Hindustani Jadi butiyan हिंदुस्तानी जडी बुटीयाँ
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मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही रोगों की भी उत्पत्ति होती है और तब से ही मनुष्य इन रोगों को दूर करने के उपायों की खोज में लगा हुआ है। इन खोजों को ही चिकित्सा शास्त्र कहा गया है। इसलिए कहा जा सकता है कि चिकित्सा शास्त्र का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना कि मनुष्य का इतिहास । प्राचीनकाल से ही मनुष्य अपने रोगों के निवारणार्थ जड़ी-बूटियों का प्रयोग करता आया है। जड़ी-बूटियों का इतिहास बहुत पुराना है, परन्तु जड़ी-बूटियों के इतिहास का एक पहलू ऐसा है, जिसका न तो किसी इतिहास में ही विवेचन है और न ही उसका कोई वैज्ञानिक आधार ही है, परन्तु इतना होने पर भी वह इतना महत्त्वपूर्ण है कि ऐसे समयों में, जबकि शास्त्रीय और वैज्ञानिक ओषधि विज्ञान मनुष्य के प्राण बचाने में असफल हो जाता है, उस समय यह अवैज्ञानिक विज्ञान अपना चमत्कार दिखाता है और मनुष्य के प्राणों की रक्षा करता है। अथर्ववेद, जिसकी रचना ऋग्वेद के बाद हुई है, उसमें जड़ी-बूटियों का बहुत अधिक विस्तृत वर्णन पाया जाता है, परन्तु उस समय की पद्धति के अनुसार उन वनस्पतियों का उल्लेख जादू-टोने के रूप में किया गया है। जैसे-जैसे ओषधि विज्ञान के ज्ञान का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे इस विषय की महत्ता अधिक-सेअधिक लोगों के ध्यान में आने लगी और इस प्रकार इस विज्ञान ने एक स्वतन्त्र शास्त्र का रूप धारण कर लिया, जिसे आयुर्वेद कहा गया । आयुर्वेद की जो शाखा यूनान गयी, वह ‘यूनानी चिकित्सा’ के नाम से विश्वप्रसिद्ध हो गयी ।
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