिश्रम से चित्रांकन किया है। इन सभी महानुभावों के साथ चित्रदीर्घा हेतु दान देने वाले सभी दानदाताओं के प्रति आभार प्रकाशित करता हूँ।
हमारा प्रयास कैसा बन पड़ा इसका निर्णय तो सुधी पाठक ही कर सकेंगे। महर्षि देव दयानन्द के पावन व्यक्तित्व व कृतित्व से अधिकाधिक नर-नारी परिचित हो प्रेरणा प्राप्त कर सकें- इसी भावना के साथ,
Weight | 2000 g |
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Dimensions | 23 × 29 × 3 cm |
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