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Manav Nirman मानव निर्माण

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मानव शरीर परम पिता परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना हैं। मानव योनि भोग योनि भी है और कर्मयोनि भी है। मानवेतर समस्त योनियाँ भोग योनियाँ है। आहार, निद्रा, भय, सन्तानोत्पत्ति आदि समस्त कियाएँ मानवों और पशुओं की समान ही होती है। पशु जगत् का कार्य नैसर्गिक (स्वाभाविक) ज्ञान से चल सकता है, लेकिन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जिसके जीवन का लक्ष्य है, वह मनुष्य नैमित्तिक ज्ञान के बिना आगे नहीं बढ़ सकता है। परमेश्वर ने अत्यन्त कृपापूर्वक मनुष्य को बुद्धिविवेक प्रदान किया है। लेकिन मानव बुद्धि जड़ होने से अन्य की प्रेरणा की अपेक्षा रखती है। बुद्धि एक जन्मजात शक्ति है, तो ज्ञान अर्जित सम्पत्ति है। लेकिन मनुष्य को स्वतः ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। उसे प्रारम्भ में माता-पिता – आचार्य से ज्ञान प्राप्त हो जाए तो वह अपने अनुभव, चिन्तन और बुद्धि के द्वारा उस ज्ञान का विकास कर सकता है। स्वाभाविक ज्ञान की दृष्टि से मनुष्य पशुओं से पीछे है। स्वाभाविक ज्ञान नैमित्तिक ज्ञान की प्राप्ति में सहायक तो हो सकता है, किन्तु स्वयं विकसित होकर मनुष्य के व्यवहारादि के लिये पर्याप्त नहीं हो सकता है। पशु जगत् केवल स्वाभाविक ज्ञान के सहारे अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। मनुष्य नैमित्तिक ज्ञान के सहारे अपनी शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति करने में समर्थ है यही मनुष्य योनि की विशेषता है। मनुष्य विद्या- बुद्धि के द्वारा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में कल्पनातीत उन्नति कर रहा है, उससे यह सत्य ही प्रमाणित होता है। किन्तु मानव में यह उन्नति स्वतः नहीं होती है। समुचित साधनों के रूप में नैमित्तिक ज्ञान के द्वारा ही यह उन्नति सम्भव है ।

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मानव शरीर परम पिता परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना हैं। मानव योनि भोग योनि भी है और कर्मयोनि भी है। मानवेतर समस्त योनियाँ भोग योनियाँ है। आहार, निद्रा, भय, सन्तानोत्पत्ति आदि समस्त कियाएँ मानवों और पशुओं की समान ही होती है। पशु जगत् का कार्य नैसर्गिक (स्वाभाविक) ज्ञान से चल सकता है, लेकिन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जिसके जीवन का लक्ष्य है, वह मनुष्य नैमित्तिक ज्ञान के बिना आगे नहीं बढ़ सकता है। परमेश्वर ने अत्यन्त कृपापूर्वक मनुष्य को बुद्धिविवेक प्रदान किया है। लेकिन मानव बुद्धि जड़ होने से अन्य की प्रेरणा की अपेक्षा रखती है। बुद्धि एक जन्मजात शक्ति है, तो ज्ञान अर्जित सम्पत्ति है। लेकिन मनुष्य को स्वतः ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। उसे प्रारम्भ में माता-पिता – आचार्य से ज्ञान प्राप्त हो जाए तो वह अपने अनुभव, चिन्तन और बुद्धि के द्वारा उस ज्ञान का विकास कर सकता है। स्वाभाविक ज्ञान की दृष्टि से मनुष्य पशुओं से पीछे है। स्वाभाविक ज्ञान नैमित्तिक ज्ञान की प्राप्ति में सहायक तो हो सकता है, किन्तु स्वयं विकसित होकर मनुष्य के व्यवहारादि के लिये पर्याप्त नहीं हो सकता है। पशु जगत् केवल स्वाभाविक ज्ञान के सहारे अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। मनुष्य नैमित्तिक ज्ञान के सहारे अपनी शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति करने में समर्थ है यही मनुष्य योनि की विशेषता है। मनुष्य विद्या- बुद्धि के द्वारा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में कल्पनातीत उन्नति कर रहा है, उससे यह सत्य ही प्रमाणित होता है। किन्तु मानव में यह उन्नति स्वतः नहीं होती है। समुचित साधनों के रूप में नैमित्तिक ज्ञान के द्वारा ही यह उन्नति सम्भव है ।

Weight 300 g
Dimensions 22 × 14 × 2 cm

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