Prey Se Shreya Ki Or….. प्रेय से श्रेया की ओर……
Rs.60.00
‘एक श्रेय और उससे भिन्न दूसरा प्रेय है, ये दोनों ही पुरुष को नाना बन्धनों में बाँधते हैं । उन दोनों में से श्रेय के ग्रहणकर्ता का कल्याण होता है जो प्रेय का वरण करता है, वह उद्देश्य से पतित हो जाता है। इसलिए बुद्धिमान मनुष्य दोनों को देखकर विचार करता है। वह प्रेय को त्याग श्रेय का वरण करता है । मूर्ख मनुष्य योग-क्षेम के कारण प्रेय को स्वीकार करता है।
सभी मनुष्य प्रेय में ही जन्म लेते हैं । जन्म के साथ ही इन्द्रियों के विषय मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करते हैं । वह उन्हें भोगता हुआ पुनः उन्हीं की प्राप्ति और संग्रह में लगा रहता है। लोक की भाषा में इसे कमाना – खाना कहते हैं | कमाने में श्रम करना पड़ता है, द्वन्द्व सहन करने पड़ते हैं। श्रम करके, द्वन्द्व सहन करके पदार्थों की प्राप्ति और संग्रह योग कहा जाता है। अधिकांश में मनुष्य श्रम न करके अथवा न्यूनतम श्रम करके अधिक प्राप्ति की कामना करते हैं । कुछ लोग इसके लिए छल, कपट और चोरी का आश्रय लेते हैं, कुछ बलपूर्वक अन्यों का सुख भाग छीन लेते हैं । अतः भोगों के संग्रह के पश्चात् उनके रक्षण का भी प्रयत्न करना होता है। बलवानों को भी अपने से अधिक बलिष्ठ का भय सताता रहता है । अतः सबको भोगों के संग्रह के साथ-साथ उनके रक्षण के लिए यत्नशील रहना पड़ता है, इसे शास्त्र की भाषा में क्षेम’ कहा जाता है। यही प्रेय है। यहाँ धर्म, भगवान और परलोक की आड़ में चालाक लोग मिथ्या कर्मकाण्ड का सृजन करके जन सामान्य की कमाई का सम्पूर्ण भाग छीनने में लगे रहते हैं तो दूसरी ओर मादक पदार्थों की लत लगाकर लूटा जाता है। झूठे विज्ञापनों के द्वारा भोगवाद में फंसा कर सर्वस्व हरण करने का उद्योग जोरों से चलता है । चोरी, डाका, ठगी का सर्वत्र बोलबाला होता है। भोग भय मिश्रित होने से सुख नहीं दे पाता । लोग सुख की आशा में दुःख झेलते हुए जीवन व्यर्थ ही गंवा देते हैं । प्रेय की यही कहानी है। यहाँ की मान्यता है कि-माल मुफ्त दिल बेरहम। कमाए दुनिया खाएँ हम |
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‘एक श्रेय और उससे भिन्न दूसरा प्रेय है, ये दोनों ही पुरुष को नाना बन्धनों में बाँधते हैं । उन दोनों में से श्रेय के ग्रहणकर्ता का कल्याण होता है जो प्रेय का वरण करता है, वह उद्देश्य से पतित हो जाता है। इसलिए बुद्धिमान मनुष्य दोनों को देखकर विचार करता है। वह प्रेय को त्याग श्रेय का वरण करता है । मूर्ख मनुष्य योग-क्षेम के कारण प्रेय को स्वीकार करता है।
सभी मनुष्य प्रेय में ही जन्म लेते हैं । जन्म के साथ ही इन्द्रियों के विषय मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करते हैं । वह उन्हें भोगता हुआ पुनः उन्हीं की प्राप्ति और संग्रह में लगा रहता है। लोक की भाषा में इसे कमाना – खाना कहते हैं | कमाने में श्रम करना पड़ता है, द्वन्द्व सहन करने पड़ते हैं। श्रम करके, द्वन्द्व सहन करके पदार्थों की प्राप्ति और संग्रह योग कहा जाता है। अधिकांश में मनुष्य श्रम न करके अथवा न्यूनतम श्रम करके अधिक प्राप्ति की कामना करते हैं । कुछ लोग इसके लिए छल, कपट और चोरी का आश्रय लेते हैं, कुछ बलपूर्वक अन्यों का सुख भाग छीन लेते हैं । अतः भोगों के संग्रह के पश्चात् उनके रक्षण का भी प्रयत्न करना होता है। बलवानों को भी अपने से अधिक बलिष्ठ का भय सताता रहता है । अतः सबको भोगों के संग्रह के साथ-साथ उनके रक्षण के लिए यत्नशील रहना पड़ता है, इसे शास्त्र की भाषा में क्षेम’ कहा जाता है। यही प्रेय है। यहाँ धर्म, भगवान और परलोक की आड़ में चालाक लोग मिथ्या कर्मकाण्ड का सृजन करके जन सामान्य की कमाई का सम्पूर्ण भाग छीनने में लगे रहते हैं तो दूसरी ओर मादक पदार्थों की लत लगाकर लूटा जाता है। झूठे विज्ञापनों के द्वारा भोगवाद में फंसा कर सर्वस्व हरण करने का उद्योग जोरों से चलता है । चोरी, डाका, ठगी का सर्वत्र बोलबाला होता है। भोग भय मिश्रित होने से सुख नहीं दे पाता । लोग सुख की आशा में दुःख झेलते हुए जीवन व्यर्थ ही गंवा देते हैं । प्रेय की यही कहानी है। यहाँ की मान्यता है कि-माल मुफ्त दिल बेरहम। कमाए दुनिया खाएँ हम |
Weight | 500 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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