Weight | 500 g |
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Mahabharatam महाभारतम
Rs.1,200.00Sold By : The Rishi Mission Trustमहाभारत ज्ञान का सबसे बड़ा कोश है, महाभारत महर्षि व्यास द्वारा प्रज्वलित ज्ञान प्रदीप है, यह धर्म का विश्वकोष है इस ग्रंथ में जहां आत्मा की अमरता का संदेश गीता है वहां राजनीति के संबंध में कणिक नीति, नारद नीति और विदुर नीति जैसे दिव्य उपदेश है जिसमें राजनीति के साथ साथ आचार और लोक व्यवहार का भी सुंदर निरूपण है सांस्कृतिक ऐतिहासिक धार्मिक राजनीतिक आदि अनेक दृष्टियों से महाभारत एक गौरवमय ग्रंथ है, इन्हीं गुणों के कारण इसे पांचवा वेद भी कहा जाता है, महाभारत इतना बड़ा ग्रंथ है कि साधन पाठक के लिए उसका पढना कठिन ही है स्वामी जी ने अत्यंत परिश्रम से यह संक्षिप्त संकलन तैयार किया है इसमें अश्लील असंभव गप्पों , असत्य और अनैतिहासिक घटनाओं को छोड़ दिया है, महाभारत का सार सर्वस्व इसमें दे दिया है, लोगों में ऐसी धारणा प्रचलित है कि जिस घर में महाभारत का पाठ होता है वहां गृह कलह लड़ाई झगड़ा आरंभ हो जाता है अतः घर में महाभारत नहीं पड़नी चाहिए यह धारणा सर्वथा मिथ्या और भ्रांत है, हमारा विश्वास है कि जहां महाभारत का पाठ होगा वहां के निवासियों के चरित्रों का उत्थान और मानव जीवन का कल्याण होगा हिचकिये नहीं महाभारत का पाठ कीजिए और इस की शिक्षाओं को अपने जीवन में धारण कीजिये ,इस संस्करण में असंभव अश्लील और अश्लील कथाओं को निकाल दिया गया है लगभग 16000 श्लोकों में संपूर्ण महाभारत पूर्ण हुआ है श्लोकों का तारतम्य इस प्रकार मिलाया गया है कि कथा का संबंध निरंतर बना रहता है, यदि आप अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की, संस्कृति और सभ्यता की, ज्ञान विज्ञान की, आचार व्यवहार की झांकी देखना चाहते हैं, यदि योगीराज कृष्ण की नीतिमतता देखना चाहते हैं, यदि प्राचीन समय की राजव्यवस्था की झलक देखना चाहते हैं, यदि आप जानना चाहते हैं कि द्रोपती का चीर खींचा गया था, क्या एकलव्य का अंगूठा काटा गया था, क्या युध्द के समय अभिमन्यु की अवस्था 16 वर्ष की थी,क्या कर्ण सूत पुत्र था, क्या जयद्रथ को धोखे से मारा गया, क्या कोरवों की उत्पत्ति घड़ों से हुई थी? आदि
यदि आप भात्री प्रेम, नारी का आदर्श सदाचार, धर्म का स्वरूप, गृहस्थ का आदर्श, मोक्ष का स्वरूप, वर्ण और आश्रमों के धर्म, प्राचीन राज्य का स्वरूप आदि के संबंध में जानना चाहते तो एक बार इस ग्रंथ को अवश्य पढ़ें
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Sanskar Chandrika
Rs.350.00Sold By : The Rishi Mission Trustलेखक परिचय
डॉ. सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार का जन्म 5 मार्च 1898 व मृत्यु 13.09.1992 आप का जन्म लुधियाना के अंतर्गत सब्द्दी ग्राम में हुआ 1919 में गुरुकुल कांगड़ी के स्नातक होने के बाद कोल्हापुर, बेंगलुरु, मैसूर, मद्रास में 4 वर्ष तक समाज सेवा का कार्य करते रहे 1923 में आप “दयानंद सेवा सदन” के आजीवन सदस्य होकर गुरुकुल विद्यालय में प्रोफेसर हो गए 15 जून 1926को आपका विवाह श्रीमती चन्द्रावती लखनपाल एम.ए., बी.टी.से हुआ 30.11. 1930 को सत्याग्रह में गिरफ्तार हुए और 1931 को गांधी इरविन पैक्ट में छोड़ दिए गए आपकी पत्नी 20.06.1932 में यू.पी.एस.सी. की अध्यक्षा पद से आगरा में गिरफ्तार हुई उन्हें 1 साल की सजा हुई 1934में चन्द्रावती जी को “स्त्रियों की स्थिति“ग्रन्थ पर सेकसरिया तथा 20.04.1935 में उन्हें “शिक्षा मनोविज्ञान” ग्रन्थ पर महात्मा गांधी के सभापतित्व में मंगला प्रसाद पारितोषिक दिया गया अप्रेल 1952 में राज्यसभा की सदस्या चुनी गई और 10 साल तक इस पद पर रही , डॉ. सत्यव्रत जी अपनी सेवा के दौरान मई 1935 में गुरुकुल विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए 15 नवंबर 1941 को सेवा कालसमाप्त कर वे मुंबई में समाज सेवा कार्य में व्यस्त हो गए 2 जुलाई 1945 को आपकी पत्नी कन्या गुरुकुल देहरादून की आचार्या पद पर नियुक्त हुई डॉ. सत्यव्रत जी ने इस बीच “समाजशास्त्र” “मानव शास्त्र” “वैदिक संस्कृति” तथा “शिक्षा” आदि पर बीसीओ ग्रंथ लिखे जो विश्वविद्यालय में पढ़ाये जाने लगे आपके “एकादशोपनिषदभाष्य” की भूमिका राष्ट्रपति डॉ.राधाकृष्णनने तथा आपके गीता भाष्य की भूमिका प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने लिखी आपके होम्योपैथी के ग्रंथों को सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ घोषित कर उन पर 1000 का पारितोषिक दिया गया इन ग्रंथों का विमोचन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने किया 3 जनवरी 1960 को आपको “समाजशास्त्र” के मूल तत्व पर मंगला प्रसाद पारितोषिक देकर सम्मानित किया गया 4 जून 1960 को आप दोबारा 6 वर्ष के लिए गुरुकुल विश्वविद्यालय के उप कुलपति नियुक्त हुए 3 मार्च 1962 को पंजाब सरकार ने आप के साहितिक कार्य के सम्मान में चंडीगढ़ में एक दरबार आयोजित करके 1200रु.की थैली तथा एक दोशाला भेंट किया 1964में राष्ट्रपति डॉ.राधाकृष्णन ने आपको राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया 1977 में आपके ग्रंथ “वैदिक विचारधारा का वैज्ञानिक आधार” पर गंगा प्रसाद ट्रस्ट द्वारा 1200 रु.और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ₹2500रु. और रामकृष्ण डालमिया पुरस्कार द्वारा 11पुरस्कार द्वारा 1100₹ का पुरस्कार दिया गया 1978 में आप नैरोबी के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के अध्यक्ष हुए 1978में दिल्ली प्रशासन ने वेदों के मूर्धन्य विद्वान होंने के नाते सम्मान अर्पण समारोह करके आपको 2001रु. तथा सरस्वती की मूर्ति देकर सम्मानित किया आपने होम्योपैथी पर अनेक ग्रंथ लिखे हैं जिसमें “होम्योपैथिक औषधियों का सजीव चित्रण” “रोग तथा उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा” “बुढ़ापे के जवानी की ओर” तथा “होम्योपैथी के मूल सिद्धांत” प्रसिद्ध आपके अंग्रेजी में लिखे ग्रन्थ “Heritage of vediv culture”, “Exposition of vedic thought”, तथा Glimpses of the vedic” Confidential talks to youngmen” का विदेशों में बहुत मान हुआ है आपके नवीनतम ग्रंथ “ब्रह्मचर्य संदेश” वैदिक संस्कृति का सन्देश” तथा “उपनिषद प्रकाश” आदि अनेक वैदिक साहित्य के आप लेखक है
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