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Niti shiksha नीति शिक्षा

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आचारशिक्षा और नीतिशिक्षा वैदिक आचारशिक्षा और नीतिशिक्षा को दो पृथक् भागों में विभक्त किया गया है। आचारशिक्षा का विशेष संबन्ध वैयक्तिक जीवन से है। इसमें आत्मोन्नति के साधनों पर विशेष बल दिया गया है। नीतिशिक्षा में सामाजिक, राष्ट्रीय, विश्वजनीन विषय भी समाहित हैं। इस विषय पर हुए वेदों में बहुत अधिक सामग्री उपलब्ध है, तथापि उसमें से छँटे केवल १०० मंत्र इस भाग में संकलित किए हैं । –

) नीति- शिक्षा – नीति- शिक्षा जीवन के व्यापक स्वरूप को प्रकट करती है । मनुष्य अपने, पराए, सजातीय, विजातीय, शत्रु, मित्र, परिचित, अपरिचित आदि से किस प्रकार व्यवहार करे इसकी शिक्षा नीतिशिक्षा देती है। सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति के क्या साधन हैं ? जीवन की क्या उपयोगिता है ? बाह्य और आन्तरिक शत्रुओं के प्रति क्या व्यवहार रखा जाए ? अनर्थकारी प्रवृत्तियों को कैसे रोका जाए ? व्यक्ति का विश्वशान्ति, विश्वबन्धुत्व और विश्वसंस्कृति में क्या उपयोग हो सकता है ? इत्यादि विभिन्न विषयों पर चिन्तन नीतिशिक्षा के अन्तर्गत आता है ।

आचार्य चाणक्य ने चाणक्यसूत्राणि ग्रन्थ में इस विषय पर कुछ मौलिक विचार उपस्थित किए हैं। आचार्य चाणक्य का कथन है कि मनुष्य सुख चाहता है। सुख का मूल धर्म है । धर्म का मूल अर्थ या धन है । अर्थ का मूल राज्य है। राज्य का मूल इन्द्रिय-विजय या संयम है। इन्द्रिय-विजय का मूल विनय या शील है। –

सुखस्य मूलं धर्मः । १ । अर्थस्य मूलं राज्यम् । ३ । इन्द्रियजयस्य मूलं विनयः । ५ । धर्मस्य मूलमर्थः । २ । राज्यमूलमिन्द्रियजयः । ४ । चा० सूत्र १ से ५

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