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Rig Yajurved Shatak

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वेद परम पिता परमात्मा की अपौरुषेय वाणी है जिसे सृष्टि के आरम्भ में स्वयं परमात्मा ने चार ऋषियों को प्रदान किया था। ऋग्वेद का ज्ञान अग्नि ऋषि को, यजुर्वेद का ज्ञान वायु ऋषि को, सामवेद का ज्ञान आदित्य ऋषि को एवं अथर्ववेद का ज्ञान अंगिरा ऋषि को ईश्वर ने साक्षात् कराया था। समाधि अवस्था में बैठकर इन चार ऋषियों ने अपने अन्तःकरण में चारों वेदों का वैज्ञानिक, प्रामाणिक एवं विशुद्ध ज्ञान ईश्वर से प्राप्त किया था व ईश्वर ने चित्र सहित वेद मंत्रों का अर्थ उपरोक्त ऋषियों को बताया था ।

वेद किसी देश विशेष की, स्थान विशेष की जनता के लिये नहीं है अपितु यह सार्वजनीन, सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सृष्टि रचना के पूर्णतः अनुकूल है। इसमें वर्णित विषय विज्ञान-सम्मत, बुद्धियुक्त, तर्क संगत, अकाट्य तथा झूठ, पाखंड, अंध विश्वास से रहित है ।

श्रद्धामयी प्रेरणा मूर्ति श्रीमती विमलेश बंसल “आर्या” (दिल्ली) की सात्विक प्रेरणा से तथा उनके पद्यानुवाद से प्रभावित होकर उनकी विमल वेद वाणी को जन मानुष तक पहुँचाने की प्रबल भावना को देखते हुए सरल सरस सहज भाषा में प्रार्थना युक्त भक्ति पूर्ण शैली से पहले सामवेद व अथर्ववेद फिर यजुर्वेद एवं ऋग्वेद के सौ सौ मंत्रों की व्याख्या लिखने इच्छा हुई व परमेश्वर की दया से दो वेदों प्रकाशित हो चुकी है तथा अब ऋग् यजुर्वेद शतक आप के सम्मुख प्रस्तुत है । एतदर्थ ईश्वर का कोटिशः धन्यवाद करता हूँ ।

बाल्यकाल से ही माता पिता से धार्मिक संस्कारों को प्राप्त कर तथा दर्शन योग महाविद्यालय आर्यवन रोजड़ में गुरुजनों के मुखारविन्द से वेद, दर्शन, उपनिषद आदि शास्त्रों का गहन ज्ञान प्राप्त कर उनके आशीर्वाद से यह वेद व्याख्या का कार्य कर सका हूँ अतः मैं इनका हृदय से आभार प्रकट करते हुए और भी जिन विद्वत्जनों के ज्ञान से लाभान्वित हुआ हूँ उन सभी का धन्यवाद करता हूँ । स्वामी शान्तानन्द सरस्वती

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