Yog ke vividha aayam
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आज पूरे विश्व में योग के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। भौतिक सुखसुविधाओं से ऊबे हुए विकसित देशों के युवक शांति की खोज में भटकते हुए योग के प्रति आकृष्ट हो रहे हैं। आज का मनुष्य असीम शक्ति-सम्पन्न हो गया है। विज्ञान ने उसकी शक्ति को उस बिन्दु पर पहुँचा दिया है जहाँ तनिक-सी असावधानी पूरे विश्व को ध्वस्त कर सकती है । इस आसुरी शक्ति को संयमित करने के लिए मनुष्य के विवेक को जागृत करना, उसकी मानसिक वृत्तियों को परिष्कृत करना और उसकी चेतना का उन्नयन करना आवश्यक हो गया है। इस आवश्यकता की पूर्ति योग – विद्या के प्रचार-प्रसार से ही संभव है। विज्ञान की जड़ शक्ति को विवेक से नियंत्रित करने के लिए जिस अध्यात्म-तत्त्व की आवश्यकता है, वह योग – विद्या में ही निहित है आज कोई भी साधना विज्ञान को स्वीकार करके ही चरितार्थ हो सकती है । विज्ञान की चुनौती को स्वीकार करने की शक्ति भी योग – विद्या में ही है। योग जिस पद्धति से मनुष्य की चेतना का उन्नयन करता है, वह पूर्णतः वैज्ञानिक है। योग – विद्या के अंगों में प्रथम चार – यम, नियम, आसन, प्राणायाम – पूरी तरह भौतिक हैं। इन क्रियाओं से मनुष्य की जड़ता क्रमशः क्षीण होती हुई उसे चेतना के अंतिम शिखर की ओर अग्रसर करती है। ध्यान और समाधि की स्थितियों तक पहुँचा हुआ मनुष्य कभी भी किसी भी दशा में विवेक-हीन और अनैतिक नहीं हो सकता। इसलिए विज्ञान के विद्यार्थी को यदि योग की शिक्षा दी जाय तो वह विज्ञान-लब्ध ऊर्जा का प्रयोग मानव-हित में करेगा। विश्व के विनाश की आशंका समाप्त हो जायगी । विवेकहीन बौद्धिक विकास से नैतिकता का जो संकट उत्पन्न हो गया है, वह दूर हो जायगा और विश्व – मानव संस्कृत हो जायगा।
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