Weight | 450 g |
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ऋग्वेदादि-चारों-वेदों-का भाष्य 8 parts
Rs.6,600.00Sold By : The Rishi Mission Trustचारों वेदों का भाष्य आठ खंडों में –
भाष्यकारों के नाम –
ऋग्वेद – महर्षि दयानन्द सरस्वती (सातवें मंडल के 61वें सूक्त मन्त्र 2 पर्यन्त) पश्चात् – (सम्पूर्ण ऋग्वेद सात खंडों में) आर्यमुनि जी (शेष 10 मण्डल पर्यन्त)
यजुर्वेद – महर्षि दयानन्द सरस्वती (40 अध्याय पर्यन्त) (सम्पूर्ण यजुर्वेद एक खंड में)
सामवेद – पं.रामनाथ वेदालङ्कार जी (सम्पूर्ण सामवेद एक खंड में)
अथर्ववेद – पं. क्षेमकरणदास त्रिवेदी जी (सम्पूर्ण अथर्ववेद दो खंडों में)
वेद संस्कृति, विज्ञान, शिक्षा के मूलाधार है। वेद विद्या के अक्षय भण्डार और ज्ञान के अगाध समुद्र है। संसार में जितना भी ज्ञान, विज्ञान, कलाएँ हैं, उन सबका आदिस्रोत वेद है। वेद में मानवता के आदर्शों का पूर्णरूपेण वर्णन है। सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों का पथ-प्रदर्शन वेदों के द्वारा ही हुआ था। वेद न केवल प्राचीन काल में उपयोगी थे अपितु सभी विद्याओं का मूल होने के कारण आज भी उपयोगी है और आगे भी होगें। मनुष्यों की बुद्धि को प्रबुद्ध करने के लिए उसे सृष्टि के आदि में परमात्मा द्वारा चार ऋषियों के माध्यम से वेद ज्ञान मिला। ये वेद चार हैं, जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के नाम से जाने जाते हैं। हम इन चारों वेदों का संक्षिप्त परिचय देते हैं –
ऋग्वेद – इस वेद में तृण से ईश्वर पर्यन्त सब पदार्थों का विज्ञान बीज रूप में है। इस वेद में प्रमुख रूप से सामाजिक विज्ञान, विमान विद्या, सौर ऊर्जा, अग्नि विज्ञान, शिल्पकला, राजनीति विज्ञान, गणित शास्त्र, खगोल विज्ञान, दर्शन, व्यापार आदि विद्याओं का वर्णन हैं।
इस वेद पर ऋषि दयानन्द जी का 7वें मण्डल के 61 वें सूक्त के दूसरे मन्त्र तक भाष्य है। दैव-दुर्विपाक से ये भाष्य स्वामी दयानन्द जी द्वारा पूर्ण न हो सका। शेष भाग आर्यमुनि जी द्वारा किया गया हैं। ये भाष्य नैरूक्तिक शैली से परिपूर्ण होने के कारण वेदों के नित्यत्व को स्थापित करता है तथा युक्तियुक्त और सरल होने से अत्यन्त लाभकारी है।
ज्ञान स्वरूप परमात्मा प्रदत्त दूसरा वेद है –यजुर्वेद – इस वेद की प्रशंसा करते हुए, फ्रांस के विद्वान वाल्टेयर ने कहा था – “इस बहुमूल्य देन के लिए पश्चिम पूर्व का सदा ऋणी रहेगा।
यज्ञों पर प्रकाश करने से इस वेद को यज्ञवेद भी कहते हैं। इस वेद में यज्ञ अर्थात् श्रेष्ठकर्म करने की और मानवजीवन को सफल बनाने की शिक्षा दी गई है। जो कि पहले ही मन्त्र – “सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मणे” के द्वारा दी गई है। इस वेद में धर्मनीति, समाजनीति, अर्थनीति, शिल्प, कला-कौशल, ज्यामितीय गणित, यज्ञ विज्ञान, भाषा विज्ञान, स्मार्त और श्रौत कर्मों का ज्ञान दिया हुआ है। इस वेद का चालीसवाँ अध्याय अध्यात्मिक तत्वों से परिपूर्ण है। यह अध्याय ईशावस्योपनिषद् के नाम से प्रसिद्ध है।इस वेद पर ऋषि दयानन्द का सम्पूर्ण भाष्य है। महर्षि का भाष्य अपूर्व एवं अनूठा है। उव्वट और महीधर के भाष्य इतने अश्लील हैं कि उनहें सभ्य-समाज के समक्ष बैठकर पढा नहीं जा सकता है, इसके विपरीत महर्षि का भाष्य इस अश्लीलता से सर्वथा रहित है। महर्षि दयानन्द का भाष्य वैदिक सत्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है तथा मनुष्य के दैनिक कर्त्तव्यों का सन्देश और उपदेश देता है।
इस वेद के पश्चात् सामवेद का लघु परिचय देते हैं –ये वेद आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है, परन्तु महत्व की दृष्टि से अन्य वेदों के समान ही है। इस वेद में उच्चकोटि के आध्यात्मिक तत्वों का विशद वर्णन है, जिनपर आचरण करने से मनुष्य अपने जीवन के चरम लक्ष्य प्रभु-दर्शन की प्राप्ति कर सकता है।
इस वेद द्वारा संगीतशास्त्र का विकास हुआ है। इस वेद में आध्यात्मिक विषय के साथ-साथ संगीत, कला, गणित विद्या, योग विद्या, मनुष्यों के कर्तव्यों का वर्णन है। छान्दोग्य उपनिषद् में “सामवेद एव पुष्पम्” कहकर इसकी महत्ता का प्रतिपादन किया है।इस वेद पर ऋषि दयानन्द का भाष्य नही है लेकिन उनहीं की शैली का अनुसरण करते हुए पं.रामनाथ वेदालङ्कार जी का भाष्य है। यह भाष्य संस्कृत और आर्यभाषा दोनो में है। इस भाष्य में संस्कृत-पदार्थ भी आर्यभाषा-पदार्थ के समान सान्वय दिया है। इसमें प्रत्येक दशति के पश्चात् उसकी पूर्व दशति से संगीति दर्शायी है। अध्यात्म उपदेश से पृथक् इस भाष्य में राजा-प्रजा, आचार्य-शिष्य, भौतिक सूर्य, भौतिक अग्नि, आयुर्वेद, शिल्प आदि व्यवहारिक उपदेशों का दर्शन भी किया जा सकता है।
इस वेद के पश्चात् अथर्ववेद का परिचय देते हैं –इस वेद में ज्ञान, कर्म, उपासना का सम्मिश्रण है। इसमें जहाँ प्राकृतिक रहस्यों का उद्घाटन है, वहीं गूढ आध्यात्मिक रहस्यों का भी विवेचन है। अथर्ववेद जीवन संग्राम में सफलता प्राप्त करने के उपाय बताता है। इस वेद में गहन मनोविज्ञान है। राष्ट्र और विश्व में किस प्रकार से शान्ति रह सकती है, उन उपायों का वर्णन है। इस वेद में नक्षत्र-विद्या, गणित-विद्या, विष-चिकित्सा, जन्तु-विज्ञान, शस्त्र-विद्या, शिल्प-विद्या, धातु-विज्ञान, स्वपन-विज्ञान, अर्थनीति आदि अनेकों विद्याओं का प्रकाश है।
इस वेद पर प्रसिद्ध पं.क्षेमकरणदास जी त्रिवेदी द्वारा रचित भाष्य है। इसमें पदक्रम, पदार्थ और अन्वय सहित आर्यभाषा में अर्थ किया गया है। अर्थ को सरल और रोचक रखा गया है। स्पष्टता और संक्षेप के ध्यान से भाष्य का क्रम यह रक्खा है –
1 देवता, छन्द, उपदेश।
2 मूलमन्त्र – स्वरसहित।
3 पदपाठ – स्वरसहित।
4 सान्वय भावार्थ।
5 भाषार्थ।
6 आवश्यक टिप्पणी, संहिता पाठान्तर, अनुरूप विषय और वेदों में मन्त्र का पता आदि विवरण।
7 शब्दार्थ व्याकरणादि प्रक्रिया-व्याकरण, निघण्टु, निरूक्त, पर्याय आदि।इस तरह ये चारों वेदों का समुच्चय है। आशा है कि आप सब इस वेद समुच्चय को मंगवाकर, अध्ययन और मनन से अपने जीवन में उन्नति करेंगे।
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Sanskar Chandrika
Rs.350.00Sold By : The Rishi Mission Trustलेखक परिचय
डॉ. सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार का जन्म 5 मार्च 1898 व मृत्यु 13.09.1992 आप का जन्म लुधियाना के अंतर्गत सब्द्दी ग्राम में हुआ 1919 में गुरुकुल कांगड़ी के स्नातक होने के बाद कोल्हापुर, बेंगलुरु, मैसूर, मद्रास में 4 वर्ष तक समाज सेवा का कार्य करते रहे 1923 में आप “दयानंद सेवा सदन” के आजीवन सदस्य होकर गुरुकुल विद्यालय में प्रोफेसर हो गए 15 जून 1926को आपका विवाह श्रीमती चन्द्रावती लखनपाल एम.ए., बी.टी.से हुआ 30.11. 1930 को सत्याग्रह में गिरफ्तार हुए और 1931 को गांधी इरविन पैक्ट में छोड़ दिए गए आपकी पत्नी 20.06.1932 में यू.पी.एस.सी. की अध्यक्षा पद से आगरा में गिरफ्तार हुई उन्हें 1 साल की सजा हुई 1934में चन्द्रावती जी को “स्त्रियों की स्थिति“ग्रन्थ पर सेकसरिया तथा 20.04.1935 में उन्हें “शिक्षा मनोविज्ञान” ग्रन्थ पर महात्मा गांधी के सभापतित्व में मंगला प्रसाद पारितोषिक दिया गया अप्रेल 1952 में राज्यसभा की सदस्या चुनी गई और 10 साल तक इस पद पर रही , डॉ. सत्यव्रत जी अपनी सेवा के दौरान मई 1935 में गुरुकुल विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए 15 नवंबर 1941 को सेवा कालसमाप्त कर वे मुंबई में समाज सेवा कार्य में व्यस्त हो गए 2 जुलाई 1945 को आपकी पत्नी कन्या गुरुकुल देहरादून की आचार्या पद पर नियुक्त हुई डॉ. सत्यव्रत जी ने इस बीच “समाजशास्त्र” “मानव शास्त्र” “वैदिक संस्कृति” तथा “शिक्षा” आदि पर बीसीओ ग्रंथ लिखे जो विश्वविद्यालय में पढ़ाये जाने लगे आपके “एकादशोपनिषदभाष्य” की भूमिका राष्ट्रपति डॉ.राधाकृष्णनने तथा आपके गीता भाष्य की भूमिका प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने लिखी आपके होम्योपैथी के ग्रंथों को सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ घोषित कर उन पर 1000 का पारितोषिक दिया गया इन ग्रंथों का विमोचन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने किया 3 जनवरी 1960 को आपको “समाजशास्त्र” के मूल तत्व पर मंगला प्रसाद पारितोषिक देकर सम्मानित किया गया 4 जून 1960 को आप दोबारा 6 वर्ष के लिए गुरुकुल विश्वविद्यालय के उप कुलपति नियुक्त हुए 3 मार्च 1962 को पंजाब सरकार ने आप के साहितिक कार्य के सम्मान में चंडीगढ़ में एक दरबार आयोजित करके 1200रु.की थैली तथा एक दोशाला भेंट किया 1964में राष्ट्रपति डॉ.राधाकृष्णन ने आपको राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया 1977 में आपके ग्रंथ “वैदिक विचारधारा का वैज्ञानिक आधार” पर गंगा प्रसाद ट्रस्ट द्वारा 1200 रु.और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ₹2500रु. और रामकृष्ण डालमिया पुरस्कार द्वारा 11पुरस्कार द्वारा 1100₹ का पुरस्कार दिया गया 1978 में आप नैरोबी के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के अध्यक्ष हुए 1978में दिल्ली प्रशासन ने वेदों के मूर्धन्य विद्वान होंने के नाते सम्मान अर्पण समारोह करके आपको 2001रु. तथा सरस्वती की मूर्ति देकर सम्मानित किया आपने होम्योपैथी पर अनेक ग्रंथ लिखे हैं जिसमें “होम्योपैथिक औषधियों का सजीव चित्रण” “रोग तथा उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा” “बुढ़ापे के जवानी की ओर” तथा “होम्योपैथी के मूल सिद्धांत” प्रसिद्ध आपके अंग्रेजी में लिखे ग्रन्थ “Heritage of vediv culture”, “Exposition of vedic thought”, तथा Glimpses of the vedic” Confidential talks to youngmen” का विदेशों में बहुत मान हुआ है आपके नवीनतम ग्रंथ “ब्रह्मचर्य संदेश” वैदिक संस्कृति का सन्देश” तथा “उपनिषद प्रकाश” आदि अनेक वैदिक साहित्य के आप लेखक है
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