पातञ्जलयोगप्रदीप श्री स्वामी ओमानंद तीर्थ patanjalyogpradeep
Rs.250.00
पूज्य श्री स्वामी जी महाराज ने योग के यथार्थ रहस्य तथा स्वरूप को मनुष्य मात्र के हृदयङ्गम कराने के लिये ‘पातञ्जलयोगप्रदीप’ नामक पुस्तक लिखी थी। उसका प्रथम संस्करण अनेक वर्षों से अप्राप्य हो रहा था। अब उसकी द्वितीयावृत्ति ‘आर्य-साहित्य मण्डल’ द्वारा छपकर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है । इस बार श्री स्वामी जी महाराज ने इसमें अनेक विषय बढ़ा दिये हैं और योग सम्बन्धी अनेक चित्रों का समावेश किया है। इससे ग्रन्थ प्रथम संस्करण की अपेक्षा लगभग दुगुना हो गया है । इस ग्रन्थ में योगदर्शन, व्यासभाष्य, भोजवृत्ति और कहीं कहीं योगवार्तिक का भी भाषानुवाद दिया है। योग के अनेक रहस्य – योग सम्बन्धी विविध ग्रन्थों और स्वानुभव के आधार पर भली प्रकार खोले हैं, जिससे योग में नये प्रवेश करने वाले अनेक भूलों से बच जाते हैं। श्री स्वामी जी ने इसकी ‘षड्दर्शन-समन्वय’ नाम्नी भूमिका में मीमांसा आदि छहों दर्शनों का समन्वय बड़े सुन्दर रूप से किया है । महर्षि दयानन्द सरस्वती को छोड़कर अर्वाचीन आचार्य तथा विद्वान् छहों दर्शनों में परस्पर विरोध मानते हैं, किंतु श्री स्वामी जी महाराजने प्रबल प्रमाणों तथा युक्तियों से यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि दर्शनों में परस्पर विरोध नहीं है। श्री स्वामी जी महाराज इस प्रयास में पूर्ण सफल हुए हैं तथा कपिल और कणाद ऋषि का अनीश्वरवादी न होना, मीमांसा में पशु-बलिका निषेध, द्वैत-अद्वैत का भेद, सृष्टि उत्पत्ति, बन्ध और मोक्ष, वेदान्त-दर्शन अन्य दर्शनों का खण्डन नहीं करता, सांख्य और योग की एकता आदि कई विवादास्पद विषयों का विवेचन स्वामी जी महाराज ने बड़े सुन्दर ढंग से किया है, इसके लिये स्वामी जी महाराज अत्यन्त धन्यवाद के पात्र हैं। दर्शनों और उपनिषद् आदिमें समन्वय दिखलाने और योग सम्बन्धी तथा अन्य कई आध्यात्मिक रहस्यपूर्ण विषयों को साम्प्रदायिक पक्षपात से रहित होकर अनुभूति, युक्ति, श्रुति तथा आर्ष ग्रन्थों के आधार पर खोलते हुए स्वामी जी ने अपने स्वतन्त्र विचारों को प्रकट किया है । अतः इन विचारों का उत्तरदायित्व श्री स्वामी जी महाराज पर ही समझना चाहिये न कि आर्य साहित्य-मण्डलपर । पुस्तक को अधिक उपयोगी बनाने के उद्देश्य से स्वामी जी के आदेशानुसार यथोचित
स्थानों में चित्र भी दिये गये हैं। कुछ आसनों के चित्र पं० भद्रसेनजी के यौगिक व्यायाम-संघ के ब्लाकों से लिये गये हैं। जिनके लिये पं० भद्रसेन जी मण्डल की ओर से धन्यवाद के पात्र हैं।
यह इस पुस्तक का तृतीय संस्करण है जो गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित हुआ है।
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पूज्य श्री स्वामी जी महाराज ने योग के यथार्थ रहस्य तथा स्वरूप को मनुष्य मात्र के हृदयङ्गम कराने के लिये ‘पातञ्जलयोगप्रदीप’ नामक पुस्तक लिखी थी। उसका प्रथम संस्करण अनेक वर्षों से अप्राप्य हो रहा था। अब उसकी द्वितीयावृत्ति ‘आर्य-साहित्य मण्डल’ द्वारा छपकर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है । इस बार श्री स्वामी जी महाराज ने इसमें अनेक विषय बढ़ा दिये हैं और योग सम्बन्धी अनेक चित्रों का समावेश किया है। इससे ग्रन्थ प्रथम संस्करण की अपेक्षा लगभग दुगुना हो गया है । इस ग्रन्थ में योगदर्शन, व्यासभाष्य, भोजवृत्ति और कहीं कहीं योगवार्तिक का भी भाषानुवाद दिया है। योग के अनेक रहस्य – योग सम्बन्धी विविध ग्रन्थों और स्वानुभव के आधार पर भली प्रकार खोले हैं, जिससे योग में नये प्रवेश करने वाले अनेक भूलों से बच जाते हैं। श्री स्वामी जी ने इसकी ‘षड्दर्शन-समन्वय’ नाम्नी भूमिका में मीमांसा आदि छहों दर्शनों का समन्वय बड़े सुन्दर रूप से किया है । महर्षि दयानन्द सरस्वती को छोड़कर अर्वाचीन आचार्य तथा विद्वान् छहों दर्शनों में परस्पर विरोध मानते हैं, किंतु श्री स्वामी जी महाराजने प्रबल प्रमाणों तथा युक्तियों से यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि दर्शनों में परस्पर विरोध नहीं है। श्री स्वामी जी महाराज इस प्रयास में पूर्ण सफल हुए हैं तथा कपिल और कणाद ऋषि का अनीश्वरवादी न होना, मीमांसा में पशु-बलिका निषेध, द्वैत-अद्वैत का भेद, सृष्टि उत्पत्ति, बन्ध और मोक्ष, वेदान्त-दर्शन अन्य दर्शनों का खण्डन नहीं करता, सांख्य और योग की एकता आदि कई विवादास्पद विषयों का विवेचन स्वामी जी महाराज ने बड़े सुन्दर ढंग से किया है, इसके लिये स्वामी जी महाराज अत्यन्त धन्यवाद के पात्र हैं। दर्शनों और उपनिषद् आदिमें समन्वय दिखलाने और योग सम्बन्धी तथा अन्य कई आध्यात्मिक रहस्यपूर्ण विषयों को साम्प्रदायिक पक्षपात से रहित होकर अनुभूति, युक्ति, श्रुति तथा आर्ष ग्रन्थों के आधार पर खोलते हुए स्वामी जी ने अपने स्वतन्त्र विचारों को प्रकट किया है । अतः इन विचारों का उत्तरदायित्व श्री स्वामी जी महाराज पर ही समझना चाहिये न कि आर्य साहित्य-मण्डलपर । पुस्तक को अधिक उपयोगी बनाने के उद्देश्य से स्वामी जी के आदेशानुसार यथोचित
स्थानों में चित्र भी दिये गये हैं। कुछ आसनों के चित्र पं० भद्रसेनजी के यौगिक व्यायाम-संघ के ब्लाकों से लिये गये हैं। जिनके लिये पं० भद्रसेन जी मण्डल की ओर से धन्यवाद के पात्र हैं।
यह इस पुस्तक का तृतीय संस्करण है जो गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित हुआ है।
Weight | 1000 g |
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