Jadi butiyon ki kheti जड़ी बुटियों की खेती
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भारतवर्ष में औषधीय पौधों के प्रयोग व औषधीय पौधों की खेती का इतिहास काफी पुराना है। जन सामान्य के रोगों का उपचार जड़ी-बूटियों से तैयार औषधियों से ही होता था। क्योंकि प्राचीन काल में ऐलोपैथिक दवाइयों का प्रचलन नहीं था ।
आयुर्वेद, यूनानी, तिब्बी, होम्योपैथी व एैलोपैथिक चिकित्सा में जड़ीबूटियों तथा औषधीय पौधों का उपयोग होता है, हमारे प्राचीन ग्रन्थोंरामायण, महाभारत, वेद, पुराणों व उपनिषदों में भी औषधीय पौधों का वर्णन है। राजा-महाराजों के शासनकाल में राजवैद्य राजशी चिकित्सा हेतु राजवाटिका में कुछ विशेष औषधीय पौधों की खेती करवाते थे, ताकि उचित समय पर राज परिवार की चिकित्सा करते समय जड़ी-बूटियाँ ढूढनी न पड़े।
अभी तक अस्सी से नब्बे प्रतिशत जड़ी-बूटियाँ वनों से ही निकाली जाती रही हैं, जिनमें कई जड़ी-बूटियाँ नष्ट हो जाती हैं, इसलिये जन सामान्य को वनोषधिं विज्ञान की उपयोगिता व औषधीय पौधों की खेती के महत्त्व को समझाया जाना चाहिए । जड़ी-बूटियों के कृषिकरण को बढ़ावा देने हेतु शासकीय तथा देशव्यापी स्तर पर अभूतपूर्व प्रयास, औषधीय पौधशालायें लगाकर आरोपण, विकास, व्यापार व प्रबन्धन का कार्यक्रम तैयार करना आवश्यक है। यह प्रक्रिया आर्थिक दृष्टि से उपयोगी व स्वरोजगार को बढ़ावा देने की है।
जड़ी बूटियों के द्वारा तैयार औषधि की निरन्तर बढ़ती मांग, लेकिन निरन्तर जड़ी-बूटियों के दोहन ने हमें इस कगार पर खड़ा कर दिया है कि यदि इन प्राकृतिक औषधीय पौधों का सरक्षंण व कृषिकरण नहीं किया गया तो धीरे-धीरे महत्त्वपूर्ण जड़ी-बूटियां लुप्त होती जायेंगी। आज आवश्यकता है जन-सामान्य में औषधीय पौधों के बारे में रुचि जागृत करने की, सरलतम कृषिकरण व उचित मार्गदर्शन की, ताकि निरन्तर बढ़ती मांग को पूरा किया जा
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