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Category: Acharya Somdev Arya

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  • ज्ञान का आदि स्रोत परमेश्वर है। परमेश्वर ने ही आदि सृष्टि में मनुष्यों को वेदरूपी ज्ञान दिया। उसी वेद ज्ञान से ऋषियों ने भिन्न भिन्न शास्त्रों की रचना की । उपनिषद्, दर्शन, आरण्यक, ब्राह्मण ग्रन्थ आदि-आदि । समाज व मनुष्य की उन्नति के उपाय ऋषियों ने अपने ग्रन्थों में बताए । आध्यात्म, व्यवहार, औषध, भोजन, राजनीति, धर्मनीति आदि के संबन्ध में हमारे शास्त्रों में विस्तार से वर्णन मिलता है । मनुष्य का जीवन सरलता से सुख पूर्वक उन्नति करते हुए अपने परम लक्ष्य तक किस विधि से पहुँचे इसका उपाय ऋषियों नीतिकारों के ग्रंथों में मिलता है । वैदिक सनातन परम्परा में जितना वेद उपनिषद्, दर्शन, स्मृति ग्रंथों का महत्व है उतना ही नीतिग्रंथों का भी महत्व है। नीतिग्रंथों में धौम्य नीति, कामंदक नीति, शुक्र नीति, बृहस्पति नीति, विदुर नीति, भर्तृहरि नीति, चाणक्य नीति आदि हैं। इन सब नीतियों का अपना-अपना विशेष महत्व है। इन सब नीतियों में चाणक्य नीति वर्तमान में सबसे अधिक प्रसिद्ध व प्रचलित है । मेरी जैसे शास्त्र पढ़ने में रूचि है वैसे ही नीति शास्त्र पढ़ने में भी है। गुरुकुल के अध्ययन काल में शुक्र नीति पढ़ी जिसके पढ़ने से नीति ग्रंथों में रूचि बढ़ गई। शुक्र नीति के बाद विदुर नीति, चाणक्य नीति आदि का अध्ययन किया । यह अध्ययन इसलिए किया क्योंकि महर्षि दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश के ६ठ्ठे सम्मुल्लास में इन नीतियों को पढ़ने का संकेत किया है । मेरी नीति ग्रंथों के ऊपर विस्तार से व्याख्यान करने की इच्छा वर्षों से थी । अध्ययन व प्रचार कार्यों के कारण समय नहीं मिल पा रहा था इसलिए यह कार्य भी हो पा रहा था । दैवयोग से कोरोना का कालखण्ड आया और उस कालखण्ड ने कुछ समय के लिए जैसे सबको स्थिर सा कर दिया । उसी का प्रतिफल यह ग्रंथ है

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