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वेदों पर किए आक्षेप तथा उनका समाधान vedon par kie akshep tatha unaka samadhan

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क्या वेद ऋषियों की रचना हैं ?

इस विषय पर विद्वानों द्वारा पर्याप्त लिखा जा चुका है। अतः यहाँ उसका पिष्टपेषण नहीं किया जायेगा। संक्षेप में इतना कहा जाता है कि वेदमन्त्रों तथा सूक्तों के ऊपर जो विश्वामित्रादि ऋषि लिखे हुए हैं, वे उन मन्त्रों तथा सूक्तों के कर्त्ता नहीं हैं । वेदों का आविर्भाव तो सृष्टि के प्रारम्भ में ही अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरस् इन चारों ऋषियों पर हो गया था, किन्तु उन मन्त्रों के ऋषि तथा देवता पर्याप्त समय पश्चात् अन्य ऋषियों ने निर्धारित किये थे । इस कार्य में कात्यायन मुनि का नाम प्रमुख है। चार ऋषियों पर अनादि वेदवाणी का प्रकट होना कोई असम्भावित कल्पना भी नहीं है, क्योंकि अब भी कभी न कभी मनुष्यों के मन में स्वतः ही ऐसे भावों का प्रकटीकरण हो जाता है, जिनके विषय में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था । कभी-कभी तो ये विचार अति संक्षिप्त रूप में रहते हैं तथा कभी-कभी कई-कई पंक्तियाँ भी इस रूप में अवतरित हो जाती हैं। ऐसे भावों या विचारों को दैवीय विचार कहा जाता है, जिसका भाव यही है कि ये विचार उस व्यक्ति के अपने मस्तिष्क की उपज न होकर किसी दैवीय शक्ति की ओर से ही हैं । कभी-कभी तो स्वप्न में भी व्यक्ति को इस प्रकार की प्रेरणा प्राप्त हो जाती है।

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