ऋषि मिशन के पंजीकृत सदस्यों व सभी साहित्य प्रेमियों को वैदिक साहित्य की खरीद करने पर अब 10 से 40% की छूट उपलब्ध है, फ्री शिपिंग 2000/- की खरीद पर केवल पंजीकृत सदस्यों के लिए उपलब्ध रहेगी जिसे वह अपना कूपन कोड डालकर इसका लाभ उठा पाएंगे..... ऋषि दयानंद सरस्वती कृत 11 पुस्तकें निशुल्क प्राप्त करने के लिए 9314394421 पर सम्पर्क करें धन्यवाद
 

Rishi Mission is a Non Profitable Organization In India

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop

Rishi Mission is a Non Profitable Organization In India

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop
Sale

इतिहास प्रदूषण Itihas Pradushan

Rs.90.00

इतिहास-प्रदूषण

इतिहास शास्त्र मानव-समाज के लिए प्रेरणा तथा ऊर्जा प्राप्ति का बहुत बड़ा स्रोत है । आबाल, वृद्ध, शिक्षित, अशिक्षित, सब प्रकार के मनुष्यों को जीवन निर्माण तथा सुधार के लिए इतिहास के प्रेरक प्रसंगों से उत्साह तथा स्फूर्ति प्राप्त होती है। जीवन दर्शन के गूढ़ व शुष्क विषय भी इतिहास के दृष्टान्त देकर रोचक व सरल बनकर सबकी समझ में आ जाते हैं, परन्तु इतिहास प्रदूषण तथा इतिहास में प्रक्षेप करके किसी भी जाति, संगठन व वर्ग को पतनोन्मुख किया जा सकता है। विदेशी आक्रान्ताओं ने भारत में यही कुछ तो किया । तुर्की, पठानों, मुगलों ने तो भारत की ज्ञान-राशि को नष्ट किया ही, गोरी, ईसाई जातियों ने तो बहुत चतुराई से योजनाबद्ध ढंग से हमारे धर्म, दर्शन, साहित्यिक ग्रन्थों तथा इतिहास की सामग्री को अनूदित, सम्पादित करके प्रदूषित करने का विनाशकारी अभियान चलाकर हमारे आत्मगौरव व स्वाभिमान पर करारा वार किया। यह एक व्यापक विषय है । यह एक लम्बी व दुखद कहानी है ।

महर्षि दयानन्द सरस्वती पहले भारतीय विचारक, सुधारक, विद्वान् व देशभक्त थे जिन्होंने इस प्रदूषण के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ा और देशवासियों को जागरूक किया। उनकी शिष्य परम्परा के अनेक विद्वानों यथा पं० गुरुदत्त, पं० लेखराम, स्वामी दर्शनानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, स्वामी वेदानन्द, पं० धर्मदेव (स्वामी धर्मानन्द), पं० गंगाप्रसाद द्वय, पं भगवद्दत्त, पं० चमूपति, आचार्य उदयवीर ने इस दिशा में जो कार्य किया है उसका कोई मूल्यांकन तो करे । ‘स्वामी वेदानन्द जी कहा कहते थे कि हमारे साहित्य में मिलावट ( प्रक्षेप) तो हुई ही, हटावट भी होती रही ।

लोकमान्य तिलक के गुरु पोंगापन्थी विष्णु शास्त्री चिपलूणकर महोदय ने अपने प्रसिद्ध मराठी ग्रन्थ निबन्धमाला में ऋषि पर व्यंग्य कसते हुए लिखा है कि यह व्यक्ति अपने व्याख्यानों में बात-बात पर अपने विरोधियों को जुक्ति (युक्ति) व प्रमाण से बात करने के लिए कहता है। उसका यह कथन ठीक है। महर्षि ने युक्ति व प्रमाण से बात करने की आर्यसमाज में परम्परा चलाई। हम बाल्यकाल से आर्य विद्वानों के मुख्य से ‘युक्ति व प्रमाण’ से बात करने की सीख सुनते आ रहे हैं। आर्यसमाजी विद्वानों की पहचान युक्ति व प्रमाण देने व मांगने से होती रही है।

अब गत कई वर्षों से आर्यसमाज में घुसपैठ करके कुछ लेखकों ने आर्यसमाज के इतिहास में बड़ी चतुराई से यूरोपियन ईसाई लेखकों की शैली से इतिहास प्रदूषण का अभियान छेड़ कर आर्यसमाज की यह पहचान समाप्त सी कर दी है। मीठा विष इस ढंग से, इस मात्रा में आर्यों को पिलाया गया कि आर्यसमाज को इतिहास-प्रदूषण, प्रक्षेप व हटावट का पता ही नहीं चलता।

(In Stock)

Compare
Sold By : The Rishi Mission Trust Categories: , ,
Weight 250 g

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “इतिहास प्रदूषण Itihas Pradushan”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

X

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop