Dhyan yog Sadhana
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इस विश्व ब्रह्माण्ड में समस्त शक्तियों का भण्डार समस्त विश्व का संचालक तथा समस्त चेतनाओं का मूलभूत तत्त्व एकमात्र परब्रह्म परमात्मा ही है अन्य कोई नहीं। इस सत्य को मान लेने पर और उसका ध्यान करने से आपके और उसके बीच में जितने भी पर्दे हैं वे सबके सब एक-एक करके उठ जायेंगे, हट जायेंगे। तब एकदिन आप पायेंगे कि आप और वह एक हो गये हैं आप और उसमें कोई भेद नहीं रह गया है। तब आपके लिये मुक्ति मोक्ष का द्वार खुला हुआ ही समझो। परन्तु यह कार्य ध्यान साधना के बिना नहीं हो सकता है, यह भी सत्य है। ऐसी स्थिति में ध्यान का महत्व और भी बढ़ जाता है ।
एक प्रारम्भिक साधक के समक्ष कितनी समस्याएँ आकर उपस्थित होती है, साधक ही इस बात को जानते हैं । अर्थात् ध्यान कैसे करना चाहिये? किसका ध्यान करना चाहिये? शरीर के भीतर कहाँ ध्यान करना चाहिये ? ध्यान काल में क्या-क्या होता है? ध्यान में मन क्यों नहीं लगता है ? मन को एकाग्र समाहित करने के लिये क्या उपाय करना चाहिये? आत्मदर्शन कब और कैसे होता है ? इस प्रकार की तमाम समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं ।
हुए हर्ष की बात है कि हमारे स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ इन सारी समस्याओं का समाधान करते अनेक प्रकार की उच्चतम ध्यान-साधनाओं का विस्तृत वर्णन किया प्रस्तुत है। सगुण निर्गुण आदि ध्यान विधि से लेकर सम्प्रज्ञात असम्प्रज्ञात समाधि तक सविस्तृत वर्णन किया है ।
यद्यपि ब्रह्मलीन पूज्यपाद स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा रचित आत्मविज्ञान, ब्रह्म विज्ञान, दिव्यज्योति विज्ञान, दिव्य शब्द विज्ञान तथा व्याख्यान माला आदि ग्रन्थों में ध्यान तथा समाधि आदि के विषय में पर्याप्त रूप में लिखे गये हैं
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