ब्रह्म विज्ञान brahm vigyan
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आज मानव समाज से वेद प्रतिपादित व ऋषियों द्वारा व्यवहार में क्रियात्मक रूप से प्रस्थापित मानवतावादी जीवन शैली और मानव के चरमलक्ष्य को प्राप्त कराने वाली योगविद्या के लुप्त हो जाने से आज मानव जन्म से मरण पर्यन्त पशुवत् केवल भोगवाद में फँसकर भयंकर दुःख भोग रहा है।आज मानव समाज का राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक हर क्षेत्र भोगवाद की चमक-दमक व चकाचौन्ध से बुरी तरह प्रभावित हो चुका है। आज भोगवाद की लहर में चपरासी से लेकर राष्ट्रपति, एक तुच्छ मढ़ी के पुजारी से लेकर मठाधीश महामण्डलेश्वर तक सभी सत्ता पद (गद्दी ) के लिये कोर्ट-कचहरी तक पहुँचे दीखते हैं । सत्य धर्म से विमुख, आडम्बर के प्रदर्शन, अद्यतन वैज्ञानिक प्रसाधनों से सुसज्जित ईंट पत्थरों की चकाचौन्ध के नीचे मानव और उसका तथाकथित भगवान् दबे पिसे जा रहे हैं। मानव निर्माण के लिये यम-नियमों के पालन का सर्वत्र अभाव है। भौतिकवाद से प्रभावित इन सत्ताधीशों व धर्म-ध्वजियों ने ही आज मानव जाति को स्वार्थी, कृतघ्न व नास्तिक बना दिया है ।
हमारे अहोभाग्य से स्वनामधन्य स्वामी श्री सत्यपति जी परिव्राजक व उनके सुयोग्य शिष्य द्वय आचार्य ज्ञानेश्वर जी व स्वामी विवेकानन्द जी परिव्राजक ने क्रियात्मक योग प्रशिक्षण तथा वेद कालीन ऋषियों की आध्यात्मिक जीवनचर्या को वेद, दर्शन, उपनिषदों आदि के पठन-पाठन द्वारा इस आर्यवन की धरती पर उतार कर चरितार्थ किया है । इन्होंने जिस ऋषि पद्धति (शैली) से इस विद्या को क्रियान्वित किया वह आज आर्य-जगत में दुर्लभ है, उसी ज्ञान की इस पुस्तक में विशेष व्याख्या की गई है
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