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Vaidik Varnashram Vyavastha वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था

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महाभारत युद्ध के पश्चात् देश का गौरव और उत्थान पतन की ओर जाने लगा। जन्मना जाति व्यवस्था के कारण अस्पृश्यता, ऊँच-नीच, छुआ-छूत, जातपांत आदि अनेक बुराइयों से समाज त्रस्त हुआ। सामाजिक व्यवस्था पर पण्डों, पुजारियों, पुरोहितों और पंचों का एकाधिपत्य था जन्म की आकस्मिक घटना को इतना महत्त्व दिया जाता था कि उसके सामने मनुष्य की योग्यता, क्षमता और परिश्रम आदि का कोई भी मूल्य नहीं था। वर्णाश्रम व्यवस्था जो मानवजाति की एकसूत्रता के लिए थी विघटन का कारण बन गई। मनुष्य मनुष्य के बीच जन्मगत जात-पात, छुआ-छूत और धर्म-कर्म की फौलादी दीवारें खड़ी कर दी गयी । ईर्ष्या, द्वेष, विरोध, वैमनस्य और विनाश की अट्टालिका धर्म की नींव पर खड़ी थी। समाज को स्वस्थ और पुष्ट बनाने के लिये मिथ्या अंध विश्वासों को दूर करना के आवश्यक था। इन्हें दूर करने के अनेक प्रयत्न समाज सुधारकों और महापुरुषों द्वारा किये गये, लेकिन आंशिक सफलता ही प्राप्त हुई । उन्नीसवीं शताब्दी तक भी पण्डितों ने धर्मशास्त्रों और स्मृतियों के आधार पर ब्राह्मणों की उत्कृष्ट स्थिति और शूद्रों की दीन-हीन दशा को शास्त्र सम्मत बताकर जन्मना जाति व्यवस्था को उचित ठहराने का प्रयास किया |

ऐसे समय में सर्वप्रथम युग युगीन वैभव के धनी महर्षि दयानन्द ने अपनी दूरदर्शिता से राष्ट्र में व्याप्त प्रदूषण को परखा और इन सामाजिक बुराइयों का कारण जन्मना जातिवाद को बताया। स्वयं जन्मना औदीच्य ब्राह्मण होते हुए भी सर्वप्रथम सदियों से प्रचलित जन्मना जाति व्यवस्था के स्थान पर वेदोक्त वर्ण व्यवस्था को प्रतिष्ठापित करने का प्रयत्न किया । वर्णाश्रम व्यवस्था व्यक्ति और समाज की उन्नति में सहायक थी, मानव की आदर्श जीवनचर्या कैसी हो, जिससे कि वैयक्तिक एवं सामाजिक उन्नति प्राप्त हो सके। समाज एकसूत्र में कैसे बंधे इस हेतु प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत्त वेदोक्त ‘वर्णाश्रम’ व्यवस्था को दयानन्द ने पुनः प्रतिष्ठापित किया। वर्णाश्रम व्यवस्था एक आदर्श एवं व्यावहारिक विचारधारा है, जिसमें मानव जीवन के समस्त विचार और आवश्यकताएँ समाहित हो जाती है ।

Weight 300 g
Dimensions 22 × 14 × 2 cm

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