Yog Aur sadhana
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योग भारतवर्ष की अति प्राचीन साधनाओं में से एक है। सृष्टि के आदि काल से ही क्रान्तदर्शी हमारे पूर्वज इस पवित्रतम् एवं श्रेष्ठतम् योग साधना का सेवन करते आ रहे हैं । अर्थात् तत्त्वदर्शी ऋषि, महर्षि, यति, योगी तथा महान् साधकगण युग-युग से इसका अभ्यास करते आ रहे हैं। इस योग साधना के द्वारा न जाने कितने ही . योगियों के जीवन पावन बन गये होंगे धन्य बन गये होंगे कौन इनकी गणना करें। मानव की यह महासाधना अनादिकाल से चली आ रही है और अनादिकाल तक चलती ही रहेगी- यह ध्रुव सत्य है।
योग नाम समाधि का है, क्योंकि समाधि के द्वारा ही आत्मदर्शन तथा ब्रह्मसाक्षात्कार आदि होता है । इसलिये वेद में कहा भी है ‘स धीनां योगमिन्वति’ ।। ऋ. १/१८/७।। योग क्या है ? चित्त के समाधान का नाम योग है अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध हो जाना या रुक जाना ही योग है। चूंकि चित्त की क्लिष्ट वृत्तियों का निरोध हो जाने पर ही योग विज्ञान का उदय होता है, अर्थात् प्रारम्भ होता है उससे पूर्व नहीं। कठोपनिषद् में भी कहा है।
‘तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरमिन्द्रिय धारणाम् । अप्रमत्तस्तदा भवति योग हि प्रभवाप्ययौ’ ।।
कठ. २/६/१२ ।।
इन्द्रियों की स्थिर धारणा ( संयम ) को ही योग कहते हैं। इसके साधन से मुमुक्ष योगी पुरुष अप्रमत्त हो जाता है । और उसका योग इष्टोत्पादक तथा अनिष्ट निवारक होता है।’ योग वस्तुतः एक कल्पवृक्ष के समान हैं। सच्चे योग मार्ग से चलकर योगी जो चाहे वही प्राप्त कर सकते हैं। इस बात के लिये योग दर्शन का ‘विभूतिपाद’ स्पष्ट उदाहरण है। श्रुति में भी कहा है कि
‘न तस्य रोग न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम्’ ।।
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