Weight | 500 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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Brahm Vigyan
Rs.500.00Rs.450.00Sold By : The Rishi Mission Trustपरब्रह्म परमेश्वर की अपार कृपा में ब्रह्मनिष्ठ योगिप्रवर ब्रह्मणि १०८ स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज रचित योगविषयक ग्रन्थमाला के तीसरे पुष्प “ब्रह्म-विज्ञान” को जनता की सेवा में प्रस्तुत करते हुए, हमें हर्ष होता है। इस ग्रन्थ-माला की पहली दो पुस्तकों में अष्टांग योग के आठों अंगों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। यह “ब्रह्म-विज्ञान” पुस्तक उच्च कोटि के साधकों के लिए श्री स्वामी जी महाराज की अपार देन है । इस ग्रन्थ में सृष्टि की उत्पत्ति, प्रकृति और उसके कार्यों एवं ब्रह्म के साक्षात्कार जैसे सूक्ष्मतम विषयों की व्याख्या है। श्री स्वामी जी महाराज ने अपने पिछले ६० वर्षों की तपस्या में किये गये अनुभवों के आधार पर इस पुस्तक की है । की रचना
हिन्दी साहित्य में यह अद्भुत, अमूल्य, अपूर्व और महान् ग्रन्थ है। भारत क प्राचीन ऋषियों ने ब्रह्म-विज्ञान अथवा ब्रह्म विद्या के सम्बन्ध में ग्रन्थों का एलोक या सूत्र रूप में निर्माण किया था। कई सहस्र वर्षों से इस विद्या का लोप होता जा रहा था, परन्तु इस लुप्तप्राय विद्या को श्री पूज्य स्वामी जी ने अपने अनुभवों के आधार पर पुनर्जीवित किया है और सर्वसाधारण जनता के लिए हिन्दी भाषा में यह ग्रन्थ रचकर मानव जाति के ऊपर महान् उपकार किया है। हमें पूर्ण आशा है कि इस विज्ञान के युग में श्री स्वामी जी महाराज की इस रचना से शान्ति और आनन्द की धारा का शाश्वत् प्रवाह अनन्त काल तक बहता रहेगा ।
इस ग्रन्थ से पूर्ण लाभ उठाने के लिए साधक “बहिरङ्ग-योग” और “आत्म-विज्ञान” में वर्णित साधनों का विधिपूर्वक अनुसरण कर |
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Divy Shabd Vigyan
Rs.250.00Rs.210.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रात: वन्दनीय श्री योगेश्वरानन्द परमहंस ने इस ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ को बड़ी बुद्धिमत्ता और सूक्ष्मदर्शिता से लोकोपकारार्थ लिख कर प्रदान किया है। इस ग्रन्थ में शब्द और मन्त्र द्वारा आत्मा परमात्मा के साक्षात्कार के अनेक साधन साधकों के लिए बताये गए हैं।
इस ग्रन्थ में 108 प्रकार के दिव्य शब्दों और मन्त्रों द्वारा पदार्थों में आत्मा, परमात्मा, कार्य कारणात्मक प्रकृति के साक्षात्कार का वर्णन है। प्रकृति की परिणत होती हुई प्रत्येक अवस्था में ब्रह्म का व्याप्य – व्यापक भाव सम्बन्ध दिखाकर इसको प्रत्यक्ष करने की बातें बतायी गयी हैं ।
जिस प्रकार ‘प्राण-विज्ञान’ और ‘दिव्य ज्योति विज्ञान’ में प्राण और ज्योतियों द्वारा पदार्थों में आत्मा और परमात्मा के साक्षात्कार के साधन बताये गये हैं, इसी प्रकार इस ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ ग्रन्थ में आत्मा, परमात्मा और प्रकृति के साक्षात्कार के बहुत से साधन लिखे गये हैं। पाठकवृन्द बहुत शीघ्र इस विज्ञान को समझने में समर्थ होंगे।
इस ग्रन्थ को पूज्यपाद श्री योगेश्वरानन्द परमहंस जी ने योग निकेतन पहलगाम (काश्मीर) में 3 मास के योग साधना शिविर के अवसर पर लिखा है। यह आश्रम बहुत एकान्त शान्त स्थान है। आस-पास में चीड़, कैपल, देवदार के वृक्ष और बड़े-बड़े विशाल पर्वत हैं जो प्रायः हिमाच्छादित और हरे भरे बने रहते हैं। थोड़ी दूर पर नीचे लिदर नाम की नदी बह रही है। इसका जल पत्थरों से टकराकर कल-कल शब्द करते हुए चलता है। इसकी ध्वनि में बाहर के अन्य शब्द सुनायी नहीं देते। ध्यानाभ्यास के लिए बहुत पवित्र स्थान है। श्री योगश्वरानन्द परमहंस ने ‘निर्गुण ब्रह्म’, ‘प्राण विज्ञान’ और ‘दिव्य ज्योति विज्ञान’ ग्रन्थ’ यहां ही लिखे थे और अब ‘दिव्य शब्द विज्ञान’ ग्रन्थ भी यहां ही लिखा गया है।
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Dhyan yog Sadhana
Rs.125.00Rs.100.00Sold By : The Rishi Mission Trustइस विश्व ब्रह्माण्ड में समस्त शक्तियों का भण्डार समस्त विश्व का संचालक तथा समस्त चेतनाओं का मूलभूत तत्त्व एकमात्र परब्रह्म परमात्मा ही है अन्य कोई नहीं। इस सत्य को मान लेने पर और उसका ध्यान करने से आपके और उसके बीच में जितने भी पर्दे हैं वे सबके सब एक-एक करके उठ जायेंगे, हट जायेंगे। तब एकदिन आप पायेंगे कि आप और वह एक हो गये हैं आप और उसमें कोई भेद नहीं रह गया है। तब आपके लिये मुक्ति मोक्ष का द्वार खुला हुआ ही समझो। परन्तु यह कार्य ध्यान साधना के बिना नहीं हो सकता है, यह भी सत्य है। ऐसी स्थिति में ध्यान का महत्व और भी बढ़ जाता है ।
एक प्रारम्भिक साधक के समक्ष कितनी समस्याएँ आकर उपस्थित होती है, साधक ही इस बात को जानते हैं । अर्थात् ध्यान कैसे करना चाहिये? किसका ध्यान करना चाहिये? शरीर के भीतर कहाँ ध्यान करना चाहिये ? ध्यान काल में क्या-क्या होता है? ध्यान में मन क्यों नहीं लगता है ? मन को एकाग्र समाहित करने के लिये क्या उपाय करना चाहिये? आत्मदर्शन कब और कैसे होता है ? इस प्रकार की तमाम समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं ।
हुए हर्ष की बात है कि हमारे स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ इन सारी समस्याओं का समाधान करते अनेक प्रकार की उच्चतम ध्यान-साधनाओं का विस्तृत वर्णन किया प्रस्तुत है। सगुण निर्गुण आदि ध्यान विधि से लेकर सम्प्रज्ञात असम्प्रज्ञात समाधि तक सविस्तृत वर्णन किया है ।
यद्यपि ब्रह्मलीन पूज्यपाद स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा रचित आत्मविज्ञान, ब्रह्म विज्ञान, दिव्यज्योति विज्ञान, दिव्य शब्द विज्ञान तथा व्याख्यान माला आदि ग्रन्थों में ध्यान तथा समाधि आदि के विषय में पर्याप्त रूप में लिखे गये हैं
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Nirgun Brahm
Rs.200.00Rs.175.00Sold By : The Rishi Mission Trustप्रस्तुत ग्रन्थ “निर्गुण ब्रहा” परमपूज्य ब्रहापि श्री स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज की ब्रह्मपरक अनुसन्धानात्मक विचार शैली का पूर्णरूपेण परिचायक है। उन्हीं के द्वारा पूर्व रचित ग्रन्थ “ब्रहाविज्ञान” में ब्रहा साक्षात्कार के साधनों का सविस्तार प्रतिपादन किया गया था। इस स्वनामसिद्ध रचना में ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप का युक्ति संगत एवं निर्णयात्मक निदर्शन कराया गया है और ब्रह्म के सम्बन्ध में प्रचलित अनेक सिद्धान्तों के यथोचित परीक्षण के पश्चात् प्रमाण सिद्ध मन्तव्यों तथा निष्कर्षों की उपस्थित किया गया है। ग्रन्थ के अनुपम महत्त्व का निर्णय तो विचारशील जिज्ञासु पाठक स्वयं कर सकेंगे। इसमें सन्देह नहीं कि ब्रह्म जैसे गम्भीर जटिल एवं गहनतम विषय पर गुरुदेव की यह अनूठी देन एक बड़े अभाव की पूर्ति करती है।
आशा है कि यह विचित्र दार्शनिक उपहार अपनी गम्भीरता द्वारा ब्रहा विषयक चिन्तन एवं ज्ञान की ओर प्रेरित करते हुए जिज्ञासु साधकों को ज्ञानशील बनाने में सफल होगा।
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