Patanjali Yoga Darshan
Rs.225.00
दर्शन शब्द का व्युत्पत्ति – लभ्य अर्थ है- ‘दृश्यते अनेनेति दर्शनम्’ । जिसके द्वारा देखा जाय वही दर्शन है। अर्थात् सृष्टि और अतिसृष्टि के तत्त्व समूहों को जिसके द्वारा देखा जाता है सम्यक् प्रकारेण जाना जाता है वही दर्शन है। भारतीय दर्शन शास्त्रों में योग दर्शन का स्थान विशेष महत्वपूर्ण है। दर्शन शास्त्रों में यही एक क्रियात्मक दर्शन है और योगरूप मोक्ष साधना का प्रतिपादक होने से मोक्षशास्त्र भी है। वर्तमान युग में पातञ्जल योगदर्शन ही एक प्रामाणिक तथा प्राचीनतम योगशास्त्र है योगसाधन मार्ग पर चलने वाले मुमुक्षु साधकों के लिये योगदर्शन ही एक प्रकार से प्रकाशस्तम्भ का काम देता आया है और आगे भी देता रहेगा – वह ध्रुव सत्य है । राजयोग का आधार ग्रन्थ पातञ्जल योगदर्शन का ही माना जाता है।
बहुत दिनों से यह विचार था कि योगदर्शन का एक संक्षिप्त संस्करण संस्था से प्रकाशित किया जाय। परन्तु कई कारणों से वह कार्य पूर्ण न हो सका। इस वर्ष परमेश्वर की अहेतुक कृपा से वह कार्य सम्पन्न हो गया। स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती जी ने अल्पकाल में ही इस पर ‘सम्यग्दर्शिनी’ हिन्दी व्याख्या लिख दी और संस्था ने साथ-साथ प्रकाशित भी कर दिया है ।
यह हिन्दी व्याख्या यद्यपि व्यासभाष्य का पूरा पूरा अनुवाद नहीं है फिर भी व्यासभाष्य के आधार पर ही यह व्याख्या लिखी गयी है। व्याख्या संक्षिप्त होने पर भी सूत्रार्थ बोधक हैं। सूत्रों का अन्वय पदच्छेद पूर्वक अर्थ दिये जाने से सभी वर्गों के पाठकों के लिये पुस्तक विशेष उपयोगी सिद्ध होगी। हम आशा करते हैं कि सभी प्रकार के पाठक एवं साधकगण इससे लाभ उठा सकेंगे। इतिशम्!
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