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नाडी तत्व दर्शनम nadi tatva darshanm

Rs.315.00

ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय

भारतीय आयुर्विज्ञान के अङ्गों में नाडी द्वारा रोगपरीक्षण प्रत्यन्त प्राचीन और चमत्कार पूर्ण तथ्य है। आयुर्वेद की चिकित्सा का यह मूल प्राधार है। प्राधुनिक विज्ञान जहां इस रहस्यमय विज्ञान से चकित एवं चमत्कृत होता है; वहां हमारे आधुनिक वैद्यबन्धु भी इस गम्भीर रहस्य से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। इस विषय की जो दो-चार छोटी-मोटी पुस्तकें मिलती हैं, वे उपपत्ति, तर्क, प्रमाण और युक्ति हीन सी प्रतीत होती हैं। आजकल यह अत्यन्त गम्भीर अत एव रहस्यपूर्ण विज्ञान केवल परम्परा के आधार पर ही जीवित रह गया है।

में आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धान्त पर व्यवस्थित नाडी- विज्ञान के गूढतम रहस्य का अनुसन्धान इस विज्ञान युग में अत्यावश्यक ही नहीं; अनिवार्य भी हो गया है। अन्यथा कुछ दिनों में यह रहस्य अनन्त के गर्भ में विलीन हो जायेगा । हर्ष का विषय है कि इस जटिल, दुरूह तथा अतिगम्भीर विषय को लेकर प्रखर प्रतिभासम्पन्न गवेषक विद्वान् वैद्य ने पांच वर्षों के निरन्तर अनुसन्धान एवं कठोर तपस्या द्वारा इस रहस्य के उद्घाटन में अधिकाधिक सफलता प्राप्त की है ।

गवेषक-विद्वान् लेखक ने इस अनुसन्धान को चरम सीमा तक पहुंचा दिया है जो दूतधरा विज्ञान के नाम से उल्लिखित है। इस विज्ञान द्वारा दूरदेश स्थित रोगी के रोग का निदान उसके दूत की नाडी द्वारा करने की सफल प्रक्रिया प्रदर्शित की है । लेखकने इसके शताधिक प्रयोग किये हैं और अनेक छात्रों को तैयार किया है । अनेक प्रसिद्ध वैद्यों, उच्च अधिकारियों एवं नागरिकोंने दूतधरा द्वारा चिकित्सा कराकर सफलता प्राप्त की है और प्रमाणपत्र दिये हैं ।

इसके अतिरिक्त पुस्तकमें सबसे प्रथम त्रिदोष सिद्धान्तका सप्रमाण विवेचन किया गया है जो भारतीय आयुर्वेद-सिद्धान्त का मूल आधार है । उसके अतिरिक्त पञ्चभूतों दोषों और मलों का विवेचन करते हुये चरक एवं सुश्रुत की अनेक पंक्तियों की रहस्यपूर्ण वैज्ञानिक व्याख्या भी विद्वान् वैद्यों एवं वैद्य-विद्यास्नातकोंके मननकी महान् वस्तु है । पुस्तक की एक एक बात सप्रमाण है, जो अनुसन्धानका मूल आधार है । वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, चरक, सुश्रुत तथा काश्यप संहिता आदि ग्रन्थों के अतिरिक्त किसी भी अनार्ष ग्रन्थ का प्रमाण के रूपमें नामोल्लेख इसमें नहीं है। आयुर्वेद की अनेक रहस्यमय गुत्थियों को सरलता से सप्रमाण सुलझाया गया है । 3

नाडी- विषयक अनुसन्धान करने के अनन्तर विद्वान् लेखक ने रावणकृत ‘नाडी- विवृति’ की युक्तियुक्त व्याख्या करते हुए कणाद नाडी, बसवराजीय-नाडी तथा नाडी- सम्बन्धी सभी उपलब्ध श्लोकों की यथावसर युक्ति पूर्ण व्याख्या कर दी है। सारांश यह कि लेखक ने नाडी- ज्ञान सम्बन्धी सर्वविध अन्धकारको दूर करने एवं आधुनिक विज्ञान का तर्कपूर्ण समाधान करने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है ।

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