Man ke jite Jeet Hai मन के जीते जीत है
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मनुष्य अच्छा या बुरा मन के कारण होता है, क्योंकि इच्छित अनिच्छित, अच्छे बुरे सब कार्यों का मूल मन ही है। मनुष्य के बन्धन तथा मुक्ति का कारण मन ही है। किसी ने ठीक ही कहा है “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ” शक्ति शरीर में रहती है, पर शरीर की अपेक्षा मन की शक्ति अधिक महत्त्व रखती है। जिसके मन में शक्ति है, वह कभी कठिनाई के सामने झुकता नहीं है, वह कभी हारता नहीं है। जिसकी मन की शक्ति गिर गई, उसकी हार निश्चित है। मनुष्य का मन ठीक है, तो सब कुछ ठीक है, मन बिगड़ गया तो कुछ बन नहीं सकता। सभी संकल्पों का घर एक मन ही है, अर्थात् सारे सामर्थ्य मन में ही बसते हैं । मन बड़ा चंचल है। तभी तो अर्जुन श्रीकृष्ण से गीता के ६/३४ श्लोक में कहते हैं चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् । तस्याऽहं निग्रहम्मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ।। हे कृष्ण! मन बड़ा चंचल है, मथने वाला बलवान् और दृढ़ है। जैसे वायु का निग्रह करना कठिन है वैसे ही मन का निग्रह करना बड़ा कठिन
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