महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती की वैदिक विचारधारा से प्रभावित होकर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारक श्री महादेव गोविन्द रानाडे आदि विशिष्टजनों के विशेष आग्रह पर आषाढ वदि १४, १६३२ विक्रमी, दिन मंगलवार तदनुसार (२० जून, १६७५ ई०) को श्री० स्वामी जी पूना पधारे थे।
श्री० पं० देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय के लेखानुसार स्वामी दयानन्द महाराज के उपदेशों की व्यवस्था बुधवार पेठ के भिड़े के बाड़े में की गई । जहाँ स्वामी जी ने १५ व्याख्यान दिये। कुछ व्याख्यान पुणे कैम्प (छावनी ) की ईस्ट स्ट्रीट स्थित मराठी स्कूल में हुए थे। पं० देवेन्द्रनाथ जी के अनुसार लिपिबद्ध करके व्याख्यानों को उपदेश मंजरी नाम से स्वयं रानाडे जी ने प्रकाशन करवाया था | हाँ, उन आर्य भाइयों का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने इन प्रवचनों को प्रकाशित कर सुरक्षित रखा । 1
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने जिस सत्य-ज्ञान को अपनी पुस्तकों में प्रकाशित किया है, और जितना महर्षि की पुस्तकों का सत्य ज्ञान प्राप्त करने में अतिशय महत्त्व है, ठीक वैसे ही उनकी वाक्पटुता, विद्वता तथा सुलझे हुए विचारों से ओत-प्रोत प्रवचनों का भी अत्यधिक महत्त्व है। इन प्रवचनों में जहाँ ईश्वर, मोक्ष, धर्म, भक्ति, वेद एवं यज्ञादि के सत्य स्वरूप, पुनर्जन्म, वर्णाश्रम, धर्म और संस्कारों का विशेष प्रतिपादन भी सप्रमाण किया है। वहाँ भारत के गौरवपूर्ण किन्तु विस्मृत इतिवृत्त पर भी प्रकाश डालकर पाश्चात्य विद्वानों को भी मुग्ध कर दिया है। प्रस्तुत उपदेश-मंजरी को भी आर्य जनता पूर्ववत् अपनाकर अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करेगी।
Weight | 300 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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