Weight | 600 g |
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Vyavarabhanu
Rs.25.00Rs.20.00Sold By : The Rishi Mission Trustमैंने इस संसार में परीक्षा करके निश्चय किया है कि जो मनुष्य धर्मयुक्त व्यवहार में ठीक-ठीक वर्त्तता है, उसको सर्वत्र सुखलाभ और जो विपरीत वर्त्तता है, वह सदा दुःखी होकर अपनी हानि कर लेता है । देखिए, जब कोई सभ्य मनुष्य विद्वानों की सभा में वा किसी के पास जाकर अपनी योग्यता के अनुसार ‘नमस्ते’ आदि नम्रतापूर्वक करके बैठ के दूसरे की बात ध्यान से सुन, उसका सिद्धान्त जान, निरभिमानी होकर युक्त प्रत्युत्तर करता है, तब सज्जन लोग प्रसन्न होकर उसका सत्कार और जो अण्ड-बण्ड बकता है, उसका तिरस्कार करते हैं ।
I जब मनुष्य धार्मिक होता है, तब उसका विश्वास और मान्य शत्रु भी करते हैं और जब अधर्मी होता है, तब उसका विश्वास और मान्य मित्र भी नहीं करते । इससे जो थोड़ी विद्या वा लोभी मनुष्य श्रेष्ठ शिक्षा पाकर सुशील होता है, उसका कोई भी कार्य नहीं बिगड़ता। इसलिए मैं मनुष्यों को उत्तम शिक्षा के अर्थ सब वेदादि शास्त्र और सत्याचारी विद्वानों की रीतियुक्त इस ‘व्यवहारभानु’ ग्रन्थ को बनाकर प्रसिद्ध करता हूँ कि जिसको देख-दिखा, पढ़-पढ़ाकर मनुष्य अपनी-अपनी सन्तान तथा विद्यार्थियों का आचार अत्युत्तम करें कि जिससे आप और वे सब दिन सुखी रहें ।
ग्रन्थ में कहीं-कहीं प्रमाण के लिए संस्कृत और सुगम भाषा लिखी और अनेक उपयुक्त दृष्टान्त देकर सुधार का अभिप्राय प्रकाशित किया है कि जिसको सब कोई सुख से समझ के अपना-अपना स्वभाव सुधार के सब उत्तम व्यवहारों को सिद्ध किया करें ।
दयानन्द सरस्वती
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SATYARTH PRAKASH SPECIAL GIFT EDDITION
Rs.1,100.00Sold By : The Rishi Mission Trustयह प्रश्न बहुत साधारण है और इसका उत्तर उतना ही जटिल है कारण हम न तो सदैव दुःखी रहते हैं न सुखी रहते हैं। कई बार हम चिंतित होते हैं तो कई बार कुछ प्रसंगों को लेकर हमारे मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि दुनिया में हम क्यों आये? हम आये तो जीवन को किस तरह जियें ? हम दुःखी क्यों होते हैं? क्या है चिंता? क्या है धर्म? क्या है पूजा उपासना के अर्थ ? |आखिर वो भगवान कैसा है जिसकी सब पूजा करते हैं? यही नहीं कई बार हम जब ज्यादा परेशान होते हैं तो ज्योतिष और बाबाओं के चक्कर में भी आ जाते हैं इन सब सवालों के जवाब यहां नहीं दिये जा सकते, लेकिन “सत्यार्थ प्रकाश का हर एक समुल्लास (अध्याय) आपके ज्ञान और शंकाओं का निवारण एक गुरु की तरह करता है जो सिर्फ सच्ची शिक्षा देता है । माना कि आज का जीवन आधुनिक है, हम भौतिक युग में जी रहे हैं, हमारे हाथों में कम्प्यूटर है, महंगे फोन हैं, हम आधुनिकता की बातें करते हैं लेकिन जब हम किसी आर्थिक, सामाजिक या पारिवारिक परेशानी में आते हैं तब हम हजारों साल पुराने अन्धविश्वास में जाने अनजाने में फंस जाते हैं। सर्वविदित है कि 140 सालों में लाखों लोगों का जीवन परिवर्तित करने वाला, सत्य और असत्य की विवेचना करने वाले महानतम ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के रचनाकार महर्षि दयानन्द सरस्वती मूल रूप से गुजराती थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने “सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी भाषा में की। क्योंकि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ की रचना किसी एक धर्म के लाभ-हानि के लिए नहीं की अपितु मानव मात्र के कल्याण और ज्ञान वर्धन के लिए की ताकि हम निष्पक्ष होकर सत्य और असत्य का अन्तर जान सकें और असत्य मार्ग को छोड़कर सत्य मार्ग की ओर बढ़ सकें क्योंकि उनका मानना था कि दुःख का कारण असत्य और अज्ञान है
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