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pauraanik pol prakash पौराणिक पोल प्रकाश

450.00

‘पौराणिक पोलप्रकाश

जिस समय भारत में अविद्या और अन्धकार छा रहा था, नये-नये पन्थ, और मत पनप रहे थे, वैदिक धर्मी विधर्मी बन रहे थे, मूर्तिपूजा, अन्धविश्वास, गुरुडम, पाखण्डवाद बढ़ रहा था, मन्दिरों में देवदासियाँ रक्खी जाती थीं, पण्डों और पुजारियों ने लूट का बाजार गर्म कर रखा था, दुराचार और व्यभिचार पनप रहा था-ऐसे भीषण समय में महर्षि दयानन्द सरस्वती भारतीय रंगमञ्च पर अवतरित हुए।

ओ३म्

महर्षि दयानन्द के बलिदान के पश्चात् अनेक लोगों ने महर्षि दयानन्द के ग्रन्थों पर लेखनी उठाई। अनेक ग्रन्थ उनके खण्डन में लिखे गये। इस प्रकार का एक ग्रन्थ लिखा गया ‘आर्यसमाज की मौत’। इस पुस्तक का मुँहतोड़ उत्तर दिया शास्त्रार्थमहारथ: पं० मनसारामजी ‘वैदिक तोप’ ने।

पुस्तक क्या है, रत्नों से तोलने योग्य है। महर्षि पर जितने भी आक्षेप किये गये हैं, उन सबका मुँहतोड़ उत्तर है। प्रमाणों की झड़ी लगी हुई है। पुस्तक कैसी है? ऐसी कि पढ़ते ही अपने पाठकों के हृदयों पर सिक्का जमा देगी।

आज पाखण्ड फिर बढ़ रहा है; मूर्तिपूजा, अवतारवाद और गुरुडम खुलकर ताण्डव नृत्य कर हैं। आज पुन: इस बात की आवश्यकता है कि इस पौराणिकता के गढ़ पर प्रबल प्रहार किया जाए। यह पुस्तक इस कार्य में अत्यन्त सहायक होगी।

इस ग्रन्थ के सम्पादन और ईक्ष्यवाचन (प्रूफ रीडिंग) स्वामी जगदीश्वरानन्दजी ने बड़े परिश्रम से किया है। इस ग्रन्थ के प्रत्येक प्रमाण को मूल ग्रन्थ से मिलाया है। जहाँ प्रमाण छूट गये थे, वहाँ ढूँढकर लिख दिये गये हैं। जहाँ पते अशुद्ध थे उन्हें शोध दिया गया है। इस बार मन्त्रों तथा श्लोकों की अनुक्रमणिका देकर इसकी उपयोगिता को बढ़ा दिया गया है। महर्षि दयानन्द की आलोचनाओं से घबराकर लोगों ने अपने ग्रन्थों को बदल डाला। यह आर्यसमाज की बहुत बड़ी विजय है। आशा है पाठक पहले संस्करणों की भाँति इसे भी अपनाएँगे।

(In Stock)

Sold By : The Rishi Mission Trust Category:
Weight 1500 g
Dimensions 24 × 18 × 4 cm

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